अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के अधिकारियों पर लगाए गए प्रतिबंधों की फ्रांस और खुद ICC ने कड़ी आलोचना की है। यह कदम ICC द्वारा इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ युद्ध अपराधों की जांच के संदर्भ में उठाया गया है।
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इन प्रतिबंधों की घोषणा करते हुए कहा कि न्यायाधीश निकोलस गुइलौ सहित पांच ICC अधिकारियों को अमेरिका में प्रवेश से रोक दिया गया है, और उनकी अमेरिका में स्थित किसी भी संपत्ति को ज़ब्त किया जा सकता है। इनमें कनाडाई न्यायाधीश किम्बर्ली प्रोस्ट, उप अभियोजक नज़हत शमीम खान (फ़िजी) और मामे मंडियाये नियांग (सेनेगल) भी शामिल हैं, जिन्होंने विभिन्न मामलों में युद्ध अपराधों की जांच की थी—कुछ में अमेरिकी हित भी जुड़े हुए थे।
फ्रांस ने इस निर्णय की तीखी आलोचना करते हुए इसे "न्यायिक स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार" बताया। फ्रांसीसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि न्यायाधीशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की स्वायत्तता का सम्मान किया जाना चाहिए।
आईसीसी ने भी बयान जारी कर कहा कि ये प्रतिबंध न्यायालय की निष्पक्षता, स्वतंत्रता और वैश्विक न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता को खतरे में डालते हैं। न्यायिक संस्थाओं के खिलाफ इस प्रकार की कार्रवाइयाँ अंतरराष्ट्रीय न्याय के सिद्धांतों के विपरीत हैं।
इस विवाद की पृष्ठभूमि में ICC द्वारा हाल ही में गाजा युद्ध के दौरान संभावित युद्ध अपराधों को लेकर नेतन्याहू और पूर्व इज़राइली रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था। इसी मामले में हमास कमांडर मोहम्मद दीफ का नाम भी शामिल था, जिन्हें बाद में एक इज़राइली हमले में मार गिराया गया।
अमेरिका के इस कदम से अंतरराष्ट्रीय मंच पर बहस तेज हो गई है, जहां एक ओर न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा की मांग की जा रही है, वहीं दूसरी ओर बड़ी शक्तियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय न्याय संस्थानों पर दबाव बनाए जाने की आलोचना हो रही है।