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" साक्षरता दुःख से आशा तक का सेतु है " — कोफी अन्नान

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शिक्षाप्रद कहानी:- दान का फल

Date : 09-Nov-2024

गर्मी के दिन थे, तेज धूप के कारण पृथ्वी जल रही थी | महाराजा भोज के राजकवि किसी आवश्यक कार्य को सम्पन्न करके नगर की ओर लौट रहे थे | मार्ग में उन्होंने देखा कि एक दुर्बल मनुष्य नंगे पैर लड़खड़ाता हुआ चल रहा है | उसके पैरों में संभवतया छाले पड़ गए थे | वह बार-बार लम्बा साँस लेता था और फिर दौड़ने का प्रयत्न करता था किन्तु अपनी दुर्बलता के करण भाग नहीं पाता था | कवि के सुकुमार हृदय से यह देखा नहीं गया | आज वे भी पैदल ही थी | वे उस पुरुष के पास गए और अपने जूते उतारकर उसको देते हुए बोले-“भाई! तुम इन्हें पहन लो |”

उस व्यक्ति ने जूते ले लिये | कवि महाशय नंगे पैर चलने लगे | उन्हें कभी नंगे पैर चलने का अभ्यास नहीं था और ऊपर से धरती तप रही थी | कवि को लगा कि वे मार्ग में ही मूर्छित होकर गिर पड़ेंगे | उनके पैरों में शीघ्र ही छाले पड़ गए परन्तु उनको इस बात की प्रसन्नता थी कि आज उन्होंने एक दु:खी प्राणी की सहायता की | संयोग की बात है कि राजा का महावत उधर से हाथी लेकर जा रहा था | उसने राजकवि को पैदल और नंगे पाँव चलते देखा, तो उनको हाथी के पीठ पर बैठा लिया | यह भी एक संयोग की ही बात थी कि राजा भोज भी उस तपती दोपहरी में नगर में निकले थे | नगर में प्रविष्ट होते ही कवि और नरेश की भेंट हो गयी | नरेश ने हंसी में पूछा-“आपको यह हाथी कहाँ मिल गया |”

कवि बोले –“राजन! मैंने अपना पुराना फटा जूता दान कर दिया, उस पुण्य के प्रताप से इस समय हाथी पर बैठा हूँ |”

नरेश ने पूछा-“ तुमने जूता दान क्यों किया ?”

“राजन जिस द्रव्य का दान न हो सके वह तो व्यर्थ है | कवि का उत्तर था |

नरेश बड़े उदार थे | कवि के उत्तर से प्रसन्न होकर उन्होंने वह हाथी उन्हीं को दान कर दिया |  

 
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