झारखंड की संस्कृति समृद्ध और विविध है और परिणामस्वरूप अपने तरीके से अद्वितीय है।पुरातत्वविदों ने झारखंड के विभिन्न हिस्सों से पूर्व-हड़प्पा मिट्टी के बर्तन, पूर्व-ऐतिहासिक गुफा चित्र और रॉक-कला का पता लगाया है। यह इन भागों में निवास करने वाली प्राचीन, सुसंस्कृत सभ्यताओं का संकेत देता है। यहां के विभिन्न कलाओं में से एक है गंजू कला
गंजू कला रूपों की विशेषता, जंगली और पालतू जानवरों और पौधों के रूपों की छवियों के साथ- साथ, पक्षियों और फूलों के बड़े-बड़े भित्ति चित्रों से घरों को सजाते हैं। लुप्तप्राय जानवरों को अक्सर चित्र-कहानी परंपरा में चित्रित किया जाता है।
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में स्थित राजपुरी जलप्रपात प्रसिद्ध जलप्रपातों में से एक हैं काफी संख्या में लोग खूबसूरत नज़ारे का लुफ्त उठाने और पिकनिक मनाने जाते हैं। इस झरने के आसपास अच्छी सुविधा होने के कारण स्थानीय लोग और दूर दूर से पर्यटक घुमने आते हैं। आसपास हरे भरे जंगल और चचाहते चिड़ियों का झुंड और कल कल करता झरना का पानी मनमोहक दृश्य का निर्माण। अगर आप कभी जशपुर जाएँ तो इस राजपुरी जलप्रपात अवश्य जाएँ।
राजपुरी जलप्रपात जशपुर जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर स्थित है। यह जलप्रपात पहाड़ों के बीच पर है और ऊँचाई से चट्टानों पर गिरते पानी बहुत ही सुन्दर दिखाई देते हैं। इस जलप्रपात की ऊँचाई लगभग 100 फीट, जलप्रपात के समीप ही शिव मंदिर हैं जहाँ पर्यटक और शिव भक्त शिव जी की पूजा अर्चना करते हैं। यह बारहमासी जलप्रपात है, गरमी के दिनों में इसकी ख़ूबसूरती बरकरार रहती है लेकिन रौद्र रूप बारिश के मौसम में देखने को मिलता है।
यह झरना पिकनिक स्पॉट है, हर तीज त्योहारों पर लोग पिकनिक मनाने पहुंचते हैं। यहाँ पर्यटकों के लिए अच्छी व्यवस्था की गई है झरने के पास ही सामुदायिक भवन है, बैठने की भी सुविधा है साथ झरने का खूबसूरत दृश्य देखने के लिए वाच टावर का भी निर्माण किया गया है।
राजपुरी जलप्रपात बगीचा विकासखंड मुख्यालय से 3 किलोमीटर की दूरी पर है और अंबिकापुर से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप अपने दो या चार पहिये वाहनों की मदद से आसानी से पहुंच सकते हैं।
निकटतम बस स्टैंड – बगीचा बस स्टैंड
निकटतम रेलवे स्टेशन – रांची रेलवे स्टेशन और अंबिकापुर रेलवे स्टेशन
निकटतम हवाई अड्डा – हवाई अड्डा रांची
दनगरी जलप्रपात – यह जशपुर में स्थित सबसे खूबसूरत वॉटरफॉल है जो घने जंगलों में है। अगर आप जशपुर जाते हैं तो इस प्राकृतिक स्थल को देखना न भूलें। इस जलप्रपात की ऊँचाई लगभग 100 फीट है और तीन भागों में गिरता है दूर से देखने में ऐसा लगता है मानो एक साथ कई झरने हों। यह स्थानीय लोगों के लिए पिकनिक मनाने के लिए सबसे अच्छा स्थल है यहाँ स्थानीय लोग अक्सर पिकनिक मनाने आते रहते हैं।
कैलाश गुफा – जशपुर जिले के सभी पर्यटन स्थलों में से यह एक ऐसा पर्यटन स्थल हैं जहाँ काफ़ी ज्यादा संख्या में पहुंचते हैं। यहाँ हर वर्ष शिवरात्रि में भव्य मेला लगता है जिसमे दूर दूर से लोग शामिल होते हैं। स्थैनिया लोगों में मान्यत है की संत गहिरा गुरु ने यहीं तपस्या कर शंकर जी को प्रशन्न किया था।
कैथोलिक चर्च कुनकुरी – यह चर्च ईसाई धर्मावलंबियों का आस्था का केंद्र हैं। कुनकुरी का कैथोलिक चर्च दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च है। इसे रोजरी की महारानी के नाम से भी जाना जाता है। इस चर्च में एक साथ लगभग 10 हजार लोग एक साथ प्रार्थना कर स्क्कते हैं। इसे देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं
छत्तीसगढ़ में आज से राजिम कुंभ कल्प और सिरपुर महोत्सव की भी शुरुआत हो रही। राजिम कुंभ में 3 मार्च से 8 मार्च तक संत समागम होगा। तीन दिवसीय सिरपुर महोत्सव 24 से 26 फरवरी तक चलेगा।संत समागम में शंकराचार्य समेत देश के बड़े-बड़े साधु-संत छत्तीसगढ़ आएंगे।
प्रदेश का ऐतिहासिक शिवरीनारायण का पंद्रह दिवसीय माघी मेला की आज से शुरू हो गई है। भगवान शिवरीनारायण मंदिर में माघी पूर्णिमा को लेकर तैयारियां पूरी हो गई है। आज से श्रद्धालु महानदी में पुण्य स्नान कर भगवान शिवरीनारायण के दर्शन करेंगे। इस मौके पर शिवरीनारायण की महानदी में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ जमा हो रही है। मंदिरों में सुबह से ही भक्तों की लंबी कतार लगी हुई है। शिवरीनारायण में महानदी में माघी स्नान कर श्रद्धालुओं ने दीपदान किया। भक्तीमय वातावरण में लोग भगवान नरनारायण के दर्शन के लिए हजारों लोग जुटे। आज महानदी के त्रिवेणी संगम में गंगा आरती भी होगी। इसे लेकर तैयारियां जोरो शोरों की गई है। बता दें कि, शिवरीनारायण को पुरी के भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान कहा जाता है। वहीं 15 दिनों तक लगने वाले शिवरीनारायण मेले का समापन महाशिवरात्रि के दिन होगा।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में 18 साल पहले से लगातार राजिम कुंभ मेले का आयोजन होता आ रहा है। पूर्ववर्ती कांग्रेस की सरकार ने इसका नाम बदलकर “माघी पुन्नी मेला” किया था।जिसे अब फिर से राजिम कुंभ कर दिया गया है। राजिम का इतिहास श्री राम के वनवास काल से जुड़ा है। राजिम कुंभ का समापन 8 मार्च को महाशिवरात्रि पर होगा। इस वर्ष राजिम कुंभ कल्प को रामोत्सव के रूप में मनाया जायेगा। इसके लिए राजिम त्रिवेणी संगम में भव्य तैयारियां की जा रही है। इसके साथ ही संगम नगरी राजिम कुंभ कल्प में अयोध्या धाम का वैभव दिखेगा। जिसमें राजिम कुंभ के श्रद्धालु रामोत्सव के रंग में रंगेंगे। तीर्थनगरी राजिम के पवित्र कुंभ में देशभर के साधु संतों का समागम होगा।
धर्मस्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि राजिम कुंभ कल्प के दौरान तीन पुण्य स्नान क्रमशः 24 फरवरी माघ पूर्णिमा, 4 मार्च माता जानकी जयंती और 8 मार्च महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर होंगे। साथ ही प्रयागराज कुंभ की तर्ज पर आर्गेनाइज्ड स्ट्रक्चर की दुकानें लगेंगे और थ्री डी मैपिंग और लेजर शो के जरिये सुंदर रामकथा दिखाई जाएगी। राजिम कुंभ कल्प के दौरान तीन पुण्य स्नान होगा।
आज से सिरपुर महोत्सव की भी शुरुआत हो रही है। छत्तीसगढ़ के प्राचीनतम शहरों में से एक महासमुंद जिले में स्थित सिरपुर में माघ पूर्णिमा के अवसर पर तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता है।जो कि 24 से 26 तक चलेगा। इस दौरान सिरपुर में विशेष उत्सव होगा।गंगा आरती के तर्ज पर महानदी की आरती होगी। तीनों दिन ख्याति प्राप्त स्थानीय कलाकारों का कार्यक्रम होगा। दोपहर 3.30 से रात 10 बजे तक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन होगा। इस बार सिरपुर महोत्सव में पहली बार स्नान कुंड बनाया गया है।जिला प्रशासन के द्वारा उत्सव को लेकर विशेष तैयारी की गई है।इंडियन आइडल विजेता अभिजीत सावंत, छॉलीवुड गायक सुनील सोनी और बाल कलाकार आरू साहू भी इस कार्यक्रम में विशेष प्रस्तुति देंगे।
जोन्हा जलप्रपात झारखण्ड की राजधानी राँची से 40 कि.मी.और क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक टाटा-राँची मार्ग पर 'तईमारा' नामक गाँव के निकट स्थित है। यहाँ भगवान गौतम बुद्ध की एक प्रतिमा भी स्थापित की गई है, जिसके चलते इसे 'गौतम धारा' भी कहा जाता है।
राँची-मूरी मार्ग से दक्षिण में स्थित यह प्रपात भी राँची पठार की भ्रंश रेखा पर निर्मित है।
इस जलप्रपात की ऊंचाई लगभग 150 फीट है।
जोन्हा प्रपात राढू नदी पर स्थित है। इसके पास में ही 'सीताधारी' नामक एक छोटा प्रपात भी है।
जलप्रपात हर दिन पर्यटकों की भीड़ से चहल-पहल भरा रहता है।
जोन्हा जलप्रपात पर बुद्ध का प्रसिद्ध मंदिर है और पर्यटक भगवान बुद्ध के मन्दिर के दर्शन के लिए भी जाते है।
इसके आस-पास का नज़ारा भी बहुत ख़ूबसूरत है, जो पर्यटकों को मंत्र-मुग्ध कर देता है।
छत्तीसगढ़ में राजिम कुंभ कल्प के आयोजन को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं. बता दें कि राजिम कुंभ कल्प का शुभारंभ 24 फरवरी से होने वाला है, जो 8 मार्च तक चलेगा. इस भव्य आयोजन में हरिद्वार, काशी, मथुरा, अयोध्या, चित्रकुट समेत देशभर के कई स्थानों से साधु-संत, पीठाधीश्वर, मठाधीश, महात्मा और शंकराचार्य शामिल होने वाले हैं.
छत्तीसगढ़ के प्रयागराज राजिम में धर्म, अध्यात्म, परम्पराओं और संस्कृति का संगम राजिम कुम्भ कल्प का आगाज 24 फरवरी से त्रिवेणी संगम में होगा, जो 15 दिन महाशिवरात्रि 8 मार्च तक चलेगा. कुंभ में देशभर से हजारों की संख्या में साधु संत, लाखों की संख्या में देश और विदेश से लोग पहुंचेंगे और आस्था की डुबकी लगाएंगे. शासन और प्रशासन कुंभ को ऐतिहासिक बनाने की पूरी तैयारी में जुटी हुई है
बता दें कि 2005 में भाजपा शासन काल में राजिम कुंभ शुरू हुआ था. 2018 में सरकार बदली तो नाम भी बदल गया. राजिम कुम्भ कल्प से कांग्रेस शासन में नाम राजिम माघी पुन्नी मेला रखा गया. 5 साल बाद फिर सत्ता में भाजपा आई तो फिर नाम राजिम कुम्भ कल्प रखा गया.
राजिम कुंभ कई मायनों में बेहद खास है. सरकार द्वारा आयोजित इस कुंभ कल्प में देश भर से जहां लोग पहुंचते हैं तो वहीं विदेश से भी बड़ी संख्या में पर्यटक इस भव्य आयोजन में शामिल होते हैं. इस बार देश के कोने-कोने से आने वाले हजारों साधु संत, शंकराचार्य, महामंडलेश्वर और नागा साधु कुंभ की शोभा बढ़ाएंगे. इनके रखने की व्यवस्था सरकार करती है. इसके अलावा पहली बार पंडित प्रदीप मिश्रा, बागेश्वर धाम से धीरेंद्र शास्त्री भी कुंभ में शामिल होंगे.
त्रिवेणी संगम में तीन महत्तपूर्ण स्नान की मान्यता है. पहला माघ पुन्नी स्नान. इसमें श्रद्धालु सुबह 3 बजे से स्नान करने पहुंच जाते हैं. दूसरा 4 मार्च को जानकी जयंती पर स्नान और तीसरा 8 मार्च को महाशिवरात्रि पर शाही स्नान होता है.
3 मार्च से 8 मार्च तक संत समागम का आयोजन होता है, जहां देशभर से आए साधु संत, महामंडलेश्वर , शंकराचार्य मुख्य उद्बोधन करते हैं जिसे सुनने बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. कुंभ मेले में इस बार 30 लाख से भी ज्यादा लोग आने का अनुमान है. इसे लेकर प्रशासन ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है
त्रिवेणी संगम में भव्य मुख्य मंच बनाया जा रहा हैं जो 15 दिनों तक आकर्षण का केंद्र होगा. इस मंच में जनप्रतिनिधि अपनी बात रखेंगे. संत समागम होगा. साधु संत उद्बोधन करेंगे. प्रदेश और देश के कई बड़े कलाकार भी अपनी प्रस्तुति देंगे
कुंभ कल्प मेले में लाखों लोग पहुचेंगे तो सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम में पुलिस अभी से मुस्तैद है. सैकड़ों सीसीटीवी कैमरा, चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल, गोताखोर और कई स्थानों में पुलिस सहायता केंद्र बनाया गया है
कुम्भ कल्प में आस्था की डुबकी लगाने के बाद लोगों के लिए मेला स्थल में मनोरंजन का भी विशेष इंतजाम है. मीणा बाजार में देश का सबसे बड़ा कोलंबो झूला लग रहा है. यह लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र रहेंगे.
त्रिवेणी संगम में 15 दिनों तक महानदी आरती के लिए घाट तैयार किया जा रहा है. मेला स्थल में पार्किंग व्यवस्था, पेजयजल, चौड़ी सड़क और तीन महत्वपूर्ण स्नान के लिए विशेष कुंड बनाया जा रहा है. राजिव लोचन मंदिर से लेकर कुलेश्वर महादेव मंदिर और पूरे राजिम शहर को सजाया जा रहा है. 24 फरवरी से इस ऐतिहासिक राजिम कुंभ कल्प का शानदार आरंभ होगा
भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य भारत के महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में स्थित एक संरक्षित क्षेत्र है। यहां भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य के बारे में कुछ मुख्य विवरण दिए गए हैं:
जगह:
भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य पश्चिमी घाट सीमा के भीतर महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित है। यह समुद्र तल से लगभग 3,250 फीट (1,050 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है।
जैव विविधता:
यह अभयारण्य अपनी समृद्ध जैव विविधता, विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और जीवों की विशेषता के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय नम चौड़ी पत्ती वाले जंगलों से ढका हुआ है, और यह पौधों, स्तनधारियों, पक्षियों, सरीसृपों और कीड़ों की कई प्रजातियों का घर है।
वनस्पति:
अभयारण्य में विभिन्न प्रकार की वृक्ष प्रजातियों के साथ घने जंगल हैं, जिनमें सागौन, शीशम और सिल्वर ओक जैसे मूल्यवान लकड़ी के पेड़ शामिल हैं। विविध वनस्पतियाँ क्षेत्र के समग्र पारिस्थितिक स्वास्थ्य में योगदान देती हैं।
जीव-जंतु:
भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य कई प्रकार की वन्यजीव प्रजातियों का घर है, जिनमें भारतीय विशाल गिलहरियाँ, भारतीय उड़ने वाली लोमड़ी, सुस्त भालू, तेंदुए और हिरण की कई प्रजातियाँ शामिल हैं। यह अभयारण्य अपने पक्षी जीवन के लिए भी जाना जाता है, इस क्षेत्र में एविफ़ुना की विभिन्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
भीमाशंकर मंदिर:
अपने पारिस्थितिक महत्व के अलावा, यह क्षेत्र भीमाशंकर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं में भगवान शिव को समर्पित बारह ज्योतिर्लिंगों (मंदिरों) में से एक है। यह मंदिर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को समान रूप से आकर्षित करता है।
पवित्र बाग़:
भीमाशंकर मंदिर के आसपास का क्षेत्र एक पवित्र उपवन माना जाता है, जो अभयारण्य के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व में योगदान देता है। धार्मिक प्रथाओं से जुड़े होने के कारण पवित्र उपवनों को अक्सर संरक्षित किया जाता है।
संरक्षण की स्थिति:
भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य को इसके विविध पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा के लिए वन्यजीव अभयारण्य के रूप में नामित किया गया है। अभयारण्य के भीतर वनस्पतियों और जीवों की सुरक्षा के लिए संरक्षण प्रयास किए जा रहे हैं।
ट्रैकिंग और इको-पर्यटन:
अभयारण्य ट्रैकिंग और इको-पर्यटन के अवसर प्रदान करता है। पर्यटक पश्चिमी घाट की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं, विविध वन्य जीवन को देख सकते हैं और शांत वातावरण का आनंद ले सकते हैं।
खतरे और संरक्षण चुनौतियाँ:
कई वन्यजीव अभयारण्यों की तरह, भीमाशंकर को भी आवास हानि, अतिक्रमण और मानव-वन्यजीव संघर्ष जैसे खतरों का सामना करना पड़ता है। संरक्षण प्रयासों का उद्देश्य इन चुनौतियों को कम करना और अभयारण्य की पारिस्थितिक अखंडता को संरक्षित करना है।
कनेक्टिविटी:
भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य पश्चिमी घाट का हिस्सा है, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है, और यह विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में अद्वितीय जैव विविधता के संरक्षण में योगदान देता है।
भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य संरक्षण और सांस्कृतिक विरासत दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो पश्चिमी घाट के विविध पारिस्थितिक तंत्र में रुचि रखने वाले प्रकृति प्रेमियों, तीर्थयात्रियों और शोधकर्ताओं के मिश्रण को आकर्षित करता है।
उज्जैन 5000 वर्ष पुराना प्राचीन एवं ऐतिहासिक शहर है। आदि ब्रह्म पुराण में इसे सर्वश्रेष्ठ नगर बताया गया है तथा अग्निपुराण एवं गरुड़ पुराण में इसे मोक्षदा एवं भुक्ति-मुक्ति कहा गया है। एक समय था जब यह शहर एक बड़े साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था।
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका |
पुरी, द्वारावतीचेव सप्तेतः: मोक्षदायिका: ||
इस शहर में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग, सात मोक्ष प्रदान करने वाली नगरियों में से एक ज्योतिर्लिंग, गढ़कालिका और हरसिद्धि, दो शक्ति पीठ और भारत के चार शहरों में होने वाला पवित्र कुंभ है। यहां राजा भरतरी की गुफा पाई जाती है और ऐसा माना जाता है कि उज्जैन में भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं।
"विष्णु: पदमवंतिका"
भगवान राम ने स्वयं अपने पिता की मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार उज्जैन में किया था और इसलिए जिस स्थान पर यह अनुष्ठान हुआ था उसे 'रामघाट' कहा जाता है। सिंहस्थ का शाही स्नान इसी रामघाट पर होता है।
उज्जैन का वैज्ञानिक एवं प्राकृतिक महत्व
भौगोलिक दृष्टि से उज्जैन का महत्व
शैव महोत्सव-उज्जैन में 5 से 7 जनवरी तक तीन दिवसीय शैव महोत्सव का आयोजन किया जायेगा। उत्सव के दौरान सभी 12 ज्योतिर्लिंगों का एक प्रतीकात्मक समागम। उत्सव की शुरुआत 5 जनवरी को सभी 12 ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृति के साथ एक भव्य शोभा यात्रा के साथ होगी।
श्रावण सवारी - श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक और कार्तिक के शुक्ल पक्ष से लेकर माघशीर्ष के कृष्ण पक्ष तक, भगवान महाकाल की सवारी उज्जैन की सड़कों से होकर गुजरती है। भाद्रपद में आखिरी सवारी बहुत धूमधाम से मनाई जाती है और इसमें लाखों लोग शामिल होते हैं। विजयादशमी पर्व पर दशहरा मैदान में होने वाले उत्सव में शामिल होने वाली महाकाल की सवारी भी बहुत आकर्षक होती है।
कालिदास समारोह :- कालिदास समारोह की शुरुआत वर्ष 1958 में हुई, कालिदास समारोह हर साल उज्जैन में मनाया जाता है। मध्य प्रदेश सरकार ने महाकवि कालिदास की स्मृति को ध्यान में रखते हुए हर वर्ष समारोह आयोजित करने के लिए उज्जैन में कालिदास अकादमी की स्थापना की।
देश के सबसे पुराने शहरों में शुमार मंदिरों की नगरी अयोध्या धाम के भव्य मंदिर में विराजमान भगवान श्रीराम लला के दर्शन के बाद तोरपा के रामभक्तों की टोली लौट आयी। अयोध्या की इस टोली में चार कार सेवक अजीत जयसवाल, संतोष जयसवाल, सतीश शर्मा और रामशीष महतो भी शामिल थे। जैसे ही भगवान श्रीराम के दर्शन हुए सभी कार सेवकों के अलावा अन्य भक्तों की आंखों छलछला गई।
कार सेवक अजीत जयसवाल, सतीश शर्मा और सतोष जयसवाल छह दिसंबर 1992 को हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस की पूरी कहानी बताते हुए रो पड़ते हैं और बताते हैं कैसे उन्होंने तार का बाड़ फांदकर मंदिर को तोड़ा था और ईंट लेकर लौटने के दौरान किस तरह पुलिस ने उनकी पिटाई की थी। आज भगवान रामलला को भव्य मंदिर में विराजमान देखकर भला किसे प्रसन्नता नहीं होगी। अयोध्या गये सभी लोगों ने राम भक्तों की सुविधा के लिए राज्य और केंद्र सरकार के साथ ही विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। सतीश चौधरी और अनिल मिश्रा ने कहा कि इस स्वर्णीम पल को देखने के इंतजार में हमारी कितनी पीढ़ियां गुजर गई। हम काफी सौभग्यशाली हैं कि अपने गर्भ गृह में भगवान रामलला को विराजमान होते हुए देखने का अवसर मिला।
राम मंदिर के अलावा दर्जनों दर्शनीय स्थल हैं अयोध्या में
नव निर्मित श्रीराम मंदिर के अलावा अयाध्या में दर्जनों दर्शनीय स्थल हैं। राम मंदिर के बाद सबसे प्रमुख दर्शनीय स्थल है हनुमानगढ़ी मंदिर। मंदिर पुजारियों ने बताया कि लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम जब अयोध्या लौट आये, तब उनके भक्त हनुमान वहां रहने लगे। इसके कारण इसका नाम हनुमानगढ़ी पड़ा। यहीं से हनुमान जी राम दरबार की रक्षा करते हैं। मुख्य मंदिर में माता अंजनी की गोद में हनुमान जी विराजमान हैं। बताया गया कि दसवीं सदी में हनुमान गढ़ी मंदिर का निर्माण कराया गया था।
दशरथ महत
हनुमानगढ़ी से लगभग दो-ढाई सौ मीटर की दूरी पर राजा दशरथ का महल। महल में श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता की प्रतिमाएं स्थापित हैं। दशरथ महल में हर समय राम चरितमानस का संगीतमय पाठ होता रहता है।
कनक भवन
दशरथ महल से लगभग दौ सौ मीटर की दूरी पर स्थित है एक और दर्शनीय स्थल है कनक महल। पौराणिक कथाओं के अनुसार कनक महल को रानी कैकेयी ने माता सीता को दिया था।
तुलसी उद्यान
रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की स्मृति में 1960 में इस उद्यान का निर्माण कराया गया था। इसके पहले इस जगह का नाम विक्टोरिया पार्क था और यहा महारानी विक्टोरिया की मूर्ति लगी थी। अब वहां गोस्वामी तुलसीदास की प्रतिमा विराजमान है।
राम की पौड़ी
राम मंदिर और हनुमानगढ़ी के बाद श्रद्धालओं का पसंदीदा जगह है राम की पौड़ी। राम की पौढ़ी सरयू नदी पर घाटों की एक श्रृंखला है। हर समय सरयू नदी के इस घाट पर लोगों की भीड़ लगी रहती है।
लता मंगेशकर चौक
मशहूर गायिक लता मंगेशकर की स्मृति में अयोध्या नगरी के राम पथ और धर्म पथ के चौराहे पर लता मंगेशकर चौक का निर्माण सरकार द्वारा कराया गया है। चौक पर 40 फीट लबी और 12 मीटर ऊंची और 14 टन वजन वाली वीणा स्थापित की गई है। आज के समय में यह पसंदीदा सेल्फी पॉइंट बन गया है। इसके अलावा अयोघ्या में बिरला मंदिर धर्मशाला, गुप्तार घाट, बहू बेगम मकबरा, गुलाब बाड़ी सहित कई दर्शनीय स्थल हैं।
भारत त्योहारों का देश है, दिवाली हो या नव वर्ष हर परंपरा और त्यौहार को समान उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है।“आंतरिक रूप से, हमारा उत्सव एक बेहतर वर्ष के लिए प्रार्थना करते हुए, लक्ष्मी पूजा के साथ शुरू होता है | उत्सव की भावना को ध्यान में रखते हुए , मुंबई के केंद्र से कुछ ही दूरी पर 4 सितारा होटल सूबा इंटरनेशनल अंधेरी में सुविधाजनक रूप से स्थित है, जिन्होंने त्योहारों के दिनों में अपने व्यवसायिक या शहरी यात्रा में जोअतिथि थे, उनको बिल्कुल घर का एहसास करवाया है , साथ ही जो कर्मचारी त्योहारों के दौरान कार्य कर रहे थे उनका भी बखूबी से ध्यान रखा गया है ।
होटल के वौइस् प्रेसिडेंट होमर मोहता जी ने हमारे साथ साझा किया कि कर्मचारियों के लिए रंगोली प्रतियोगिताओं जैसी कई तरह की गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं। इस अवधि के दौरान स्टाफ के सभी सदस्य भिन्न -भिन्न प्रकार के वेशभूषा में होते थे और इस अवसर के लिए अपने-अपने विभागों को सजाने का आनंद लेते हैं। होटल के सभी कर्मचारियों को उपहार वितरित किया गया है, उनके आने वाले वर्ष के सुखद और समृद्ध होने की कामना करते हुए फिर एक बार वसुधैव कुटुम्बकम का उदहारण पेश किया |
दिवाली के दौरान, सूबा इंटरनेशनल में उत्सव का माहौल बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया गया । होटल सुंदर सजावट से सजाया गया, और विशेष रूप से इस अवसर के लिए आयोजित सांस्कृतिक प्रदर्शन और मनोरंजन का जीवंत और आनंदमय माहौल का आनंद अतिथियों ने भी खूब उठाया । वैसे कोई भी उत्सव भोजन निमंत्रण और भोग के बिना अधुरा होता है ,और सूबा इंटरनेशनल का इन-हाउस रेस्तरां विभिन्न प्रकार के मुंह में पानी लाने वाले व्यंजन परोसता है|
मोहता जी ने बताया कि कई अतिथि दीवाली के साथ- साथ नव वर्ष का अवसर एक पाक यात्रा के रूप में भी मनाते है जो उनके स्वाद को स्वादिष्ट बनाने के साथ-साथ स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लेने में मददगार रहता है , जिससे उन्हें प्रवास के दौरान एक यादगार भोजन के स्वाद का अनुभव हो जाता है।
हुंडरू जलप्रपात राँची-पुरलिया राजमार्ग पर राँची से लगभग 45 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह राँची का सर्वाधिक ऊंचाई से गिरनेवाल जलप्रपात है इसलिए यह पर्यटन पटल पर सर्वाधिक प्रसिद्ध भी है। इस प्रकृतिक झरने का निर्माण सवर्णरेखा नदी से प्रस्फुटित जल के 320 फिट की ऊंचाई से गिरने से होता है। इसका उपयोग झारखंड राज्य मे पनबिजली के रूप मे पिछले 50 वर्षों से होता आ रहा है। औसतन 100 -120मेगावाट तक पनबिजली इस परियोजना से पैदा होती है, जिसे सिकिदिरी प्रोजेक्ट के नाम से भी जाना जाता है।
हाईवे पर स्थित राँची ज़िले के ओरमाँझी ब्लाक चौक से पूर्व दिशा की ओर जाने वाली पक्की सड़क से सिकिदिरी लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है, जहाँ से हुंडरू प्रपात तक पहुँचने के लिये सुन्दर नयनाभिराम पहाड़ियों के अंचल में लगभग 7 से 8 किलोमीटर और आगे सर्पीले मार्ग से जाना पड़ता है। सैलानी झरने के उद्गम तथा नीचे की तलहटी, दोनों तरफ़ से प्रपात की गिरती स्वच्छ-धवल जलराशि देखने का आनन्द उठा सकते हैं।
हुंडरू फॉल्स के निकट कुछ प्रमुख आकर्षण हैं:
जोन्हा फॉल्स रांची से लगभग 40 किमी दूर स्थित है और क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। यह 40 मीटर की ऊंचाई वाला एक खूबसूरत झरना है और हरे-भरे जंगलों से घिरा हुआ है। पर्यटक प्राकृतिक कुंड में स्नान कर सकते हैं और झरने की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।
रांची हिल एक सुंदर दृश्य है जो रांची शहर और इसके आसपास का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। यह रांची शहर के मध्य में स्थित है और एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। पर्यटक पहाड़ी की चोटी तक पहुंचने के लिए केबल कार ले सकते हैं, जहां वे मनमोहक दृश्यों का आनंद ले सकते हैं और शांतिपूर्ण वातावरण में आराम कर सकते हैं।