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Science & Technology

फसल की बढ़वार में मददगार 'इलेक्ट्रॉनिक मिट्टी'

Date : 28-Dec-2023

स्वीडन के लिंकोपिंग विश्वविद्यालय में हुए शोध में पता चला है कि पौधों की वृद्धि बढ़ाने में इलेक्ट्रॉनिक मिट्टी काफी मददगार है। रिसर्चर एलेक्जेंड्रा सैंडहेन एवं एसोसिएट प्रोफेसर एलेनी स्टावरिनिडौ के शोध के मुताबिक पौधों की वृद्धि को बढ़ाने के लिए "इलेक्ट्रॉनिक मिट्टी" को कम पावर की बिजली प्रवाहित कर फसलों की बढ़वार सुनिश्चित की जा सकती है।

इन वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में चौंका देने वाली बात नोटिस की जिसके तहत जौ के पौधे औसतन 50% अधिक बढ़ते पाए गए जब उनकी जड़ को विकसित करने के लिए दिए गए माध्यम में विद्युत प्रवाह दिया। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की प्रोसिडिंग में प्रकाशित अध्ययन में लिंकोपिंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने जिस मिट्टी रहित खेती के लिए विद्युत प्रवाह की जाने वाली "इलेक्ट्रॉनिक मिट्टी" का विकास किया है, उसे हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से खेती करने जैसा तकनीक माना जा सकता है।

लिंकोपिंग विश्वविद्यालय में ऑर्गेनिक इलेक्ट्रॉनिक्स वैज्ञानिक प्रोफेसर एलेनी स्टावरिनिडौ के अनुसार, विश्व की जनसंख्या बढ़ रही है और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियां भी हैं। ऐसी हालत में हम केवल पहले से मौजूद कृषि तकनीकों से ही खाद्य आपूर्ति को पूरा करने में सक्षम नहीं होंगे। बल्कि, हाइड्रोपोनिक्स जैसी तमाम तकनीक जो हमारी ग्रामीण तथा शहरी वातावरण में भी बहुत कम से कम जगह में अन्न उगाने की क्षमता रखते हैं, काफी अहम हो जाती है।

इस अनुसंधान समूह के अनुसार हाइड्रोपोनिक खेती के तौर-तरीके से मिलता-जुलता ही यह तरीका है। इसमें एक विद्युत प्रवाह को जड़ों को उगाने के लिए बनाई गई ऐसी इलेक्ट्रॉनिक पट्टी विकसित की है, जिसे वैज्ञानिकों ने "इलेक्ट्रॉनिक मिट्टी" का नाम दिया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि विद्युत प्रवाह को "इलेक्ट्रॉनिक मिट्टी" में प्रवाहित करने के बाद उगाए गए जौ के पौधे 15 दिनों में 50% अधिक बढ़ गए। वह इस नतीजे पर पहुंचे कि जब फसल की जड़ों को विद्युत प्रवाह से उत्तेजित किया गया तो पौधों की वृद्धि तेज हो गई।

यहां यह है बताना जरूरी है कि "हाइड्रोपोनिक विधि" से खेती का मतलब है कि पौधे बिना मिट्टी के उगाए जाते हैं। उन्हें केवल पानी, पोषक तत्वों और कुछ ऐसी चीजों की आवश्यकता होती है, जिससे उनकी जड़ें किसी धरातल या पट्टी जैसी सतह पाकर फसल की भरपूर बढ़वार कर सके। दरअसल, यह एक संकरे या बंद कमरे में खेती की प्रणाली को बढ़ावा देने वाली तकनीक है जो पानी के रीसाइक्लिंग को प्राकृतिक तौर पर सक्षम बनाती है। ताकि प्रत्येक अंकुर को ठीक वही वातावरण तथा पोषक तत्व मिलें जिनकी उसे उर्वर खेत में मिलती है। इस तकनीक में बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है और सभी पोषक तत्व बेकार नहीं जाते और उनका बेहतर उपयोग होता है जो पारंपरिक खेती में संभव नहीं है।

हाइड्रोपोनिक्स खेती के तरीके से दुनियाभर में पहले से ही खेती की जा रही है। इसके माध्यम से सलाद वाली सब्जियां, जड़ी-बूटियाँ और अनेक बेमौसम सब्जियाँ शामिल हैं। आमतौर पर कुछ अनाज और कुछ खास सब्जियों के अलावा उगाने का कार्य हाइड्रोपोनिक्स में नहीं किया जाता है। शोधकर्ता बताते हैं कि हाइड्रोपोनिक्स का उपयोग करके जौ के पौधों की खेती की जा सकती है और विद्युत प्रवाह किए जाने से पौधों की वृद्धि बढ़ती जाती है।

प्रोफेसर एलेनी स्टारवरिनिडौ के अनुसार, हम कम संसाधनों के साथ तेजी से बढ़ने वाले पौधे प्राप्त कर सकते हैं। हम अभी तक नहीं जानते कि यह वास्तव में कैसे काम करता है, इसमें कौन से जैविक तंत्र शामिल हैं। हमने पाया है कि अंकुर नाइट्रोजन को अधिक प्रभावी ढंग से संसाधित करते हैं, लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि विद्युत उत्तेजना इस प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक "इलेक्ट्रॉनिक मिट्टी" निर्माण का लाभ यह है कि इसमें ऊर्जा की खपत बहुत कम है और उच्च वोल्टेज का कोई खतरा नहीं है। प्रोफेसर एलेनी स्टावरिनिडो का मानना है कि इस नए अध्ययन से हाइड्रोपोनिक खेती को विकसित करने के लिए नए अनुसंधान करने का नया मार्ग खुलेगा। उनका यह भी कहना है कि हम यह नहीं कह सकते कि हाइड्रोपोनिक्स तकनीक अकेले खाद्य सुरक्षा की समस्या का समाधान करेगा। लेकिन, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कम कृषि योग्य भूमि और कठोर पर्यावरणीय परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में यह तकनीकी मदद कर सकता है।

 
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