Quote :

" साक्षरता दुःख से आशा तक का सेतु है " — कोफी अन्नान

Editor's Choice

एक मौन तपस्वी का स्वर्गारोहण

Date : 07-Nov-2024

 

उन्होंने 93 वर्ष की आयु में अंतिम श्वास ली। उनका जन्म 15 फरवरी 1932 में रायपुर में हुआ था। उन्होंने जबलपुर से इंजीनियरिंग की डिग्री ली और भिलाई स्टील प्लांट में सीनियर इंजीनियर के रूप में सेवाएं दीं। वर्ष 1975 से 1977 तक आपातकाल में जेल में रहे। आपातकाल में जेल में रहते ही उन्होंने वकालत की पढ़ाई की। वे वर्ष 2006 से 2012 तक छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के सदस्य भी रहे। उन्हें दूसरा कार्यकाल देने की बात उठी, तो उन्होंने स्वयं यह कहकर मना कर दिया कि अन्य लोगों को अवसर मिलना चाहिए। संसार से विदा होते हुए भी उन्होंने समाज की चिंता की और अपनी देह दान कर गए।
मध्यक्षेत्र संघचालक डॉ पूर्णेन्दु सक्सेना जी बताते हैं कि व्यास जी ने संघ कार्य विस्तार के लिए जबलपुर से रायपुर पैदल यात्रा भी की। संघ गांव-गांव, घर-घर पहुंचे, इसके लिए प्रयत्नशील रहे। उन्होंने विभिन्न दायित्व निभाते हुए संघ की सेवा की। आज संघ परिवार उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। उनका जाना एक अपूरणीय क्षति है।
जुगराज धर द्विवेदी जी (भोपाल क्षेत्र विशेष संपर्क प्रमुख, विश्व हिंदू परिषद) बताते हैं कि उनका पूरा जीवन त्यागमय था। वे अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने कभी परिस्थितियों के साथ समझौता नहीं किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपने जीवन में सर्वोच्च माना। जब वे भिलाई स्टील प्लांट में कार्यरत थे, तब प्रान्त कार्यवाह रहे। फिर नौकरी से वीआरएस लेकर उन्होंने सम्पूर्ण जीवन संघ की सेवा में समर्पित कर दिया। वे महाकौशल प्रान्त के प्रांत प्रचारक रहे। विश्व हिन्दू परिषद के अखिल भारतीय सयुंक्त महामंत्री रहे। 
वरिष्ठ स्वयंसेवक अशोक शेष जी जी बताते हैं कि उनके पास केवल दो ही कार्य थे, एक नौकरी और दूसरा संघ कार्य। उनके साथ कार्य कर चुके लोग उन्हें सन्त के रूप में याद करते हैं। वे मिलनसार थे। जिससे भी मिलते थे तो बड़े प्रेम से मिलते थे। लोगों को कभी ये नहीं लगता था कि वे पहली बार उनसे मिल रहे हैं। एक बार परम् पूज्य सर संघचालक जी का आगमन दुर्ग में होने वाला था। केवल दो दिन में पत्रक बांटने थे। उस समय दुर्ग बहुत बड़ा जिला हुआ करता था। कवर्धा, बेमेतरा, छुईखदान तक फैला हुआ था। तब व्यास जी अशोक जी के साथ स्कूटर में निकले और धमधा, देवकर, बेमेतरा, छुईखदान, राजनांदगांव में पत्रक बांटते हुए दो दिन बाद दुर्ग पहुंचे। वे संघ के अथक सेवाधारी स्वयंसेवक थे।
अतुल नागले जी बताते हैं कि उनके सादगीपूर्ण जीवन के अनेक उदाहरण मिल जाएंगे। एक बार राज्यसभा सांसद रहते हुए उन्हें भिलाई में संघ शिक्षा वर्ग में आमंत्रित किया गया। जब उन्हें बताया गया कि उन्हें लेने गाड़ी आ जायेगी तो उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया। उन्होंने कहा कि वे स्वयं की व्यवस्था से आ जाएंगे। वे राज्य परिवहन की बस से भिलाई पहुंचे और वहाँ के स्वयंसेवकों को सूचना दी कि मुझे बस स्टैंड से ले लो। व्यवस्था में उपस्थित स्वयंसेवक उन्हें लेने पहुंचे तो उन्होंने कहा कि वे कार से नहीं जाएंगे। एक स्वयंसेवक जो कि दुपहिया वाहन से पहुंचे थे, उनकी गाड़ी में पीछे बैठकर वर्ग में पहुंचे। भिलाई के तो सैकड़ों परिवार उन्हें अपने घर का मुखिया मानते हैं। 
विलास करमाकर जी पुराने दिनों को स्मरण करते हुए बताते हैं कि वे व्यास जी से वर्ष 1960 से परिचित हैं। इंजीनियर होकर भी वे सादा पहनावा रखते थे। भिलाई के सेक्टर 10 स्थित आवास में बगीचे में खुद ही निंदाई-गुड़ाई करते या पेड़ों को पानी देते दिखाई देते थे। उनकी वाणी अत्यंत मधुर थी। वे स्नेह से बात करते थे। वर्ष 1975 में मैं दुर्ग में प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग में गया। मेरे पूरे शरीर मे बड़े-बड़े फोड़े हो गए। जब शीरु भैया (गोपाल व्यास जी) को पता चला तो वे मुझे अपने पास ले आये। वे 24 घण्टे मेरा ध्यान रखते थे। अपने हाथों से मेरे घाव पर नारियल का तेल लगाते थे। उनके कारण ही मैं वर्ग पूरा कर पाया। उसी समय एक बार आधी रात को एक स्वयंसेवक भागता हुआ शीरु भैया के कक्ष में आया। भैया बस उसी समय सोने गए थे। उन्हें उठाकर वह स्वयंसेवक रोने लगा और उसने बताया कि उसके पिता का देहांत हो गया है। उनकी देह को राजनांदगांव ले जाना है। व्यास जी रात 2 बजे ही अपनी साइकिल से सेक्टर10 स्थित अपने घर गए। वहां से कार लाकर  उस स्वयंसेवक और उसके पिता की देह को राजनांदगांव लेकर गए। मैं भी उनके साथ गया। कार के हैंडल से मेरे घाव छिल गए थे तो मुझे लेकर चिकित्सक के पास गए। ऐसे थे गोपाल व्यास भैया।
शालिनी राजहंस जी कहती हैं कि हमारे लिए तो संघ का अर्थ ही गोपाल व्यास जी थे। उनकी प्रेरणा से ही हमारा परिवार संघ के कार्यक्रमों में जाने लगा। मैं राष्ट्रीय सेविका समिति से जुड़ी। हमें अपना परिवार मानते थे।  हमारे पारिवरिक उत्सवों में निरन्तर आते थे। उनका पूरा ध्यान केवल संघ में रहता था। वे बहुत शांत स्वभाव के थे।
 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement