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बीज जनित बैक्टीरिया मक्का के पौधों को फंगल रोगजनकों से दूर रखेंगे

Date : 06-Dec-2024

वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) विज्ञान संस्थान के वनस्पति विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों और उनकी शोध छात्रों की टीम ने मक्का की फसल को खतरनाक कवक से बचाने के लिए महत्वपूर्ण खोज की है। विभाग के डॉ. सतीश कुमार वर्मा के नेतृत्व में शोध छात्रों की टीम ने मक्का की फसलों को फ्यूजेरियम वर्टिसिलियोइड्स नामक खतरनाक कवक से बचाने के लिए एक प्राकृतिक विधि का समाधान ढ़ुढ़ निकाला है।

यह रोगजनक कवक, महत्वपूर्ण फसल के नुकसान के लिए जिम्मेदार तो है ही वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरा है। टीम के शोध से पता चला कि बीज जनित बैक्टीरिया, जिन्हें एंडोफाइट्स के रूप में जाना जाता है, पौधों के विकास को बढ़ावा देने और मक्का को फंगल रोगजनकों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये एंडोफाइट्स, जिन्हें पिछले अध्ययनों में काफी हद तक अनदेखा किया गया है, विभिन्न प्रकार के जैविक और अजैविक तनावों के खिलाफ पौधों की सहनशीलता बढ़ाने की महत्वपूर्ण क्षमता रखते हैं। शोध टीम में शामिल गौरव पाल, कंचन कुमार, समीक्षा सक्सेना, आनंद वर्मा, दीपक कुमार और पूजा शुक्ला के इस कार्य से खेती की रणनीतियों में क्रांतिकारी बदलाव आ सकते हैं। इससे किसान अधिक सक्षम बन सकेंगे।

डॉ. सतीश वर्मा के अनुसार मक्का के बीज के भीतर रहने वाले एंडोफाइट्स प्राकृतिक जैव-कारखानों के रूप में काम करते हैं, जो पौधे के विकास और बढ़ने के लिए आवश्यक ऑक्सीन, साइटोकिनिन और जिब्रेल्लिन जैसे फाइटोहोर्मोन का उत्पादन करते हैं। इसके अलावा, वे वायुमंडलीय नाइट्रोजन को फिक्स करते हैं और फॉस्फेट और लोहे जैसे खनिजों को घुलनशील बनाते हैं। यह पौधों के पोषण के लिए महत्वपूर्ण हैं। अपने विकास को बढ़ावा देने वाले कार्यों से परे, ये एंडोफाइट्स जैव नियंत्रण एजेंटों के रूप में कार्य करते हैं, जो एंटीफंगल यौगिकों का उत्पादन करते हैं जो हानिकारक रोगजनकों के विकास को रोकते हैं, जिसमें फ्यूजेरियम वर्टिसिलियोइड्स भी शामिल हैं। अध्ययन से पता चलता है कि इन एंडोफाइट्स को हटाने से अंकुर की वृद्धि और विकास में समझौता हो जाता है, जबकि इन्हें पुन: प्रस्तुत करने से पौधा स्वास्थ्य हो जाता है। डॉ. वर्मा के शोध में जोर दिया गया है कि जंगली मक्का की किस्मों में इन लाभकारी एंडोफाइट्स की संख्या ज्यादा होती है, जो भविष्य की खोज में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं।

एंडोफाइटिक बैक्टीरिया बैसिलस वेलेज़ेंसिस मक्का के फसल को बचाता है

शोध टीम की खोज में पता चला कि एंडोफाइटिक बैक्टीरिया बैसिलस वेलेज़ेंसिस मक्का के पौधों को, फ्यूजेरियम वर्टिसिलियोइड्स नामक खतरनाक कवक से बहुत अच्छी तरह बचाता है। बैसिलस वेलेज़ेंसिस खास रसायन बनाता है, जैसे बैसिलोमाइसिन डी और फेंगिसिन, जो इस कवक को बढ़ने से रोकते हैं। इसके अलावा, यह बैक्टीरिया मक्का की प्रतिरक्षा शक्ति को भी बढ़ाता है। यह पौधे को खुद के सुरक्षा रसायन बनाने के लिए प्रेरित करता है, जिससे पौधा और मजबूत हो जाता है और कवक के प्रति अधिक प्रतिरोधक बन जाता है। इसका मतलब है कि बैसिलस वेलेज़ेंसिस एक तरफ तो सीधे कवक को रोकता है और दूसरी तरफ पौधे की रक्षा प्रणाली को भी मजबूत करता है। यह तरीका प्राकृतिक और बहुत ही प्रभावी है, जो किसानों को रासायनिक कीटनाशकों पर कम निर्भर रहने में मदद कर सकता है। सीधे शब्दों में, बैसिलस वेलेज़ेंसिस हमारे मक्का के पौधों की सुरक्षा के लिए एक बेहतरीन प्राकृतिक तरीका है। यह न केवल फसल को बीमारियों से बचाता है, बल्कि पौधों को भी मजबूत बनाता है। शोध टीम के नेतृत्व कर्ता के अनुसार एक और महत्वपूर्ण एंडोफाइटिक जीवाणु है; लाइसिनिबैसिलस। यह जीवाणु ऑक्सिन नामक हार्मोन का उत्पादन नियंत्रित करके मक्का की जड़ों के विकास में मदद करता है। ऑक्सीन जड़ों की वृद्धि के लिए बहुत जरूरी है। लाइसिनिबैसिलस मक्का में नाइट्रोजन के उपयोग को भी बेहतर बनाता है, जिससे पौधे स्वस्थ और मजबूत होते हैं। इस शोध से टिकाऊ खेती के लिए बड़ा फायदा हो सकता है। प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले इन एंडोफाइट्स के उपयोग से रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों पर निर्भरता कम हो सकती है, जो पर्यावरण के लिए अच्छा है।

शोध के नतीजे प्रसिद्ध पत्रिकाओं में प्रकाशित

डॉ. वर्मा की टीम ने अपने शोध के नतीजे माइक्रोबाॅयोलॉजिकल रिसर्च, प्लांट एंड सॉइल, और प्लांट फिजियोलॉजी और बाॅयोकेमिस्ट्री जैसी प्रसिद्ध पत्रिकाओं में प्रकाशित किए हैं। उनके शोध से पता चला है कि माइक्रोबियल एंडोफाइट्स फसलों की देखभाल में बड़े बदलाव ला सकते हैं। ये एंडोफाइट्स, जो पौधों के अंदर रहते हैं, प्राकृतिक तरीके से फसल को बीमारियों से बचा सकते हैं। इसके साथ ही ये खाद्य उत्पादन को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं, जिससे हमें अधिक और बेहतर गुणवत्ता वाला फसल मिल सके। यह तरीका पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना फसलों की पैदावार बढ़ाता है, जिससे टिकाऊ खेती संभव हो सकती है।

 
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