चाणक्य नीति:- अभ्यागत श्रेष्ठ होता है Date : 16-Oct-2024 गुरुरग्निर्द्विजातीनां वर्णानां ब्राम्हाणो गुरु: | पतिरेव गुरु: स्त्रीणा सर्वस्याभ्यगतों गुरु: || आचार्य चाणक्य यहां गुरु की व्याख्या- विवेचना एवं स्वरुप की व्याख्या करते हुए कह रहे हैं कि ब्राम्हण, क्षत्रिय और वैश्य, इन तीनों वर्णों का गुरु अग्नि है | ब्राम्हण अपने अतिरिक्त सभी वर्णों का गुरु है| स्त्रियों का गुरु पति है | घर में आया हुए अतिथि सभी का गुरु होता है | उनका कथन है कि अग्नि को ब्राम्हणों, क्षत्रियों एवं वैश्यों का गुरु माना जाता है | ब्राम्हण को क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों का गुरु समझना चाहिए | स्त्रियों का गुरु उनका पति होता है| घर में आया अतिथि सारे घर का गुरु माना गया है | अर्थात् अभ्यागत वह होता है जो अतिथि रूप में गृहस्थ के यहां अकस्मात आ जाता है | उसका कोई स्वार्थ नहीं होता | वह तो अपने आतिथेय का ही कल्याण चाहता है | इसीलिए आचार्य चाणक्य के अभ्यागत को श्रेष्ठ व्यक्ति माना है |