पूर्वी चंपारण, 01 मार्च : जिला के पहाड़पुर प्रखंड स्थित परसौनी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक अब तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। तिल की खेती को बढ़ावा देने के लिए समूह अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण कार्यक्रम के तहत किसानो को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस पहल से न केवल तिलहन की पैदावार में वृद्धि होगी, बल्कि फसल विविधिकरण को भी प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे किसानों के पास अतिरिक्त आय का स्रोत होगा और वे अपनी कृषि प्रणाली को और अधिक मजबूत बना सकेंगे। साथ ही, फसल विविधिकरण से भूमि की उर्वरता भी बनी रहती है।
इस संदर्भ में, केंद्र के विषय वस्तु विशेषज्ञ (कृषि अभियंत्रण) डॉ. अंशू गंगवार ने पहाड़पुर प्रखंड के ग्राम कचहरी टोला में तिल की खेती पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में अत्युत्तम किसान उत्पादक संगठन के सदस्य और अन्य किसान उपस्थित थे। कार्यक्रम के दौरान किसानों को तिल की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई, साथ ही सफेद रंग के तिल के बीज और अन्य आवश्यक इनपुट की मदद भी प्रदान की गई।
कार्यक्रम के शुभारंभ में, डॉ. गंगवार ने किसानों को समूह अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताया और तिल की खेती के महत्व पर चर्चा की। उन्होंने तिल उत्पादन में कृषि यंत्रीकरण के महत्व को रेखांकित करते हुए किसानों को सीड ड्रिल मशीन का उपयोग करने की सलाह दी।
केंद्र के मृदा विशेषज्ञ, डॉ. आशीष राय ने किसानों को तिल की बुआई के लिए जरूरी सुझाव दिए। उन्होंने कहा कि गर्मी के मौसम में तिल के बीज की 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई करनी चाहिए। तिल के दाने बड़े आकार के होते हैं और इसमें लगभग 40-50 प्रतिशत तेल और भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। तिल की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी वाली उपजाऊ भूमि सबसे उपयुक्त होती है। उन्होंने यह भी सलाह दी कि बीज जनित रोगों से बचाव के लिए उपचारित बीज का उपयोग करें और तिल की बुआई कतारों में की जाए, जिसमें कतारों के बीच कम से कम 20 सेंटीमीटर की दूरी हो। सिंचित क्षेत्रों में बीज की गहराई 2-3 सेंटीमीटर तक रखी जानी चाहिए।