पंडित दीनदयाल उपाध्याय: एकात्म मानववाद के प्रणेता | The Voice TV

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पंडित दीनदयाल उपाध्याय: एकात्म मानववाद के प्रणेता

Date : 11-Feb-2025
भारत के इतिहास में ऐसे कई विचारक और नेता हुए हैं, जिन्होंने देश की राजनीति और सामाजिक संरचना को नए दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा दी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय उन महान विभूतियों में से एक थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति, परंपराओं और आर्थिक नीतियों को एक विशिष्ट दृष्टि से प्रस्तुत किया। वे केवल एक राजनीतिज्ञ नहीं थे, बल्कि एक विचारक, लेखक, पत्रकार और समाज सुधारक भी थे। उनका योगदान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सिद्धांतों में आज भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नगला चंद्रभान गांव में जन्मे दीनदयाल उपाध्याय के माता-पिता का साया बहुत छोटी उम्र में उठ जाने के बाद उनका पालन-पोषण ननिहाल में हुआ। हालांकि, इन विपरीत परिस्थितियों ने उन्हें हतोत्साहित नहीं किया, बल्कि आत्मनिर्भरता और आत्मशक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
दीनदयाल उपाध्याय अपने छात्र जीवन में अत्यंत मेधावी थे। उन्होंने सीकर (राजस्थान) से हाई स्कूल की परीक्षा प्रथम स्थान पर उत्तीर्ण की, जिसके लिए उन्हें स्वर्ण पदक और छात्रवृत्ति प्रदान की गई। बिड़ला कॉलेज, पिलानी में भी वे प्रथम आए और उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें विशेष पुरस्कार मिला। उन्होंने सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर से स्नातक की डिग्री ली और आगे की पढ़ाई के लिए सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरा में प्रवेश लिया, हालांकि व्यक्तिगत कारणों से वह अपनी मास्टर डिग्री पूरी नहीं कर सके।
राजनीतिक जीवन और आरएसएस से जुड़ाव
दीनदयाल उपाध्याय का झुकाव राष्ट्रवादी विचारधारा की ओर था। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े और पूरे समर्पण के साथ संघ के कार्यों में संलग्न हो गए। वे भारतीय जनसंघ (जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बना) के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेताओं में से एक थे।
उन्होंने "एकात्म मानववाद" नामक विचारधारा को प्रस्तुत किया, जिसमें व्यक्ति, समाज और प्रकृति के बीच संतुलन की आवश्यकता पर बल दिया गया। उनके अनुसार, भारत की प्रगति तभी संभव है जब देश की आर्थिक और सामाजिक नीतियाँ उसकी सांस्कृतिक विरासत के अनुरूप हों, न कि विदेशी विचारधाराओं पर आधारित।
पत्रकारिता और साहित्य में योगदान
दीनदयाल उपाध्याय केवल एक राजनीतिज्ञ ही नहीं थे, बल्कि एक प्रखर पत्रकार और लेखक भी थे। उन्होंने "राष्ट्रधर्म" नामक मासिक पत्रिका की स्थापना की, जिसका उद्देश्य हिंदुत्व की विचारधारा को प्रसारित करना था। इसके अलावा, उन्होंने "पांचजन्य" साप्ताहिक और "स्वदेश" दैनिक अखबार की भी शुरुआत की।
उनकी साहित्यिक रचनाओं में ऐतिहासिक महापुरुषों की जीवनियाँ भी शामिल हैं, जिनमें चंद्रगुप्त मौर्य और शंकराचार्य की जीवनी प्रमुख हैं। इसके अलावा, उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की जीवनी का मराठी से हिंदी में अनुवाद किया।
एकात्म मानववाद: उनकी विचारधारा
दीनदयाल उपाध्याय का राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण "एकात्म मानववाद" पर आधारित था। यह विचारधारा न तो पूंजीवाद का समर्थन करती थी, न ही समाजवाद का। इसके बजाय, यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं के अनुरूप एक स्वदेशी आर्थिक और सामाजिक मॉडल प्रस्तुत करती थी।
उनके अनुसार, विकास की दौड़ में केवल आर्थिक संपन्नता ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को भी समान रूप से महत्व देना आवश्यक है। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी, जहां हर व्यक्ति की भलाई पर विचार किया जाए और आत्मनिर्भरता, सादगी और नैतिकता पर आधारित विकास हो।
रहस्यमयी मृत्यु और अंतिम विदाई
11 फरवरी 1968 को, पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु रहस्यमय परिस्थितियों में हुई। उनकी मृत देह मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास मिली थी। उनकी असामयिक मृत्यु ने भारतीय राजनीति में एक शून्य पैदा कर दिया, लेकिन उनकी विचारधारा और सिद्धांत आज भी जीवंत हैं और भारतीय जनता पार्टी के दर्शन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन हमें सिखाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना और समाज के लिए कुछ करने की भावना ही सच्ची सफलता है।
 
 
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