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हमीरपुर : तीस फीट ऊंचे मंदिर का आज तक नहीं बना गुबंद

Date : 04-Aug-2024

 हमीरपुर। हमीरपुर जिले के बीहड़ में बने शिव मंदिर में ऊँ नम शिवाय का जाप अनवरत जारी है। यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है, जिसके गर्भ में पाताली शिवलिंग स्थित है। बीहड़ में बना यह मंदिर आसपास के दर्जनों गांवों में भी प्रसिद्ध है, इसीलिए सावन मास के सोमवार को यहां जलाभिषेक के लिए हजारों लोगों का तांता दिन भर लगा रहता है। मंदिर करीब तीस फीट ऊंचा है लेकिन इसका गुबंद आज तक नहीं बन सका। तमाम कारीगर भी गुबंद बनाने की जद्दोजहद में लगे रहे लेकिन गुबंद नहीं बन सका।

हमीरपुर जिला मुख्यालय से बेतवा नदी पार करीब तेरह किमी सिमनौड़ी व कारीमाटी गांवों के बीच बीहड़ में शिवमंदिर स्थित है, जिसकी छटा देखते ही बनती है। ये मंदिर मनेश्वर बाबा के नाम से आसपास के दर्जनों गांवों में प्रसिद्ध है। साहित्यकार डाँ. भवानीदीन प्रजापति ने बताया कि ये पहला शिवालय है जो गुबंद विहीन है। इसमें विराजमान शिवलिंग भी पाताली है, जो तीनों पहर चमकता रहता है। यह स्थान करीब तीन सौ साल पहले वीरान था। घना जंगल और वीरान रास्ते से कोई भी निकलने का साहस नहीं कर पाता था।

समाजसेवी केके त्रिवेदी व बाबूराम प्रकाश त्रिपाठी समेत तमाम बुजुर्गों ने बताया कि उस जमाने में एक सेठ की गाय को अन्य तमाम गायों के साथ चरवाहा चराने के लिए जंगल ले गया था। सेठ की गाय जंगल में घुस गई और एक स्थान पर ही अपना सारा दूध निकाल कर वह वापस आ गई थी। शाम को घर पहुंचने पर गाय दूध नहीं देती थी। बुजुर्गों ने बताया कि सेठ को शक हुआ कि चरवाहा गाय का दूध जंगल में निकालकर पी जाता है। बस अगले ही दिन सेठ ने अपने कुछ लोगों को चरवाहे और गाय पर नजर रखने के लिए जंगल भेजा। जहां जंगल में अनोखा दृश्य देख सभी लोग दंग रह गए।

मंदिर के पुजारी द्वारिका प्रसाद ने बताया कि यह शिवलिंग पाताली है जो बड़ा ही अद्भुत है। बताया कि सावन मास में शिवलिंग का बारिश की बूंदों से स्वतः ही जलाभिषेक हो जाता है। यहां सच्चे मन से जलाभिषेक करने से मन की मुरादें पूरी होती है। बता दे कि इस एतिहासिक शिवमंदिर तक जाने के लिए आज तक कोई भी सड़क नहीं बन सकी। बरसात के मौसम में मंदिर के पहुंच मार्ग पर दलदल हो जाता है।

जंगल में झाडिय़ों में गाय के दूध निकलने पर हुई थी खुदाई

सिमनौड़ी गांव के जंगल में झाडिय़ों के पास गाय के अचानक पहुंचकर दूध निकालने की दृश्य देख चरवाहा समेत अन्य लोग दंग रह गए। सेठ को जब सारा वाक्या बताया गया तो उस जगह को देखने का फैसला किया। बताते है कि रात में सेठ को उस जगह पर पाताली शिवलिंग होने का सपना आया। सपने की बात सुबह लोगों को बताने के बाद सेठ जंगल पहुंचे और गांव के रामलाल आरख को उस स्थान की खुदाई करने के लिए लगाया।

कई दिनों तक खुदाई पर पाताली शिवलिंग के हुए थे दर्शन

मंदिर की देखरेख में लगे बीके पंसारी ने बताया कि जंगल में निर्जल स्थान पर जहां गाय दूध निकालती थी, उस स्थान की खुदाई कराई। करीब तीस फीट गहरी खुदाई कराने के बाद शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा दिखने पर खुदाई बंद कराई गई। शिवलिंग का आखिरी हिस्सा आज तक किसी को नहीं दिखा। पाताली शिवलिंग होने का सपना फिर आने पर इस स्थान के आसपास एक बड़ा चबूतरा बनवाया गया और पूजा अर्चना शुरू कराई गई थी।

शिवमंदिर का आज तक कारीगर नहीं बना सके गुंबद

मनेश्वर बाबा शिवमंदिर के पुजारी द्वारिका प्रसाद ने बताया कि सेठ के परिजन छाछे प्रसाद पंसारी ने इस स्थान पर मंदिर बनवाया था। उनकी इच्छा थी कि मंदिर की सुराही (गुंबद) इतनी ऊंची बने जिसे अपने घर की छत से सुबह मंदिर के दर्शन हो जाए। इसीलिए मंदिर की सुराही बनवाई गई लेकिन ये अगले ही दिन ढह गया। रात में सपने में मिली चेतावनी पर मंदिर का गुंबद बनवाने की जिद सेठ ने छोड़ दी। इसीलिए मंदिर बिना गुंबद का है।

 
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