प्रेरक प्रसंग:- संत परीक्षा
Date : 19-Nov-2024
महाराष्ट्र के पुण्यनक्षत्र संत ज्ञानेश्वर, नामदेव तथा मुक्ताबाई के साथ तीर्थाटन करते हुए प्रसिद्ध संत गोरा के यहां पधारे | संत समागम हुआ, वार्ता चली | तपस्विनी मुक्ताबाई ने पास रखे एक डंडे को लक्ष्य कर गोरा कुम्हार से पूछा, “यह क्या है?”
“मैं इससे ठोककर अपने घड़ों की परीक्षा करता हूँ कि वे पक गए हैं या कच्चे ही रह गये हैं”, गोरा ने उत्तर दिया |
मुक्ताबाई हंस पड़ी, बोली, “हम भी तो मिट्टी के ही पात्र हैं | क्या इससे हमारी परीक्षा कर करते हो ?”
“क्यों नहीं”, कहते हुए गोरा उठे और वहाँ उपस्थित प्रत्येक महात्मा का मस्तक उस डंडे से ठोकने लगे| उनमें से कुछ ने विनोद माना, कुछ को रहस्य प्रतिक हुआ किन्तु नामदेव को बुरा लगा कि एक कुम्हार उन जैसे संतों कि एक डंडे से परीक्षा कर रहा है | उसके चेहरे पर क्रोध की झलक भी दिखाई दी | जब उनकी बारी आयी तो गोरा ने उनके मस्तक पर डंडा रखा और बोले, “यह बर्तन कच्चा है |” फिर नामदेव से आत्मीय स्वर में बोले, “तपस्विश्रेष्ठ, आप निश्चय ही संत हैं, किंतु आपके हृदय का अहंकार रूपी सर्प अभी मरा नहीं है, तभी तो मान अपमान की ओर आपका ध्यान तुरंत चला जाता है | यह सर्प तो तभी मरेगा, जब कोई सद्गुरु आपका मार्गदर्शन करेगा | “
संत नामदेव को बोध हुआ | स्वयंस्फूर्त ज्ञान में त्रुटि देख उन्होंने संत वि
ठोबा खेचर से दीक्षा ली, जिससे अंत में उनके भीतर का अहंकार छूट गया |