चाणक्य नीति:- माता - पिता के भिन्न रूप
Date : 27-Nov-2024
पिता-
जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रय प्रयश्चित |
अन्नदाता भयत्राता पश्चैता पितर: स्मृता ||
यहां इस श्लोक में आचार्य चाणक्य संस्कार की दृष्टि से पांच प्रकार के पिता को गिनाते हुए कहते हैं- जन्म देनेवाला, उपनयन संस्कार करनेवाला, विद्या देनेवाला, अन्नदाता तथा भय से रक्षा करनेवाला, ये पांच प्रकार के पिता होते हैं|
अर्थात् स्वयं अपना पिता जो जन्म देता है, उपनयन (यज्ञोपवी) संस्कार करनेवाला गुरु, अन्न - भोजन देनेवाला तथा किसी कठिन समय में प्राणों की रक्षा करनेवाला इन पांच व्यक्तियों को पिता माना गया है | किन्तु व्यवहार में पिता का अर्थ जन्म देनेवाला ही लिया जाता है |
माता-
राजपत्नी गुरो: पत्नी मित्रपत्नी तथैव च |
पत्निमाता स्वमाता च पश्चैता मारत: स्मृता ||
यहां इस श्लोक में आचार्य चाणक्य माँ के बारे में चर्चा करते हुए कहते हैं, कि राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, पत्नी की माँ तथा अपनी माँ- ये पांच प्रकार की माँयें होती हैं |
अर्थात् अपने देश के राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, अपनी पत्नी की माँ, अर्थात् सास और जन्म देनेवाली अपनी माँ इन पाँचों को माँ माना जाता है |
वस्तुत: देखा जाये तो माता ममता और करुणा की प्रतिमूर्ति होती है| जहाँ से ममता और करुणा का प्रवाह पुत्र के लिए होता है, उसे माता मान लिया गया है | अत: इन पांच स्थानों से भावनामयी, करुणामयी हृदय से भावमय प्रवाह प्रवाहित होता है | इसलिए इन पांच को माता माना जाता है | इसीलिए इनका व्यक्ति के जीवन में माँ के समान ही महत्व है |