जगदलपुर, 6 सितंबर । बस्तर में श्रीगणेशज पूजा की परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है। पुरातत्वविदों को बस्तर संभाग के प्राय: हर स्थान से श्रीगणेशजी की प्रचीन प्रतिमाएं मिली हैं। बारसूर का श्रीगणेश मंदिर ऐतिहासिक है। बारसूर में सबसे बड़ी प्रतिमा होने के साथ ही श्रीगणेश की जुड़वा प्रतिमा के दर्शन केवल यही हाेते हैं। दंतेवाडा जिले के ढोलकल की पहाड़ियों पर 3000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थापित 6 फीट की श्रीगणेश प्रतिमा अकल्पनीय है। इसी प्रकार इन्द्रावती नदी के किनारे छिन्दगांव शिवालय के बाहर बारहवीं शताब्दी की एक श्रीगणेश प्रतिमा स्थापित है। वहीं भोरमदेव गुड़ी(बीजापुर) में श्रीगणेशजी की विशाल मूर्ति किरीट मुकुट धारण किए हुए हैं।
बस्तर के नक्सल प्रभावित दंतेवाडा क्षेत्र में हजारों फीट ऊंची ढोलकल पहाड़ी पर एक प्राचीन श्रीगणेशजी की प्रतिमा स्थापित है। ढोलकल की पहाड़ियों पर स्थापित 6 फीट ऊंची ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित यह प्रतिमा 3000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थापित है। श्रीगणेशजी की यह प्रतिमा सैकड़ों साल पुरानी है। इस अद्भुत प्रतिमा को नागवंशीय राजाओं द्वारा स्थापित किया गया था। इस भव्य मूर्ति को लेकर आज भी रहस्य बना हुआ है। श्रीगणेशजी की इस प्रतिमा में ऊपरी दांये हाथ में फरसा, ऊपरी बांये हाथ में टूटा हुआ एक दंत, नीचे दांये हाथ में अभय मुद्रा में अक्षमाला धारण किए हुए है, वहीं मूर्ति के नीचे बांये हाथ में मोदक धारण किए है। पुरात्वविदों का कहना है कि ऐसी प्रतिमा पूरे बस्तर क्षेत्र में कहीं नहीं देखी गई है।
दुनिया में केवल यहीं विराजते हैं जुड़वां श्रीगणेशजी
दुनिया के एकलौते ऐसा मंदिर बारसूर में जहां श्रीगणेशजी की विशाल जुड़वां प्रतिमाएं स्थापित हैं। यह मंदिर बारसूर में स्थित है। बालू पत्थरों से निर्मित गणेश की दो विशालकाय प्रतिमाएं हैं, बड़ी मूर्ति लगभग साढ़े सात फीट की है और छोटी की ऊंचाई साढ़े पांच फीट है। एक ही मंदिर में गणेश की दो मूर्तियों का होना विलक्षण है। माना जाता है कि यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा है। कहा जाता है कि इस मंदिर को यहां के राजा बाणासुर ने अपनी बेटी के लिए बनवाया था।
छिंदगांव में 12 वीं शताब्दी का प्राचीन मन्दिर
चित्रकोट रोड में बड़ांजी से छह किलोमीटर अन्दर इन्द्रावती नदी के किनारे छिन्दगांव है। इस गांव में एक प्राचीन शिव मन्दिर है, जो छिंदक नागवंशियों के शासनकाल में निर्मित हुआ था। यह पूर्वाभीमुख मन्दिर 5 फीट ऊंची जगह पर निर्मित है। मंदिर के बाहर एक गणेश की प्रतिमा स्थापित है। मन्दिर छिन्दक नागवंशियों के शासनकाल में 12वीं सदी में निर्मित माना जाता है।
बस्तर के इतिहास के जानकार एवं साहित्यकार रूद्र नारायण पानीग्राही ने बताया कि बस्तर में नाग और नल वंशी राजाओं के काल से बस्तर में श्रीगणेशजी की पूजा का इतिहास मिलता है। उन्होंने कहा कि पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार ढोलकल शिखर पर स्थापित दुर्लभ गणेश प्रतिमा 11 वींशताब्दी की बताई जाती है। इससे पता चलता है कि श्रीगणेशजी की पूजा की मान्यता बस्तर में बहुत प्राचीन है।