हिन्‍दू धर्म में ‘सिंदूर’ शक्‍ति का प्रतीक; फिर जहां शक्‍ति- हे राघव, वहीं विजय! | The Voice TV

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"जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप भगवान पर भी विश्वास नहीं कर सकते " – स्वामी विवेकानंद

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हिन्‍दू धर्म में ‘सिंदूर’ शक्‍ति का प्रतीक; फिर जहां शक्‍ति- हे राघव, वहीं विजय!

Date : 09-May-2025

भारत का ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पाकिस्‍तान पर पूरा हो चुका है। परिणाम दुनिया के सामने हैं। इसी के साथ कवि निराला की लिखी कविता ‘राम की शक्‍ति पूजा’ के एक-एक शब्‍द कानों में गूंज रहे हैं। वस्‍तुत: 312 पंक्तियों की ये कविता अपने युगीन-चेतना व आत्मसंघर्ष का मनोवैज्ञानिक धरातल पर बड़ा ही प्रभावशाली चित्र प्रस्तुत करती है, लेकिन यह साथ में बता देती है कि जहां शक्‍ति है, वहीं विजय सदियों से रहती आई है। श्रीराम को भी विजय के लिए शक्‍ति की आराधना करनी पड़ी। वे रावण जैसे लम्पट, अधर्मी और अनंत शक्ति सम्पन्न राक्षसराज पर विजय पाने में तब तक समर्थ नहीं होते जब तक कि श्रीराम ‘शक्ति’ की आराधना नहीं करते हैं।

‘राम की शक्‍ति पूजा’ की अंतिम पंक्‍तियों पर गहराई से विचार करिए;

“साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम !”

कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।

देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर

वामपद असुर स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।

ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित,

मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित।

हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,

दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,

मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर

श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वरवन्दन कर।

कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ इस कविता में कहते हैं, जैसे ही श्रीराम अपने कमल के समान (राजीव नयन) नेत्रों में दायीं आंख निकाल कर ‘भगवती शक्‍ति’ को समर्प‍ित करने के लिए आगे हाथ बढ़ाते हैं, तभी विद्युत् वेग से तत्क्षण देवी का वहां पर अभ्युदय हुआ I उन्होंने तुरंत राम का हस्त थाम लिया I सामने माँ दुर्गा अपने पूरे स्वरूप एवं श्रृंगार में भास्वर थी I उन्होंने राम को आशीर्वाद दिया –

“होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।”

कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।

यहाँ पर ‘निराला’ की शब्‍द रचना और उसके मनोविज्ञान के व्यापक अर्थ हैं, पर सरल व्यंजना जो आज समझ आती है वह यही है कि देवी ‘शक्‍ति स्‍वरूपा’ ने रावण को भी उसकी तपस्‍या के फलस्‍वरूप एक स्‍थान दिया था, पर यहाँ तो वह स्‍वयं ही ‘राम’ के ह्रदयांक में समाहित हो जाती हैंI इसके साथ ही जिन देवताओं का वर्णन कवि ‘निराला’ इस कविता में कर रहे हैं, उनमें लक्ष्‍मी, सरस्‍वती, गणेश, कार्तिक और स्‍वयं महाकाल जो कालों के भी काल हैं वे भगवान शंकर का स्‍मरण है। कविता की अंतिम पंक्‍तियों में वे कहते हैं कि ‘शक्‍ति’ जब प्रसन्‍न होती है और किसी के पास आती है, तो वह अकेली नहीं आती, उनके साथ यह देवतागण भी साथ रहते हैं। फिर हिन्‍दू धर्म में हर देवता की अपनी विशेषता है। यथा; ‘लक्ष्‍मी’- धन की देवी, ‘सरस्‍वती’- ज्ञान की देवी, ‘गणेश’- बुद्ध‍ि के दाता, ‘कार्त‍िकेय’- निर्भीकता, प्रखरता, त्‍याग के देव और स्‍वयं भगवान ‘शिव’- जो संपूर्ण ब्रह्माण के सामर्थ्‍य को अपने में धारण करनेवाले देव हैं। वे आदि हैं, अनादि हैं, अनन्‍त हैं, प्रलय भी हैं और सृष्‍टी भी हैं। तात्‍पर्य शर्व शक्‍तिमान वे हैं। यानी यहां ‘शक्‍ति’ होगी, वहां यह सभी देवगण भी होंगी ही।

निराला अपनी इस कविता में एक पक्‍ति ओर लिखते हैं-

“आया न समझ में यह दैवी विधान।

रावण, अधर्मरत भी, अपना, मैं हुआ अपर,

यह रहा, शक्ति का खेल समर, शंकर, शंकर!

करता मैं योजित बार-बार शर-निकर निशित,

हो सकती जिनसे यह संसृति सम्पूर्ण विजित,

जो तेजः पुंज, सृष्टि की रक्षा का विचार,

हैं जिसमें निहित पतन घातक संस्कृति अपार।

यानी राम यहां रावण और स्‍वयं में तुलना कर रहे हैं, दोनों के कार्यों के अंतर को समझा रहे हैं, वे यहां प्रश्‍न भी यह कह कर खड़ा करते हैं कि “अन्याय जिधर, हैं उधर शक्ति।”? यह बात उन्‍हें समझ नहीं आ रही है कि जहां अन्‍याय और अत्‍याचार है वहां ‘शक्‍ति’ कैसे साथ में खड़ी हो सकती है! लेकिन यही तो सदियों से चला आ रहा सुर-असुरों का यु्द्ध है। ‘शक्‍ति’ दोनों ओर खड़ी है निरपेक्ष भाव से जो जितनी अधिक आराधना ‘शक्‍ति’ की करेगा, यह ‘शक्‍ति’ सदियों से उसी के पास रहती आई है, क्‍योंकि ‘शक्‍ति’ कभी अच्‍छा और बुरे में भेद नहीं करती। ‘शक्‍ति’ के लिए सभी समान हैं, इसलिए जो ‘शक्‍ति’ पहले रावण के साथ रहती है, प्रयत्‍न पूर्वक जब श्रीराम उसकी आराधना और अधिक उच्‍च स्‍तर पर करते हैं, यहां तक कि अपने “राजीव नयनों” को भी उन्‍हें अर्पित कर देने के लिए उठ खड़े होते हैं, तब फिर यह ‘शक्‍ति’ रावण का साथ छोड़ राम के साथ खड़ी हुई दिखाई देती है और तब यही निष्‍कर्ष निकलता है;

“होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।”

‘राम की शक्तिपूजा’ में राम सत् के प्रतीक हैं तो रावण असत् का सूचक। राम और रावण का युद्ध असत् के विरुद्ध सत् का संघर्ष है। रावण ने सीता (अच्‍छायियों) का हरण किया है। राम उसकी मुक्ति के लिए लड़ रहे हैं, वास्‍तव में सीता की मुक्ति का प्रयास सत् की पुनर्स्‍थापना का कार्य है। राम के साथ जाम्बवान, सुग्रीव, हनुमान, अंगद आदि हैं। ये सभी सत् की शक्तियों के द्योतक हैं। असत् पक्ष का परित्याग कर राम के सत् पक्ष का साथ निभाने आया, विभीषण इस संघर्ष को बल प्रदान करने आया है।कभी-कभी ऐसा होता है कि सत् पक्ष का सहयोग असत् पक्ष को मिल जाता है। महाशक्ति का आरम्भ में रावण के पक्ष में खड़ा होना इसका उदाहरण है। राम इससे ही सर्वाधिक आहत भी हैं। किन्तु ऐसा सदा नहीं रहता है। आज के समाज में कुछ दुष्ट व्यक्तियों को भले ही ‘सज्‍जन शक्‍ति’ का सहयोग मिल जाता हो, परन्तु वह अंत समय तक नहीं रहता है। सत् और असत् के इस संघर्ष में अन्त में विजय सत् पक्ष की ही होती है।

आज भारत से अलग हुआ पाकिस्‍तान भी इसी रूप में है, जिसके पास छल है, कपट है, हिंसा है, वैचारिक हथियार के रूप में ‘जिहाद’ जैसी वैचारिकता है, जिसमें गैर मुसलमान के लिए कोई जगह नहीं। जैसे कभी रावण के साथ भी कुछ शक्‍तिशाली देश खड़े थे, वैसे ही आज इस पाकिस्‍तान के समर्थन में चीन, तुर्किये जैसे देश खड़े हैं। पर भारत ने ‘राम की शक्‍ति पूजा’ के अर्थ में राम बनकर अपने संपूर्ण सामर्थ्‍य को समर्पण के रूप में दाव पर लगा दिया है। रावण के पास शक्‍ति सिर्फ एक छोटे से भाग के रूप में आई थी, जहां तो भारत में जैसे पूरी शक्‍ति ही ‘राम की शक्‍ति पूजा’ की तरह राम के शरीर में आज जैसे समाहित हो गई है।

यही कारण है कि इजराइल, रूस, जापान से लेकर अनेक देश खुलकर भारत के समर्थन में खड़े हैं, तो अनेक ऐसे भी हैं जो कुछ तटस्‍थ हैं, कुछ वे भी हैं, जो खुलकर कुछ भी बोलना नहीं चाहते। जीत यहां भारत रूपी ‘राम’ की होनी है, क्‍योंकि (शक्‍ति) को जो सबसे प्रिय है, वह सिंदूर आज भारत के पास है, सदियों से यही सिंदूर अपने पौरुष की रक्षा करता आया है। शक्‍ति के लिए आज यही सिंदूर ‘राजीव लोचन’ (भगवान श्रीराम की आंख) हो गया है। इस सिंदूर में त्‍याग है, समर्पण है, सौन्‍दर्य है और इससे भी बढ़कर वह उदीप्‍तमान आभा है जिसके प्रकाश से आच्छादित एक सुहागिन ‘मां शक्‍ति’ की आराधना अपने जीवन मे नित्‍यप्रति कर रही है। इसी ‘शक्‍ति’ को दुष्‍ट पाकिस्‍तान रूपी रावण ने आज ललकारा है। अब ‘शक्‍ति ‘कैसे छोड़ दे उसे? अब पाकिस्‍तान का सर्वनाश तो होना ही है।

साथ ही रावण का जैसा स्‍वभाव है, जिसे वो अपना कहता है, उसे ही सबसे पहले मारता और मरवाता है, फिर भी जो जाने-अनजाने रावण (पाकिस्‍तान) को अपना मान रहे हैं, उन्‍हें यह तथ्‍य जरूर समझ लेना चाहिए कि वो ‘मुहाजिर’ के नाम पर लोगों को मार रहा है। “दुनिया में जितने मुसलमान पाकिस्‍तान ने मारे, उतने किसी ने नहीं, पाकिस्‍तानी फौज ने एक रात में फिलीस्‍तीन जाकर 10 हजार मुसलमानों को मार दिया था। 02 लाख बलूचिस्‍तान में ये मुसलमान मार चुके। बांग्‍लादेश में 30 लाख मुस्‍लिम लोगों को मार चुके और अफगानिस्‍तान में 04 लाख मुसलमानों को पाकिस्‍तान अब तक मार चुका है।” (,बलूचिस्तान की निर्वासित प्रधानमंत्री नायल कादरी)।

यदि फिर भी किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा तो कुछ किया नहीं जा सकता है! उनकी नियती भी उधर से न सही इधर से सही ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे प्रयोगों के तहत प्रतिबंधित जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिदीन एवं अन्‍य भारत विरोधि‍यों के आतंकी ठिकानों से जुड़कर अपनी मौत को आमंत्रण देना, बना रहेगा। उन्‍हें इसी तरह भारत द्वारा उड़ाया जाता रहेगा। यहां सनातन हिन्‍दू स्‍त्री के सुहाग का प्रतीक ‘सिंदूर’ बार-बार धूल के रूप में आसुरी प्रवृत्‍त‍ियों के शरीर पर चारों ओर ऐसे ही जैसा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद का दृष्‍य दिखाई दे रहा था, ठीक वैसे ही हवा में सर्वत्र उड़ता रहेगा।

लेखक - 
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी 

 

 

 
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