कृतज्ञ शेर: एक अनमोल शिक्षाप्रद कहानी | The Voice TV

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कृतज्ञ शेर: एक अनमोल शिक्षाप्रद कहानी

Date : 26-Apr-2025

बहुत पुरानी बात है। यूनान देश के एक क्रूर बादशाह के अनेक प्रकार के शौकों में एक शौक यह भी था कि वह कुछ शेरों को पिंजरे में बंद करके रखता था और समय-समय पर उनके करतब देखता-दिखाता रहता था। उसके शासन में चोर को मृत्युदंड के रूप में शेर के पिंजरे में डाल दिया जाता था, इससे उसके दो काम होते थे, एक तो दण्ड भी पूरा हो जाता था और दूसरे शेर को भोजन मिल जाता था।

 

इसी क्रम में एक बार एक चोर दिन के समय जंगल में घुसकर रहना चाहता था। चलते-चलते कहीं वह एक शेर की मांद के समीप से निकला। संयोग की ही बात थी कि उस दिन शेर अपनी मांद में नहीं था अपितु मांद के बाहर पेड़ की छाया में बैठा हुआ छटपटा रहा था। चोर की दृष्टि उस पर पड़ी तो उसको यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ और वह डर से थर-थर काँपने लगा। वह भाग भी नहीं सकता था। डर से काँपता हुआ चोर दूर पर खड़ा रहा और देखता रहा। उसे देखकर शेर न तो गुर्राया और न ही दहाड़ा। चोर के लिए यह भी आश्चर्य की ही बात थी। विपरीत इसके बड़ी कातर दृष्टि से शेर उस चोर की ओर देख रहा था।

 

आँखों की भाषा ऐसी है, जिसे चोर भी समझता है और पशु भी। चोर को लगा कि शेर को किसी प्रकार का कष्ट है। उसने उसकी ओर गौर से देखा, तो उसे उसके पंजे में पीव सा निकलता दिखाई दिया। चोर समझ गया कि इस कष्ट के कारण शेर निश्चल सा पड़ा कराह रहा है। चोर ने साहस किया और वह उसके समीप जा पहुँचा। उसे लगा कि शेर के पंजे में बड़ा सा काँटा चुभा हुआ है और उसका पँजा पक गया है, इस कारण उससे पीव निकल रहा है।

 

चोर ने साहस और दया का परिचय दिया, आखिर था तो वह मनुष्य ही। दया मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। उसने बड़ी सावधानी से शेर के पँजे से काँटा निकालने का यत्न किया और अपने यत्न में वह सफल भी हो गया। बड़ा सा काँटा उसने निकाल कर फेंक दिया। काँटा निकलते ही शेर को चैन सा आया और क्षण मात्र में वह उठकर बैठ गया। चोर डर गया कि अब तो शेर उसको छोड़ेगा नहीं, किन्तु वह असमर्थ था, तदपि वह उसके समीप से कुछ दूर हटकर खड़ा हो गया और अपने परमात्मा का स्मरण करने लगा।

 

शेर ने बड़े अहसान भरे अंदाज में उस चोर को देखा और फिर लंगडाता हुआ धीरे-धीरे दूसरी ओर चल दिया। चोर को इससे और भी आश्चर्य हुआ। क्योंकि मौत उसके पास से दूर खिसकती जा रही थी।

 

वर्ष बीतते गये। चोर अपनी चोरी का धंधा करता रहा और इस घटना का वह भूल गया। किन्तु एक दिन वह चोरी करता हुआ रंगे हाथों पकड़ा गया, तो बादशाह के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया गया। पकड़ने वालों ने पुख्ता साक्ष्यों के आधार पर उसका अपराध सिद्ध कर दिया तो उसको बादशाह ने मृत्यु दण्ड सुनाकर कहा कि इसको शेर के पिंजरे में डाल दो। इसके लिए उसने एक दिन भी निश्चित कर दिया।

 

निश्चित दिन, निश्चित समय पर शेर के पिंजरे के पास भीड़ एकत्रित हो गयी। समय पर बादशाह आया और उसने पिंजरा खोलकर चोर को उसके अंदर डालने का आदेश दे दिया। शेर का पिंजरा खोला गया और चोर को पकड़ कर उसके अंदर धकेल तुरंत पिंजरा बंद कर दिया गया। अपने आहार को देख कर शेर दहाड़ा और फुर्ती से चोर को दबोचने के लिए आगे बढ़ा था कि तुरन्त रुक गया। इतना ही नहीं उस पर झपटने की अपेक्षा शेर चोर की हथेली चाटने लगा। उधर चोर था कि थर-थर काँप रहा था। किन्तु शेर उसको चाटता रहा।

 

बादशाह समेत सभी दर्शक बड़े आश्चर्य से यह दृश्य देख रहे थे। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। राजकर्मचारी शेर को उकसा रहे थे, किन्तु शेर चोर की गर्दन दबोचने के लिए तैयार नहीं था। विवश होकर बादशाह ने आज्ञा दी कि चोर को बाहर निकाल कर पिंजरा बंद कर दिया जाय। आज्ञा का पालन किया गया। चोर को बादशाह के सामने खड़ा कर दिया गया।

 

बादशाह बोला-"अपराधी! तुम्हारे अपराध इतने भयंकर हैं कि तुम किसी भी प्रकार क्षमा के योग्य नहीं हो। फिर भी हम तुम्हारा मृत्यु दण्ड क्षमा कर रहे हैं। लेकिन हम तुमसे यह जानना चाहते हैं कि तुमने शेर को किस प्रकार से अपने वश में किया कि वह तुम पर झपटने की अपेक्षा तुम्हारी हथेलियाँ चाटने लगा?"

 

चोर को भी शेर के इस विपरीत व्यवहार पर आश्चर्य हुआ था ही। किन्तु जब कुछ क्षण बाद उसका भय कुछ कम हुआ और वह स्थिर सा हुआ तो उसने गौर से शेर की ओर देखा और उस समय उसको शेर के पैर से काँटा निकालने की पूर्व की घटना स्मरण हो आयी।

 

शेर का व्यवहार देखकर चोर के हृदय को ठेस सी लगी। अब उसको अपने व्यवहार और कार्य पर स्वयं लज्जा सी आने लगी थी। उधर बादशाह की निगाहें उस पर टिकी थीं। उसको भय तो था ही कि मृत्यु दण्ड न सही आजीवन कारावास तो भुगतना ही पड़ेगा। उसके इसी सोच में समय बीतता जा रहा था। बादशाह का धैर्य टूट रहा था। उसने कहा- "तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?"

 

चोर जैसे तन्द्रा से जागा। वह सतर्क खड़ा हो गया और उसने शेर के पँजे से किसी समय काँटा निकालने की घटना का वर्णन कर दिया। उसका कहना था कि हो न हो यह वही शेर होगा।

 

इस घटना का बादशाह के साथ-साथ सभी दर्शकों पर भी बड़ा प्रभाव हुआ। बादशाह भी उस समय सहसा रहम-दिल मानव बन गया और उसने आज्ञा दी "चोर के बंधन खोल दो, इसे सभी अपराधों से मुक्त किया जाता है।"

 

चोर के बंधन खोल दिये गये। उस दिन के बाद उसने भी सामान्य जीवन व्यतीत करना आरम्भ कर दिया

 
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