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चाणक्य नीति:- संकट का सामना करें

Date : 30-Oct-2024

तावद् भयेषु भेतव्यं यावभ्दयमनागतम् |

आगतं तु भयं दृष्टवा प्रहर्तवयंशद्क्या ||

आचार्य चाणक्य यहां सिर पर आए संकट से निपटने के संदर्भ में कहते हैं, कि आपत्तियों और संकटों से तभी तक डरना चाहिए जब तक वे दूर हैं, परन्तु वह संकट सिर पर आ जाए तो उस पर शंकारहित होकर प्रहार करना चाहिए, उन्हें दूर करने का उपाय करना चाहिए |

अर्थात् जब तक भय दूर है तभी तक व्यक्ति उससे डरना चाहिए अर्थात् किसी प्रकार ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे भय आ जाय, लेकिन भय आ जाने पर डरने से भी कार्य नहीं चलेगा | उस समय उसका निदान ढूँढना चाहिए, उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए | अन्यथा संसार में भय से पलायन करने के लिए कोई स्थान इस प्रकार का नहीं मिलेगा जहाँ भय न हो और भयभीत व्यक्ति कोई कार्य कहीं भी नहीं कर सकता है | भय से जीवन भी नहीं चलता | इसलिए भय से मुक्ति पाने के लिए उसका हल ढूँढना ही श्रेयस्कर मार्ग है | वीर एवं साहसी पुरुषों का यही धर्म है | 

 
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