मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग खान मुग़ल साम्राज्य के समय के गायक, कवी थे. उन्होंने ब्रिटिश अत्याचार को करीब से देखा था. वे अपने मन की व देश की मनोदशा को अपनी गजल के माध्यम से सब तक पहुंचाते थे. उनके द्वारा रचित शेरो शायरी आज तक लोगों की जुबान में है व पसंद की जाती है. ऐसे ही महान फ़नकार मिर्ज़ा ग़ालिब के जीवन पर दूरदर्शन नेशनल द्वारा 1988 में टीवी सीरीज बनाई गई थी. इसमें मुख्य किरदार महान एक्टर नशीरुद्दीन शाह ने निभाया था. इस सीरियल में ग़ज़ल भी गाई जाती थी, जिसे गजलकार जगजीत सिंह ने लिखा व गाया था. सीरियल के द्वारा हम मुग़ल साम्राज्य व मिर्ज़ा ग़ालिब के संबंधो को करीब से जान पाए, साथ ही मिर्ज़ा ग़ालिब के जीवन के अनछुए पहलु को भी जानने का मौका मिला.
मिर्ज़ा ग़ालिब जीवन
मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग खान साहब का जन्म आगरा के काला महल में हुआ था. इनके पूर्वज तुर्की में रहा करते थे. इनके पिता लखनऊ के नबाब के यहाँ काम करते थे, लेकिन 1803 में इनकी मौत हो गई, जिसके बाद छोटे से मिर्जा को उनके चाचा ने बड़ा किया. 11 साल की उम्र से ही मिर्ज़ा ने कविता लिखना शुरू कर दिया था. मिर्जा ने 13 साल की उम्र में उमराव बेगम से शादी कर ली. मिर्ज़ा साहब ने लाहौर, जयपुर दिल्ली में काम किया था, बाद में वे आगरा आकर रहने लगे. अपनी हर रचना वो मिर्ज़ा या ग़ालिब नाम से लिखते थे, इसलिए उनका ये नाम प्रसिध्य हुआ. 1850 में बहादुर शाह ज़फर की सत्ता में आने के बाद मिर्ज़ा ग़ालिब को मुख्य दरबारी बनाया गया. राजा को भी कविता में रूचि थी, 1854 में मिर्ज़ा इनको कविता सिखाने लगे. 1857 में जब ब्रिटिश राज से मुग़ल सेना की हार हुई, तब पूरा साम्राज्य नष्ट हो गया. मिर्ज़ा साहब को इस समय उनकी आय मिलना भी बंद हो गई थी.
मिर्ज़ा ग़ालिब सीरियल की कहानी व किरदार
मुग़ल साम्राज्य के समय में व उसके नष्ट होने के बाद मिर्जा साहब की क्या स्थति थी, यही सीरियल की मुख्य कहानी है. मुग़ल साम्राज्य ख़त्म होने के बाद मिर्जा आगरा से दिल्ली के प्रवासी हो गए. जहाँ इन्हें पेंशन मिलना भी बंद हो गई, जिससे इनके खाने के भी लाले पड़ गए. पैसों के लिए ये वहां के लोकल कवी लोगों को अपनी कविता सुनाकर प्रभावित करते थे. लेकिन एक महान कवी उनके अंदर था, जिसे सबने जाना और पसंद किया.
नशीरुद्दीन शाह –
मिर्ज़ा ग़ालिब के रूप में नसीर शहब ने अपने करियर का बेस्ट परफॉरमेंस दिया था. वे जैसे मिर्ज़ा के रूप में ढल ही गए थे. उनकी एक्टिंग देखकर लगता ही नहीं था कि ये कोई रोल कर रहे है. लगता था ये तो इनका असली जीवन है. सीरियल को देखने के बाद सबका कहना था कि इस किरदार को नशीरुद्दीन साहब से अच्छा और कोई नहीं कर सकता था.
मिर्जा ग़ालिब के निर्माता, लेख़क व संगीतकार –
दूरदर्शन का दौर शुरू होते ही, मिर्जा ग़ालिब सीरियल 1988 में आ गया था. सीरियल के पहले गुलज़ार साहब संजीव कुमार के साथ इस विषय पर फिल्म बनाना चाहते थे. उस समय नशीरुद्दीन साहब को बहुत कम लोग जानते थे, फिर भी उन्होंने गुलज़ार को एक ख़त लिखा और कहा वो ये मिर्ज़ा ग़ालिब का रोल करना चाहते है, और इसके लिए वो इंतजार भी कर सकते है. संजीव कुमार की आकस्मिक मौत के साथ गुलज़ार का इस पर फिल्म बनाने का सपना भी टूट गया. इस घटना के कुछ सालों बाद उन्होंने इस पर टीवी सीरियल बनाने का सोचा. नशीरुद्दीन साहब के लिए इस रोल को पाना किसी बड़े सपने का साकार होना जैसे था. गुलजार साहब कहते थे, सीरियल का ख्याल आते ही उनके जहन में सबसे पहले नशीरुद्दीन का नाम आया| संजीव कुमार एक बेहतरीन कलाकार थे, जो मिर्ज़ा का रोल बहुत अच्छा करते, लेकिन नसीर खुद एक मिर्ज़ा थे, जिस वजह से ये रोल जैसे उनके लिए ही बना है.
सीरियल के निर्माता जाने माने गुलशन कुमार थे. इस सीरियल को हमारे देश के महान लेखक गुलज़ार साहब ने लिखा था, जिन्होंने बहुत से गाने, फिल्म लिखी. गुलज़ार की कलम से निकला हर एक अक्षर उनके स्वाभाव को दर्शाता है. लेखन के साथ उन्होंने सीरियल को डायरेक्ट भी किया था. जो अपने आप में इस सीरियल को हिट बनाता है.
इस सीरियल की जान थी इसका संगीत. मिर्ज़ा जैसे महान शायर, कवि को टीवी पर दिखने के लिए एक महान संगीतकार की जरूरत थी. इसे साकार किया जगजीत सिंह ने. जगजीत जी देश के महान गजल गाने व लिखने वाले थे. मिर्ज़ा ग़ालिब में उन्होंने अपनी खुद की रचना को बखूबी प्रस्तुत किया. उनका इसमें साथ गजल गायिका चित्रा सिंह ने दिया, जो उनकी पत्नी भी थी. इस सीरियल में मिर्जा साहब रचना, शायरी को भी जगजीत साहब ने अपने तरीके से दिखाया. इस सीरियल की सभी गजलें मास्टरपीस थी, जो आज भी सुनी व पसंद की जाती है.
मिर्ज़ा ग़ालिब फिल्म - 1954
1954 में मिर्ज़ा ग़ालिब नाम की फिल्म सौरभ मोदी द्वारा बनाई गई थी. ये हिंदी व उर्दू में थी, जिसमें भारत भूषण मुख्य भूमिका में थे. फिल्म की कहानी मिर्ज़ा ग़ालिब के जीवन पर ही आधारित थी. फिल्म में सुरैया जैसी महान अभिनेत्री भी थी. फिल्म को 1955 में बेस्ट फिल्म का राष्ट्रीय पुरूस्कार भी मिला था.
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब सीरियल गज़ल जगजीत सिंह
· आह को चाहिए एक उम्र
· बस के दुश्वार है हर काम
· दिल-ये-नादान तुझे हुआ क्या
· दिल ही तो है ना
· दोस्त गम ख्वारी में मेरी
· हर एक बात पर कहते हो तुम
· इश्क मुझको नहीं
· न था कुछ तो खुदा था
ये कुछ प्रसिध्य गजलें है, जो सीरियल में जगजीत सिंह व चित्रा सिंह द्वारा गाई गई थी.
सीरियल में गुलज़ार, जगजीत सिंह व नशीरुद्दीन शाह जैसे महान हस्तियों का अभूतपूर्व मिलन है. ऐसे महान कलाकारों को एक साथ काम करते देख एक सुखद अनुभूति होती है. आज के समय में ये नामुमकिन है, लेकिन उस समय के इस सीरियल को देख हम फिर से यादें ताजा कर सकते है. अगर आप इनमें किसी एक के भी फैन है, तो ये सीरियल को एक बार ऑनलाइन जरुर देखें.