विधिक साक्षरता
विधिक साक्षरता से आशय जनता को कानून से समब्न्धित सामान्य बातों से परिचित कराकर उनका सशक्तीकरण करना है। विधिक जागरूकता से विधिक संस्कृति को बढ़ावा मिलता है, कानूनों के निर्माण में लोगों की भागीदारी बढ़ती है और कानून के शासन की स्थापना की दिशा में प्रगति होती है।
भारत में, 09 नवंबर को सभी विधिक सेवा प्राधिकारियों द्वारा “राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस” के रूप में मनाया जाता है, जिसे विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 को लागू करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन को विधिक सेवा के तहत प्राधिकरण अधिनियम और वादिकारियों के अधिकार को विभिन्न प्रावधानों से अवगत कराने के लिए मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों के लोगों के लिए नि: शुल्क, प्रवीण और कानूनी सेवाओं की पेशकश करना है। यह कमजोर वर्गों के लोगों को मुफ्त सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ-साथ उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने का प्रयास भी करता है।
तात्पर्य
साक्षरता का तात्पर्य सिर्फ़ पढ़ना-लिखना ही नहीं बल्कि यह सम्मान, अवसर और विकास से जुड़ा विषय है। दुनिया में शिक्षा और ज्ञान बेहतर जीवन जीने के लिए ज़रूरी माध्यम है। आज अनपढ़ता देश की तरक़्क़ी में बहुत बड़ी बाधा है। जिसके अभिशाप से ग़रीब और ग़रीब होता जा रहा है।
उद्देश्य
साक्षरता दिवस का प्रमुख उद्देश्य नव साक्षरों को उत्साहित करना है। साक्षरता दिवस हमारे लिये अहम दिवस है, क्योंकि हमारे जीवन में शिक्षा का बहुत अधिक महत्त्व है। हमारे देश में पुरुषों की अपेक्षा महिला साक्षरता कम है। हमें आज के दिन यह संकल्प लेना होगा कि हर व्यक्ति साक्षर बनें, निरक्षर कोई न रहे। हमें अपने यहाँ से निरक्षता को भगाना होगा।
शैक्षिक इतिहास
भारत का शैक्षिक इतिहास अत्यधिक समृद्ध है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों द्वारा शिक्षा मौखिक रूप में दी जाती थी। शिक्षा का प्रसार वर्णमाला के विकास के पश्चात् भोज पत्र और पेड़ों की छालों पर लिखित रूप में होने लगा। इस कारण भारत में लिखित साहित्य का विकास तथा प्रसार होने लगा। देश में शिक्षा जन साधारण को बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ-साथ उपलब्ध होने लगी। नालन्दा, विक्रमशिला और तक्षशिला जैसी विश्व प्रसिद्ध शिक्षा संस्थानों की स्थापना ने शिक्षा के प्रचार में अहम भूमिका निभाई। लोगों में व्यावसायिक कौशल विकसित करने के लिए साक्षरता एक बड़ी ज़रूरत है।
शिक्षा का प्रसार
भारत में अंग्रेज़ों के आगमन से यूरोपीय मिशनरियों ने अंग्रेज़ी शिक्षा का प्रचार किया। इसके बाद से भारत में पश्चिमी पद्धति का निरन्तर प्रसार हुआ है। वर्तमान समय में भारत में सभी विषयों के शिक्षण हेतु अनेक विश्वविद्यालय और उनसे जुड़े़ हजा़रों महाविद्यालय हैं। भारत ने उच्च कोटि की उच्चतर शिक्षा प्रदान करने वाले विश्व के अग्रणी देशों में अपना स्थान बना लिया है।
शुल्क में वृद्धि
शिक्षा के शुल्क में अनेक कारणों से (विशेष रूप से व्यावसायिक शिक्षा) निरन्तर वृद्धि हो रही है। इस कारण ग़रीब परिवार के बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई होने लगी है।
साक्षर भारत
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश की सभी महिलाओं को अगले पाँच सालों में साक्षर बनाने के लक्ष्य के साथ अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के मौके पर महिलाओं के लिए विशेष तौर पर ‘साक्षर भारत’ मिशन का शुभारंभ किया था। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई थी कि ‘साक्षर भारत’ मिशन, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन से भी ज़्यादा सफल साबित होगा। उन्होंने कहा था कि- "देश की एक तिहाई आबादी निरक्षर है। देश की आधी महिलाएं अभी भी पढ़-लिख नहीं सकतीं। साक्षरता के मामले में हम विश्व में सबसे पिछड़े देशों में शुमार हैं।"
प्रधानमंत्री ने कहा कि- "अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक और अन्य वंचित व पिछड़े वर्गो की महिलाओं का साक्षर न होना हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है और हमें इस चुनौती से पार पाना होगा। यदि हमें सभी नागरिकों को सशक्त करना है और तेज़ी से विकास करना है तो देश को पूरी तरह से साक्षर करना होगा। जिस ‘साक्षर भारत’ मिशन की आज हम शुरुआत कर रहे हैं वह साक्षरता के प्रति हमारी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को ज़ाहिर करता है। यह मिशन ख़ासकर महिलाओं में साक्षरता की दर बढ़ाने की हमारी कोशिश में मददगार साबित होगा।"
उन्होंने कहा कि- "साक्षरता के मामले में आज़ादी के बाद से हमने लगातार वृद्धि की है। वर्ष 1950 में साक्षरता की दर 18 फ़ीसदी थी, जो वर्ष 1991 में 52 फ़ीसदी और वर्ष 2001 में 65 फ़ीसदी पहुँच गयी।"
साक्षरता दिवस का दिन हमें सोचने को मजबूर करता है, कि हम क्यो 100% साक्षर नहीं हैं। यदि केरल को छोड़ दिया जाए तो बाकि राज्यों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है। सरकार द्वारा साक्षरता को बढ़ने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, मिड दे मील योजना, प्रौढ़ शिक्षा योजना, राजीव गाँधी साक्षरता मिशन आदि न जाने कितने अभियान चलाये गये, मगर सफलता आशा के अनुरूप नहीं मिली। मिड दे मील में जहाँ बच्चो को आकर्षित करने के लिए स्कूलों में भोजन की व्यवस्था की गयी, इससे बच्चे स्कूल तो आते हैं, मगर पढ़ने नहीं खाना खाने आते हैं। शिक्षक लोग पढ़ाई की जगह खाना बनवाने की फिकर में लगे रहते हैं। हमारे देश में सरकारी तौर पर जो व्यक्ति अपना नाम लिखना जानता है, वह साक्षर है। आंकड़े जुटाने के समय जो घोटाला होता है, वो किसी से छुपा नहीं है। अगर सही तरीक़े से साक्षरता के आंकडे जुटाए जाए तो देश में 64.9% लोग शायद साक्षर न हो। सरकारी आंकडो पर विश्वास कर भी लिया जाए तो भारत में 75.3% पुरुष और 53.7% महिलायें ही साक्षर हैं।
साक्षर कैसे बने
भारत 100% साक्षर कैसे बने। भारत में सबसे ज़्यादा विश्वविद्यालय है। हमारे देश में हर साल लगभग 33 लाख विद्यार्थी स्नातक होते हैं। उसके बाद बेरोज़गारों की भीड़ में खो जाते हैं। हम हर साल स्नातक होने वाले विद्यार्थियो का सही उपयोग साक्षरता को बढ़ाने में कर सकते हैं। स्नातक के पाठ्यक्रम में एक अतिरिक्त विषय जोड़ा जाए, जो सभी के लिए अनिवार्य हो। इस विषय में सभी छात्रों को एक व्यक्ति को साक्षर बनाने की ज़िम्मेदारी लेनी होगी। शिक्षकों के द्वारा इसका मूल्यांकन किया जाएगा। अन्तिम वर्ष में मूल्यांकन के आधार पर अंकसूची में इसके अंक भी जोड़े जाए। इससे हर साल लगभग 33 लाख लोग साक्षर होंगे। वो भी किसी सरकारी खर्च के बिना।
भारत में u;k साक्षरता का नाम
नव भारत साक्षरता अभियान j[kk x;k gS blds तहत ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही माध्यम से देश में 15 वर्ष और इससे अधिक आयु वर्ग के पांच करोड़ लोगों को इसके दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया है.
शिक्षा को लेकर केंद्र और राज्यों की सरकारें कई तरह की योजनाएं और अभियान चलाती हैं. सर्व शिक्षा अभियान, सब पढ़ें-सब बढ़ें, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, साइकिल-पोशाक योजना, छात्रवृत्ति योजनाएं वगैरह के बारे में तो आपने सुना ही होगा. इसी तरह सरकार का एक अहम मिशन शुरू हुआ था, वर्ष 1988 में- राष्ट्रीय साक्षरता मिशन. तब देश में राजीव गांधी की सरकार थी.
1951 में देश में 30 करोड़ लोग निरक्षर थे, जो 1981 में बढ़कर 44 करोड़ हो गए थे. ऐसे में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की परिकल्पना अस्तित्व में आई. 5 मई 1988 को शुरू हुए इस मिशन का उद्देश्य था कि लोग अनपढ़ न रहें, कम से कम साक्षर तो जरूर हो जाएं. इस मिशन ने असर तो दिखाया, लेकिन शत-प्रतिशत साक्षरता के लिए यह नाकाफी रहा.
बहरहाल आज हम बात करने वाले शिक्षा के क्षेत्र में ही केंद्र सरकार के नए मिशन के बारे में. शत-प्रतिशत साक्षरता के लक्ष्य को हासिल करना ही इस मिशन का उद्देश्य है. इस मिशन का नाम है- ‘नव भारत साक्षरता अभियान’.
2022 से शुरू होगा अभियान
‘नव भारत साक्षरता अभियान’ के लिए ‘कैबिनेट नोट’ को अंतिम रूप दिया जा रहा है. पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि वित्त मंत्रालय में व्यय विभाग ने पिछले महीने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. सूत्रों की मानें तो प्रस्ताव के तहत ‘नव भारत साक्षरता अभियान’ (एनआईएलपी) 2022 से 2027 तक लागू किया जायेगा.
ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीका
नव भारत साक्षरता अभियान के तहत ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही माध्यम से देश में 15 वर्ष और इससे अधिक आयु वर्ग के पांच करोड़ निरक्षर लोगों को इसके दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया है. सूत्रों ने बताया है कि एनआईएलपी के लिए कैबिनेट नोट तैयार किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि शिक्षा मंत्रालय में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान इसकी तैयारियों से जुड़ी गतिविधियों को पूरा करेगा.
प्रौढ़ शिक्षा संबंधी यह केंद्र प्रायोजित नई योजना होगी. इस कार्यक्रम के दायरे में ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से देश में 15 वर्ष व इससे अधिक आयु वर्ग के पांच करोड़ निरक्षर लोगों को लाने का लक्ष्य रखा गया है.
साक्षरता दिवस 2022 की थीम
2022 में साक्षरता दिवस की थीम ‘ट्रांसफॉर्मिंग लिटरेसी लर्निंग स्पेस’ है. पिछले साल यानी 2021 में साक्षरता दिवस की थीम मानव-केंद्रित पुनर्प्राप्ति के लिए साक्षरता: डिजिटल विभाजन को कम करना थी.
साक्षरता पर सुविचार अनमोल वचन
एक सभ्य घर जैसा कोई विद्यालय नहीं है और एक भद्र अभिभावक जैसा कोई अध्यापक नहीं है – महात्मा गांधी
बिना साक्षरता प्राप्त किए कोई इंसान अपनी परम ऊंचाइयों को स्पर्श नहीं कर सकता – होरेस मैन
शिक्षा अपने क्रोध या अपने आत्म विश्वास को खोये बिना लगभग कुछ भी सुनने की क्षमता है – राबर्ट फ्रोस्ट
साक्षरता स्वतंत्रता के स्वर्ण द्वार खोलने के कुंजी है – जॉर्ज वाशिंगटन कार्वर
साक्षर इंसान को सरलता से शासित किया जा सकता है – फ्रेडरिक n xzsV