अर्थव्यवस्था, एक जटिल खाका,
जिसमें हर श्रेणी का है योगदान।
उत्पादन, वितरण, और उपभोग का संबंध,
हर कदम में समाज का है संचरण।
उपयुक्त पंक्तियों से ये तो समझ आ ही गया होगा की किस प्रकार अर्थव्यवस्था किसी भी देश व राज्य की सफलता और समृद्धि का मापदंड होती है। यह विभिन्न क्षेत्रों से मिलकर बनती है, जैसे कि कृषि, उद्योग, और सेवा क्षेत्र। एक मजबूत और सशक्त अर्थव्यवस्था तब ही संभव है जब इन सभी क्षेत्रों में संतुलन और सुधार हो। अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हमेशा मानव जीवन को बेहतर बनाने और सामाजिक कल्याण को सुनिश्चित करने का होना चाहिए।
छत्तीसगढ़ राज्य का वित्तीय वर्ष एक महत्वपूर्ण समयावधि है, जो राज्य की आर्थिक योजनाओं और कार्यों के लिए मार्गदर्शन करता है। यह वित्तीय वर्ष एक ऐसी समय सीमा को निर्धारित करता है, जिसमें राज्य सरकार अपनी योजनाओं, बजट, राजस्व संग्रहण, व्यय और अन्य वित्तीय गतिविधियों को संचालित करती है। हर वित्तीय वर्ष के अंत में राज्य की आर्थिक स्थिति का आकलन किया जाता है और अगले वर्ष के लिए योजनाओं की रूपरेखा तैयार की जाती है।
मुख्य उद्देश्य राज्य के राजस्व और व्यय को संतुलित करना है ताकि राज्य की आर्थिक स्थिति स्थिर रहे। इसके द्वारा सरकार को यह अवसर मिलता है कि वह विभिन्न योजनाओं और योजनाओं का निर्धारण कर सके, जिससे राज्य के नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार हो सके। छत्तीसगढ़ सरकार हर साल अपने बजट के माध्यम से यह निर्धारित करती है कि विभिन्न विभागों को कितना धन आवंटित किया जाएगा और राज्य के विभिन्न हिस्सों में विकास के लिए कौन से कार्यक्रम चलाए जाएंगे।
छत्तीसगढ़ सरकार का वित्तीय वर्ष विभिन्न विकास योजनाओं और निवेश की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने का अवसर प्रदान करता है। सरकार ने राज्य के विकास के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे कि "छत्तीसगढ़ शिक्षा योजना", "कृषि विकास योजना", "स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार", "बुनियादी ढांचा निर्माण", और "आत्मनिर्भर छत्तीसगढ़ योजना"। इन योजनाओं का मुख्य उद्देश्य राज्य के सामाजिक और आर्थिक ढांचे को मजबूत करना है।
इसके अलावा, छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य के इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र के निवेशकों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न प्रोत्साहन योजनाओं की शुरुआत की है। इससे न केवल रोजगार के अवसर बढ़े हैं, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिली है।
छत्तीसगढ़ मे साय सरकार के वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में छत्तीसगढ़ को विकसित और समृ़द्ध राज्य बनाने के लिए रोड मैप की स्पष्ट रूप रेखा भी दिखती है। छत्तीसगढ़ सरकार के बजट में सेवाक्षेत्र को बढ़ावा देने की रणनीति शामिल की गई है। आईटी सेक्टर, हेल्थ डेस्टिनेशन, ईको-टूरिज्म सर्किट, वेडिंग डेस्टिनेशन, बिजनेस टूरिज्म, कान्फ्रेंस डेस्टिनेशन जैसे नये उभरते हुए संभावनाओं वाले क्षेत्रों का लाभ प्रदेश के युवाओं और उद्यमियों को मिलेगा।
बजट में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए खुले मन से राज्य में निवेशकों का स्वागत करने की बात कही गई है, इसके लिए राज्य में रेड टेपिज्म के स्थान पर रेड कारपेट की नीति होगी। उद्योगों की स्थापना के लिए ‘मिनिमम गर्वमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ की नीति पर काम होगा। इज ऑफ डूइंग बिजनेस, सिंगल विण्डो प्रणाली, ऑनलाईन परमिशन, मिनिमम परमिशन जैसी नीति लागू होंगी। पब्लिक-प्राइवेट-पॉर्टनरशिप के लिए नीति आयोग और भारतीय प्रबंध संस्थानों के विशेषज्ञों का सहयोग लिया जाएगा।
छत्तीसगढ़ की भौगोलिक विशेषताओं के अनुरूप आर्थिक विकास के लिए विकेन्द्रीकृत नीति पर काम होगा, इसके लिए विकेन्द्रीकृत विकास पॉकेट की स्थापना की जाएगी। रायपुर, भिलाई सहित आसपास के क्षेत्रों को स्टेट कैपिटल के रूप में विकसित करने की योजना भी तैयार की जाएगी। इन क्षेत्रों में विश्व स्तरीय आईटी सेक्टर, वेडिंग डेस्टिनेशन, हेल्थ डेस्टिनेशन के रूप में विकसित किया जाएगा। नवा रायपुर, अटल नगर में ‘लाईवलीहुड सेंटर ऑल एक्सीलेंस’ एवं दुर्ग जिले में ‘सेंटर ऑॅफ एंटरप्रेन्योरशिप’ स्थापित किया जाएगा। स्टार्ट-अप को प्रोत्साहित करने के लिए इन्यूबेशन सेंटर की स्थापना तथा बी.पी.ओ. एवं के.पी.ओ. को आकर्षित करने के लिए आई.टी. पार्क की स्थापना की जाएगी।
छत्तीसगढ़ राज्य के बजट में रायपुर, नवा रायपुर अटल नगर, बिलासपुर, दुर्ग, भिलाई, अंबिकापुर, जगदलपुर, कोरबा एवं रायगढ़ जैसे प्रमुख नगरों को ग्रोथ इंजन के रूप में विकसित करने की बात कही गई है। कोरबा, जांजगीर, रायगढ़, उरला, सिलतरा जैसे क्षेत्रों में वहां की आवश्यकता के अनुरूप औद्योगिकरण की नीति बनायी जाएगी। मैदानी कृषि प्रधान जिलों में कृषि आधारित विकास को बढ़ावा दिया जाएगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए विशेष फोकस किया जाएगा।
बस्तर-सरगुजा क्षेत्र में आर्थिक विकास की दृष्टि सें एयर कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए सार्थक पहल की जाएगी। इन क्षेत्रों को इको-टूरिज्म एवं नैचरोपैथी डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने का प्रयास किया जाएगा। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य के पांच शक्तिपीठों को धार्मिक, पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जाएगा। बस्तर क्षेत्र में लघु वनोपज प्रसंस्करण हेतु उद्योगों की स्थापना की जाएगी। सरगुजा क्षेत्र में उद्यानिकी एवं मछली पालन की संभावनाओं को प्रोत्साहित किया जाएगा। इस प्रकार समन्वित प्रयास करते हुए इन क्षेत्रों की आर्थिक संभावनाओं को मूर्त रूप दिया जाएगा।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने अनेक अवसरों पर कहा है कि हमने अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का संकल्प लिया है। हमारा लक्ष्य विकसित छत्तीसगढ़ बनाना है। हम विकसित छत्तीसगढ़ के संकल्प को पूरा करने के लिए बजट में तैयार किए गए रोडमैप के अनुरूप कार्य करेंगे। राज्य की अर्थव्यवस्था को तेजी से विकसित करने और उच्च विकास दर हासिल करने के लिए बजट में अनेक प्रावधान किये गये हैं, इस वर्ष राज्य के बजट में पूंजीगत व्यय में वृद्धि की गयी है।
छत्तीसगढ़ सरकार का यह फैसला राज्य के समग्र विकास और आर्थिक समृद्धि की दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके माध्यम से सरकार न केवल अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करेंगी , बल्कि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सुधार और विकास के लिए आवश्यक कदम भी उठा रही है। हर वित्तीय वर्ष के अंत में राज्य की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन और अगले वित्तीय वर्ष के लिए नई योजनाओं का निर्धारण राज्य के नागरिकों के लिए बेहतर भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठा रही है।
निस्पृहो नाधिकारी स्यान्न कामी भंडनप्रिया |
नो विदग्ध: प्रियं ब्रूयात स्पष्ट वक्ता न वंचक: ||
अर्थात् जिस व्यक्ति को दुनियादारी से वैराग्य हो जाता है, उसे कोई कार्य नहीं सौंपना चाहिए | बनने-संवारने व्यक्ति कामी होता है | क्योंकि दूसरों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए ही श्रृंगार किया जाता है | अत: जो व्यक्ति कामी नहीं होता उसे श्रृंगार से प्रेम नहीं होता | प्रकाण्ड विद्वान व्यक्ति सदा सत्य बात कहता है | वह प्रिय नहीं बोलता | साफ-साफ बातें करनेवाला व्यक्ति कपटी नहीं होता |
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने देवगुड़ी को संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा बताते हुए उन स्थलों के संरक्षण और संवर्धन के लिए विशेष प्रयासों पर जोर दिया है। उन्होंने संबंधित विभागों को इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने और स्थानीय समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करने के निर्देश दिए है। देवगुड़ी के संरक्षण से न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संजोने में मदद मिलेगी बल्कि इससे क्षेत्रीय पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
छत्तीसगढ़ में सैकड़ों देवगुड़ी वनसमृद्ध जनजातीय क्षेत्रों में स्थित हैं। ये स्थल जनजातीय समुदायों द्वारा पूजनीय हैं एवं राज्य की सांस्कृतिक धरोहर और पारिस्थितिक संपदा का अभिन्न हिस्सा हैं। स्थानीय जनजातीय देवताओं के निवास स्थल होने के कारण ये पारंपरिक अनुष्ठानों और त्योहारों का केंद्र हैं, साथ ही ये जैव विविधता के अनूठे केंद्र भी माने जाते हैं।
छत्तीसगढ़ की देवगुड़ी में भंगाराम, डोकरी माता गुड़ी, सेमरिया माता, लोहजारिन माता गुड़ी, मावली माता गुड़ी, माँ दंतेश्वरी गुड़ी और कंचन देवी गुड़ी जैसे नाम शामिल हैं। ये सभी देवगुड़ी स्थानीय जनजातीय समुदायों की आस्थाओं में विशेष स्थान रखती हैं और प्रत्येक का अपना विशिष्ट महत्व है।
छत्तीसगढ़ वन विभाग संयुक्त वन प्रबंधन, कैंपा, छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड एवं राज्य वन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के माध्यम से इन पवित्र देवगुड़ियों के संरक्षण में सक्रिय रूप से प्रयासरत है। अब तक विभाग द्वारा 1,200 से अधिक देवगुड़ी स्थलों का दस्तावेजीकरण और संरक्षण किया जा चुका है, ताकि इन पारिस्थितिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख श्री व्ही. श्रीनिवास राव, आईएफएस ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय और वन मंत्री श्री केदार कश्यप जी छत्तीसगढ़ के वनसमृद्ध जनजातीय क्षेत्रों से संबंध रखते हैं। उनके नेतृत्व में वन विभाग देवगुड़ी स्थलों के संरक्षण के लिए समर्पित है। ये प्रयास राज्य में सतत् वन प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण के हमारे व्यापक मिशन के अनुरूप हैं।
देवगुड़ी के उपवन पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। ये दुर्लभ, संकटग्रस्त, और स्थानीय वनस्पति प्रजातियों का आश्रय स्थल हैं, जहाँ इनका संरक्षण भी सुनिश्चित होता है। ये स्थल मृदा अपरदन को रोकने में सहायक भी हैं। जनजातीय समुदायों का मानना है कि इन पवित्र स्थलों की रक्षा देवताओं द्वारा की जाती है, इसलिए यहाँ पेड़ काटना, शिकार करना या किसी जीव को हानि पहुँचाना वर्जित है। इन उपवनों से जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक पहचान गहराई से जुड़ी हुई है और ये उनकी पारंपरिक प्रथाओं को जीवित रखते हैं। मड़ई, हरेली, और दशहरा जैसे त्योहारों पर यहाँ विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं, एवं नवविवाहित जोड़े यहाँ आकर स्थानीय देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
देवगुड़ी स्थलों की पर्यावरणीय और सांस्कृतिक महत्ता को ध्यान में रखते हुए वन विभाग द्वारा यहाँ विशेष भूनिर्माण कार्य किए गए हैं, जिनमें पगडंडियों का निर्माण, बाड़बंदी, और पर्यावरण के अनुकूल संरचनाएँ शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष श्री राकेश चतुर्वेदी ने कहा कि वन विभाग स्थानीय जनजातीय के सहयोग से देवगुड़ी के संरक्षण एवं संवर्धन में सक्रिय रूप से प्रयासरत है। इस पहल के अंतर्गत बड़ी संख्या में स्थानीय वनस्पति प्रजातियों का रोपण किया जा रहा है और पारंपरिक त्योहारों का पुनर्जीवन किया जा रहा है।
राज्य जैव विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव श्री राजेश कुमार चंदेले आईएफएस ने बताया कि इन उपवनों की जैव विविधता को पुनर्जीवित करने के लिए वन विभाग द्वारा साल, सागौन, बांस, हल्दू, बहेड़ा, सल्फी, आंवला, बरगद, पीपल, कुसुम बेल, साजा, तेंदू, बीजा और कई औषधीय पौधों जैसी देशी प्रजातियाँ लगाई गई हैं। उन्होंने कहा कि ये स्थल सांप, मोर, जंगली सुअर और बंदरों जैसे विविध वन्यजीवों के लिए समृद्ध पारिस्थितिक आवास प्रदान करते हैं। साथ ही जनजातीय समुदायों के बीच गैर विनाशकारी कटाई प्रथाओें को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
राज्य जैव विविधता बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नीतू हरमुख ने बताया कि छत्तीसगढ़ के देवगुड़ी स्थलों को राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण के लोक जैव विविधता पंजिका में आधिकारिक रूप से पंजीकृत किया जा रहा है। साथ ही इन पवित्र उपवनों की जैव विविधता का दस्तावेजीकरण करने के लिए शोध कार्य किए जा रहे हैं। हालाँकि, शहरीकरण, परंपरागत विश्वासों में कमी, अतिक्रमण, खरपतवार, पशुओं की चराई, और जलाऊ लकड़ी का संग्रह जैसी चुनौतियाँ इन उपवनों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही हैं। इसके बावजूद छत्तीसगढ़ वन विभाग इनकी जैव विविधता और सांस्कृतिक महत्ता को संरक्षित करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।