अब धरती पर बिजली का आगमन अंतरिक्ष से होगा, बिना खंभों और तारों के जानिए, यह कैसे आम घरों तक पहुंचेगी
Date : 31-Oct-2024
अब धरती पर बिजली अंतरिक्ष से आएगी बिना खंभों और तारों के। यह संभव करने के लिए एक ब्रिटिश स्टार्टअप ने "स्पेस सोलर पावर प्रोजेक्ट" का प्रस्ताव रखा है, जो दावा करता है कि केवल 30 मेगावॉट ऊर्जा की बीम से 3,000 घर रोशन हो सकते हैं।
क्या अंतरिक्ष से पृथ्वी पर बिजली की सप्लाई संभव है? हां, निकट भविष्य में यह सच होने जा रहा है। अमेरिका, चीन, और जापान सहित कई देश इस क्षमता को हासिल करने की कोशिश में हैं। यह ब्रिटिश स्टार्टअप 2030 तक एक सैटेलाइट के जरिए बिजली सप्लाई शुरू करने का लक्ष्य रखता है, जिसमें आइसलैंड को पहला लाभ मिलेगा।
अगर यह प्रयास सफल होता है, तो यह रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में एक नई क्रांति होगी। चाहे मौसम कैसा भी हो, सैटेलाइट से सातों दिन, 24 घंटे बिजली उपलब्ध होगी। ब्रिटेन की स्पेस सोलर, आइसलैंड की रिकजेविक एनर्जी और ट्रांजिशन लैब मिलकर इस परियोजना पर काम कर रहे हैं, जिसमें एक ऐसा सैटेलाइट लॉन्च करने की योजना है जो 30 मेगावॉट ऊर्जा की बीम पृथ्वी पर भेजेगा, जिससे लगभग 3,000 घरों को रोशन किया जा सकेगा।
यह सैटेलाइट लगभग 400 मीटर चौड़ा होगा और इसका वजन 70.5 टन तक हो सकता है। यह पृथ्वी की मध्यम कक्षा में 2,000 से 36,000 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा करेगा। ऊर्जा को हाई-फ्रीक्वेंसी रेडियो तरंगों के रूप में भेजा जाएगा, जिसे जमीन पर रिसीविंग एंटेना इकट्ठा करके बिजली में बदल देंगे और पावर ग्रिड में भेजेंगे।
एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स, इस सैटेलाइट को लॉन्च करेगी, जो स्टारशिप मेगारॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। स्पेस सोलर पावर प्रोजेक्ट का लक्ष्य 2036 तक छह अंतरिक्ष-आधारित सौर ऊर्जा स्टेशनों की एक फ्लीट तैयार करना है, जिसमें से प्रत्येक स्टेशन पर लगभग 80 करोड़ डॉलर (करीब 67.26 अरब रुपए) का खर्च आएगा। इस सिस्टम में पारंपरिक अक्षय ऊर्जा स्रोतों की तरह बिजली उत्पादन में रुकावट नहीं होगी।
सुनामी के कारणों की खोज में, ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय (एएनयू) के शोधकर्ताओं और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों का एक दल जापान ट्रेंच के अनूठे मिशन पर जा रहा है। जापान ट्रेंच, उत्तरी प्रशांत महासागर के पश्चिमी भाग में स्थित एक समुद्री खाई है, जिसकी गहराई लगभग आठ किलोमीटर (8046 मीटर) है।
शोधकर्ता अत्याधुनिक उपकरणों का उपयोग करके समुद्र के तल में लगभग एक किलोमीटर की गहराई तक ड्रिल करेंगे और प्राप्त नमूनों का व्यापक अध्ययन करेंगे। अभियान के निदेशक प्रोफेसर रॉन हैकनी के अनुसार, इस अभियान का एक उद्देश्य 2011 के विनाशकारी भूकंप के बाद के चट्टानी नमूनों में हुए बदलावों की जांच करना भी है।
यह अभियान लगभग सात महीने तक चलेगा और इसे अंतरराष्ट्रीय महासागर खोज कार्यक्रम (IODP) का अंतिम चरण माना जा रहा है। पिछले एक दशक में 81 ऑस्ट्रेलियाई और न्यूजीलैंड के वैज्ञानिक विभिन्न ड्रिलिंग अभियानों में भाग ले चुके हैं।