हमीरपुर। हमीरपुर समेत समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र में सावन मास में झूला झूलने की परम्परा अब अतीत का हिस्सा बन गई है। सावन मास में कस्बे से लेकर गांवों तक पेड़ों में झूले डाले जाते थे और इनमें गांव की महिलाएं व बच्चे झूलते थे। महिलाएं भी झूला झूलने के दौरान सावनी गीत भी गाती थी, लेकिन अब गांवों में ये गीत कहीं भी नहीं सुनाई देते हैं। आधुनिकता के दौर में गांव की चौपालें भी सावन मास के गानों से सूनी हो गई है।
भौंरा नचाने सर्रा व सिलोर समेत अन्य खेल भी हुए विलुप्त
कलौलीजार गांव के पूर्व सरपंच बाबूराम प्रकाश त्रिपाठी समेत तमाम बुजुर्गों ने बताया कि सावन मास शुरू होते ही गांवों की चौपालों में सावन के गीत सुनाई देते थे। बच्चे भौंरा नचाते थे। दौड़ कबड्डी, पकड़ कबड्डी, सर्रा, सिलोर समेत तमाम खेल भी खेलते थे। जगह-जगह पेड़ों में झूले पड़े रहते थे, जिसमें बच्चों के साथ महिलाएं सावन के गीत गाती हुई झूला झूलती थी। और तो और चौपालों में देर रात तक महिलाएं और पुरुषों के समूह उच्च स्वर में गाए जाने वाले सावन गीत, प्रेम एकता की सुगंध वातावरण में बिखेरते थे। लेकिन अब गांव की चौपालों में सावन मास की धूम नहीं दिखाई देती।
मोबाइल फोन के कारण सावन की चौपालें भी हो गई सूनी
पंडित दिनेश दुबे व साहित्यकार डा. भवानी दीन प्रजापति ने बताया कि शहर से लेकर गांवों तक मोबाइल फोन की धूम हर उम्र के लोगों में मची है। जिन बच्चों को घर के बाहर पुरानी परम्पराओं के खेल खेलने चाहिए, वह आज मोबाइल में लगे रहते हैं। महिलाओं ने भी सावन मास की परम्पराओं से दूरी बनाई हैं। मन भावन सावन आकर कब निकल जाता है, पता नहीं चलता। कुछ स्थानों पर बच्चों के झूले दिख जाते हैं। लेकिन सावन माह की अन्य परम्पराओं के आमोद प्रमोद वाले कार्यक्रम अब नहीं नजर आते हैं। बुजुर्गों का कहना है कि शहर और कस्बों में शाम होते ही सन्नाटा पसरने लगता है। वहीं गांव की चौपालें भी सावन में सूनी हैं।