कार्तिक पूर्णिमा
दीपावली के ठीक 15 दिन बाद और कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है. देव दिवाली के दिन काशी और गंगा घाटों पर विशेष उत्सवों के आयोजन किए जाते हैं और गंगा किनारे खूब दीप प्रज्जवलित किए जाते हैं. देव दिवाली मनाने को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता भी स्वर्गलोक से धरती पर आते हैं और दिवाली का पर्व मनाते हैं.
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक महीने में आने वाली पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा, त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान की पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव को त्रिपुरारी के रूप में पूजा जाने लगा था। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा को बैकुण्ठ धाम में देवी तुलसी का प्रकट हुई थीं और कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था।
देव दीपावली कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षस ने अपने आतंक से धरती लोक पर मानवों और स्वर्गलोक में सभी देवताओं को त्रस्त कर दिया था. सभी देवतागण त्रिपुरासुर से परेशान हो गए थे. सभी सहायता के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे और त्रिपुरासुर का अंत करने की प्रार्थना की.
कथा के अनुसार, भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था. त्रिपुरासुर के अंत के बाद उसके आंतक से मुक्ति मिलने पर सभी देवतागण प्रसन्न हुए और उन्होंने स्वर्ग में दीप जलाएं. इसके बाद सभी भोलेनाथ की नगरी काशी में पधारे और काशी में भी दीप प्रज्जवलित कर देवताओं ने खुशी मनाई.
इस घटना के बाद से ही कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन को देव दीपावली कहा जाने लगा और इस दिन काशी और गंगा घाटों में विशेष तौर पर देव दीपावली मनाई जाती है.इसलिए भी कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है.
इस के बारे में कई कथाएं प्रसिद्ध
कार्तिक पूर्णिमा को सिख सम्प्रदाय में प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन उनके संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन को गुरु पर्व भी कहा जाता है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा को बैकुण्ठ धाम में देवी तुलसी प्रकट हुई थीं और कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था।
कार्तिकेय और पूर्णिमा का संबंध इसी प्रकार शिव पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र भगवान कार्तिकेय के संबंध में भी एक कथा है जो इस दिन उनकी पूजा के महत्व का वर्णन करती है। कहते हैं कि जब प्रथम पूज्य होने की प्रतियोगिता में उनके छोटे भाई श्री गणेश को विजयी घोषित कर दिया गया तो कार्तिकेय काफी नाराज हो गए और साधना करने ou चले गए। जब शिव और पार्वती उन्हें मनाने गए तो उन्होंने क्रोध में शाप दिया कि यदि कोई L=h उनके दर्शन करने आयेगी तो वो सात जन्म तक oS/O; भोगेगी और यदि किसी पुरुष ने ऐसा करने का प्रयास किया तो वो e`R;q के बाद नरक जायेगा।
विस्तार
भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। यह भी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था। इसी खुशी में देवताओं ने दिवाली मनाई थी। इस दिन श्रद्धा पूर्वक पूजा करने से भगवान श्री हरि के साथ मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन कुछ उपायों को करने से आपकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
योगनिद्रा
वैष्णव भक्त
सृष्टि की रक्षा
त्रिपुरारी
गुरु नानक देव जी का जन्म
सिख धर्म