हमारे कई अनसुलझे सवालों का एक ही जवाब है. कुछ तो है जो सारी होनी और अनहोनी का परम कारण है और वह है सर्वशक्तिमान ईश्वर. अपनी अपनी भाषाओं के आधार पर लोगों ने उसे नाम दिया और भौगोलिक साधनों के आधार पर नाना प्रकार के रीति रिवाज बनाये गए.
हमें फायदे और नुकसान परखने की आदत है. धर्म और कर्म इससे अछूते नहीं. धर्म न मानने वालों के पास अपने इस विस्वास के प्रति हजारों कारण होते हैं. ठीक इसी तरह धार्मिक समुदाय में धार्मिकता के हजारों तथ्य मौजूद हैं. अब सवाल ये उभरकर सामने आता है__दोनों की सार्थकता जिस तथ्य पर निर्भर है वह कितना प्रमाणिक है?
धर्म का अस्तित्व समझने के लिए निम्नलिखित अकाट्य तथ्यों को समझना होगा…..
धर्म की सर्वव्यापकता:
यदि गंभीरता से धर्म की व्यापकता के बारे में सोचा जाये तो दुनिया का ऐसा कोई कोना नहीं जहाँ इसकी मौजूदगी न हो. किसी न किसी रूप में विभिन्न रीती रिवाजों से धार्मिक क्रियाएं संपन्न की जाती हैं. जब आज की तरह फ़ास्ट ट्रवेलिंग के साधन नहीं थे, एक दूसरे तक पहुंचना मुश्किल था. फिर भी लोगों ने अपनी भाषा में एक सर्वशक्तिमान की प्रार्थना की और इसका उन्हें सकारात्मक रिजल्ट भी मिला.
अपार ब्रह्मांड और प्रकृति:
विज्ञान भी नतमस्तक है और इस रहस्य से पर्दा नहीं उठा पाया कि इतना बड़ा ब्रह्मांड कैसे बना? बिग बैंग थ्योरी को मानकर हम पृथ्वी की उत्पत्ति पर अथवा चंद्रमा की उत्पत्ति पर तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं परंतु इस थ्योरी के लिए उपयुक्त बड़े बड़े पिंड कहाँ से आये? हजारों प्रकास वर्ष तक फैली ये संरचना किसने बनाई? जब हम निरुत्तर होते हैं, एक विस्वास जन्म लेता है. यह अटूट विस्वास हमारा धर्म बन जाता है.
फ्यूचर जनरेशन एक जटिल सवाल:
विज्ञान एवोल्यूशन की थ्योरी में विस्वास करता है. हमारे आवश्यकता के अनुसार हमारे जीवन ऊतकों ने हमारी संरचना में बदलाव किया और हम इस मूर्त रूप में इवॉल्व हुए. परंतु करोणों प्रजातियों को देखा जाए और इनकी उत्पत्ति पर बारीकी से अध्ययन किया जाए तो सारी प्रकृति कुछ बेसिक तत्वों से बने हुए हैं और सालों साल से उनमें अपने पैरेंट सब्जेक्ट से पूरी समानता पायी जाती है. यह जटिल संरचना हमेशा एक जैसी होती है; यह एवोल्यूशन की थ्योरी पर बड़ा सवाल है और एक सर्व शक्तिमान सकारात्मक एनर्जी का प्रमाण. धर्म यहां अपना रूप धारण करता है.
SPIRITUALITY – शांति की खोज:
हमारी समस्याओं की कोई सीमा न थी और न है. हमारे डर के सैकड़ों कारण थे परंतु हमारे जीने का एक ही सहारा था और है भी— वो है, कुछ तो अच्छा होगा? यह क्या है? यह संभावना है; इसका एक ही कारण है हमारा विस्वास उस अनजान अनदेखे शक्ति में.
हमारे कई अनसुलझे सवालों का एक ही जवाब है. कुछ तो है जो सारी होनी और अनहोनी का परम कारण है और वह है सर्वशक्तिमान ईश्वर. अपनी अपनी भाषाओं के आधार पर लोगों ने उसे नाम दिया और भौगोलिक साधनों के आधार पर नाना प्रकार के रीति रिवाज बनाये गए.
अनुभवी लोगों ने आध्यात्मिकता (Spirituality) पर सैकड़ों किताबें लिखा. और जब हमें पता चलता है कोई तो सहारा है जो मेरे ऊपर हमेशा अपना हाथ बनाये रखता है तो हमे शांति की अनुभूति होती है.
नास्तिक विचारधारा:
जब कोई घटना हमारे अनुरूप नहीं घटती, हमारी प्रार्थना अनसुनी सी प्रतीत होती है, तब हमें ईश्वर के होने पर शक होता है और विज्ञान की बिग बैंग व एवोल्यूशन की थ्योरी हमें एक संभावना से दो चार करती हैं. तब हम पुराने अप्रामाणिक प्रतीत होने वाले भगवान को पुरी तरह नकार देते है. परंतु जब सारे फैसले खुद अपनी बुद्धिमत्ता के आधार पर लेते हैं, और सारी घटनाओं की जिम्मेदारी हमारी बन जाती है तो कई समायाएँ भी उत्पन्न होती हैं. जिसमें तमाम तरह के मानसिक रोग शामिल हैं.
विज्ञान धर्म का अस्तित्व सिद्ध करता है:
मनोचिकित्सक मानते हैं कि धर्म को मानने वाले व्यक्ति के अंतर्मन से उत्पन्न शक्तियां उसे किसी भी शारीरिक तथा मानसिक रोगों से उबरने में रामबाण साबित होती हैं. धार्मिक विचारधारायुक्त व्यक्ति सात्विक व शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करता है. वह आम लोगों के विपरीत सुखी, निरोगी और दीर्घायु होता है.
धर्म अटूट श्रद्धा से उत्पन्न होता है जो कि हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है. यह ऊर्जा हमें कई असंभव वस्तुओं को प्राप्त करने में सहायक होती है.
हमें किस धर्म को मानना चाहिए?
हम अक्सर इस समस्या में उलझकर रह जाते हैं, कौन सा धर्म सबसे पुराना है? कौन सा ईश्वर सबसे शक्तिमान है? किस मार्ग पर चलकर सर्वशक्तिमान से जल्दी मुलाकात होगी? किस धर्म मे जल्दी सुख और समृद्धि की प्राप्ति होगी?
तो मित्रों! ऐसा कोई धर्म नहीं है. भगवान आप से मिलने नहीं आने वाले और न ही वे आपको छप्पर फाड़ के कुछ देने वाले है. हमारी श्रद्धा ही हमारे भगवान को उत्पन्न करती है और सारे चमत्कार का कारण बनती है. सारी सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है. जिस धर्म को आप मानते है उसे बदलने की जरूरत नहीं. उसे ढंग से समझने की जरूरत है.
अपने ईश्वर में विस्वास करो, अपनी किताबों की बारीकियों को समझो. विद्वानों के अनुभवों से शांति की अनुभूति करो. सारी बिगड़ी खुद ही बनती जाएगी. कोई धर्म हमें लड़ना नहीं सिखाता. हर धर्म शांति और समृद्धि की खोज है तथा जीवन जीने की कला.
मशहूर शायर निदा फ़ाज़ली के शब्दों में… “अक़ीदा तरासो, इबादत करो” अर्थात अपने ईश्वर में दृढ़ श्रद्धा रखो और उसकी पूजा अर्चना करो. अगर कोई धर्म आपको शांति नहीं प्रदान करता, तो नास्तिकता में कोई बुराई नहीं जब तक यह आपको सकारात्मक परिणाम देता है.
लेखक - बृजेश उपाध्याय