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जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय में हिमनद झीलों का फैलाव और बाढ़ का खतरा

Date : 03-Feb-2025

 जलवायु परिवर्तन के चलते हिमालय की ऊंचाइयों में हिमनद झीलें तेजी से फैल रही हैं, जिससे निचले इलाकों में विनाशकारी बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है। हाल ही में किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया है कि 2011 के बाद से भारत, चीन, नेपाल और भूटान में निरीक्षण की गई 902 हिमनद झीलों में से आधी से अधिक का क्षेत्रफल बढ़ता जा रहा है। बर्फ और हिमनदों के पिघलने से बनी इन झीलों का क्षेत्रफल अब तक 11 प्रतिशत तक बढ़ चुका है, जबकि कुछ झीलों में 40 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हो चुकी है।

यह चिंताजनक स्थिति वैश्विक तापमान वृद्धि से जुड़ी हुई है, जो हिमनदों के पिघलने की गति को तेज कर रही है। इन झीलों को अक्सर बर्फ और गिट्टियों जैसी नाजुक प्राकृतिक बाधाएं रोके रखती हैं, जो अचानक टूटकर खतरनाक बाढ़ का कारण बन सकती हैं। इन बाढ़ों को 'आउटबर्स्ट फ्लड्स' कहा जाता है। पिछले दशक में हिमालयी क्षेत्र में इस तरह की घटनाओं ने भारी विनाश और जान-माल का नुकसान किया है। इन बाढ़ों की अप्रत्याशित प्रकृति के कारण, हिमनद झीलों की, विशेषकर छोटी लेकिन खतरनाक झीलों की, सख्त निगरानी अत्यधिक जरूरी है।

उपग्रह और हवाई सर्वेक्षण इन परिवर्तनों को ट्रैक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसरो ने एक अन्य अध्ययन में बताया है कि 1984 से 2016 के बीच अध्ययन की गई 2400 से अधिक झीलों में से लगभग 28 प्रतिशत झीलों का आकार बढ़ा है।

भारत सरकार ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में इन जोखिमों से निपटने के लिए 150 करोड़ रुपए की योजना शुरू की है। इसके तहत झीलों की संवेदनशीलता का आकलन करने और सुरक्षा उपाय लागू करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। इनमें निगरानी प्रणाली स्थापित करना और जलधारा का मार्ग बदलने के लिए चैनल बनाना शामिल है। इसके अलावा, सिक्किम में शोधकर्ताओं ने सर्वाधिक जोखिम वाली झीलों के लिए प्राथमिकता के आधार पर रोकथाम रणनीतियां तैयार की हैं।

आपदा प्रबंधन अधिकारी इन झीलों के नीचे स्थित बांधों की तैयारियों का आकलन कर रहे हैं। 47 चिन्हित बांधों में से 31 की रिपोर्ट में यह जांच की जा रही है कि उनके स्पिलवे संभावित बाढ़ का सामना कर सकते हैं या नहीं। हाल के अध्ययन में बताया गया है कि ऐसी बाढ़ों से 10,000 से अधिक लोग, 2000 से अधिक बस्तियां, पांच पुल और दो पनबिजली संयंत्र खतरे में पड़ सकते हैं।

भौगोलिक स्थिति और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के कारण इन झीलों के जलग्रहण क्षेत्र कई देशों में फैले हुए हैं। इसके लिए विशेषज्ञ हिमालयी देशों के बीच सीमापार सहयोग की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं। इस नाजुक क्षेत्र में जीवन, बुनियादी ढांचे और पारिस्थितिकी तंत्र पर बढ़ते खतरों से निपटने के लिए संयुक्त प्रयासों और सतत निगरानी की आवश्यकता है।

 
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