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लक्ष्य निर्धारित करना अदृश्य को दृश्य में बदलने की दिशा में पहला कदम है - टोनी रॉबिंस

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प्रेरक प्रसंग अध्याय 7:मधुर जीवन का रहस्य

Date : 21-Nov-2023

 संत एकनाथजी के पास एक व्यक्ति आया और बोला,नाथ! आपका जीवन कितना मधुर है ! हमें तो शांति एक क्षण भी प्राप्त नहीं होती | आप ऐसा कोई उपाय बतावें कि हमें लोभ, मोह, मद, मत्सर इत्यादि दुर्गुण सता पावें और हम जीवन में आनन्द की प्राप्ति करें |’

तुझे वह उपाय तो बता सकता था, किन्तु तू तो अब आठ ही दिनों का मेहमान है,  अतः पहले की ही भांति अपना जीवन व्यतीत कर |’’

उस मनुष्य ने ज्योंही सुना कि वह अब अधिक दिनों तक जिवित रहेगा, तो वह उदास हो गया और तुरन्त ही अपने घर लौट गया | घर में वह पत्नी से जाकर बोला,“मैंने तुम्हें कई बार नाहक ही कष्ट दिया है | मुझे क्षमा करो |’’ फिर बच्चों से बोला,बच्चों, मैंने तुम्हें कई बार पीटा है, मुझे उसके लिए माफ़ करो |’’ मित्रों के पास जाकर भी उसने क्षमा माँगी | इस तरह जिस-जिस व्यक्ति के साथ उसने दुर्व्यवहार किया था, उन सबके पास जा-जाकर उसने माँफी माँगी | इस तरह आठ दिन व्यतीत हो गए और नवें दिन वह एकनाथजी के पास पहुँचा और बोला, नाथ, आठ दिन तो बीत गए | मेरी अंतिम घड़ी के लिए कितना समय शेष है ?’’

तेरी अंतिम घड़ी तो परमेश्वर ही बता सकता है| किन्तु मुझे यह तो बता कि ये आठ दिन तेरे कैसे व्यतीत हुए ? भोग-विलास में मस्त होकर तूने आनन्द तो प्राप्त किया होगा ?’’

क्या बताऊँ, नाथ, मुझे इन आठ दिनों में मृत्यु के अलावा  और कोई चीज दिखाई नहीं दे रही थी | इसीलिए मुझे अपने द्वारा किये हुए सरे दुष्कर्म स्मरण हो आए और उसके पश्चाताप में ही यह अवधि बीत गयी |’’

तो मित्र, तूने जिस बात को ध्यान में रखकर ये आठ दिन बिताये हैं, हम साधु लोग इसी बात को अपने सामने रखकर सरे काम किया करते हैं | ध्यान रखो, यह अपनी देह क्षणभंगुर है और अंततः इसे मिट्टी में मिलना ही है, अतः इसका  गुलाम होने की अपेक्षा परमेश्वर का गुलाम होना ही श्रेयस्कर है | प्रत्येक के साथ समान भाव रखने में ही जीवन की सार्थकता है और  यही कारण है कि जीवन हमें मधुर मालूम होता है, जबकि तुम्हें असहनीय |’’

 
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