Quote :

"खुद वो बदलाव बनें जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं " - महात्मा गांधी

Editor's Choice

सोन चिरैया को लग गई 'नजर'

Date : 07-Dec-2022

पूर्वी उत्तर प्रदेश में आमतौर पर दादी-नानी प्यार से अपने नाती-नातिन को सोन चिरैया कह कर बुलाती हैं। हो सकता है कुछ दिन बाद ऐसा न हो, क्योंकि यह खूबसूरत यह चिड़िया विलुप्त होने की कगार पर है। इस बारे में 11 साल पहले इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने चेताया भी था। इस संगठन ने पक्षियों की अपनी ‘रेड लिस्ट’ में साफ किया था कि लुप्त होने वाले पक्षियों की तादाद अब 1,253 हो गई है। इसका मतलब था कि पक्षियों की सभी प्रजातियों में से 13 प्रतिशत के लुप्त हो जाने का खतरा है। इस ‘रेड लिस्ट’ में विश्व की पक्षियों की प्रजातियों की बदलती संभावनाओं और स्थिति का आकलन किया गया था। ‘रेड लिस्ट’ में संरक्षणकर्ताओं ने चेतावनी दी थी कि दुनिया के सबसे वजनदार पक्षियों में से एक सोन चिरैया की प्रजाति लुप्त होने की कगार पर है। अफसोस हम न तब चेते और न अब चेत रहे हैं। यह स्थिति तब है जब भारत का सुप्रीम कोर्ट इसके संरक्षण पर चिंतित है। सोन चिरैया एक मीटर ऊंची होती है और इसका वजन 15 किलोग्राम होता है। 2011 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने कहा था कि अब भारत में केवल 250 सोन चिरैया ही बची हैं। 

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की इससे पहले जारी रेड लिस्ट के मुताबिक इस पक्षी की संख्या साल 1969 में 1260 थी और यह देश के कई इलाकों में पाई जाती थी। ताजा स्थिति यह है कि मौजूदा समय में देश में सोन चिरैया की कुल संख्या करीब 120 है। कभी यह भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित होने की दौड़ में सबसे आगे रही है। सोन चिरैया को कभी भारत और पाकिस्तान की घास भूमि में बहुतायत में पाया जाता था। अब इसे केवल एकांत भरे क्षेत्रों में देखा जाता है। आखिरी बार राजस्थान में इस अनोखे पक्षी का गढ़ माना गया था। सोन चिरैया को 'द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड', 'बस्टर्ड' और 'गोडावण' भी कहते हैं। 

आकार में बड़े होने और शरीर का ढंग क्षैतिज होने और पैर लंबे होने के बावजूद यह उड़ तो सकती है, लेकिन फूर्ति के साथ नहीं। उड़ान भरने पर बिजली के तार सामने आने पर यह बाकी पक्षियों की तरह बच नहीं पाती। दूसरी सबसे बड़ी वजह है कि सोन चिरैया में सीधे देखने की क्षमता की कमी होती है। यह शुतुरमुर्ग जैसी दिखती है। इसे 'शर्मिला पक्षी' और 'सर्वाहारी पक्षी' भी कहते हैं। यह गेहूं, ज्वार, बेर के फल, बाजरा तो खाती ही है, टिड्डे कीट भी खाती है। इतना ही नहीं सांप, छिपकली और बिच्छू भी खा लेती है। सोन चिरैया राजस्थान का राजकीय पक्षी है। यह जमीन पर ही अपना घोंसला बनाती है। इस वजह से इसके अंडों को कुत्तों और दूसरे जानवरों से खतरा होता है। हालात यह है कि राजस्थान में इसे राजकीय पक्षी माना जाता है पर पाकिस्तान के कई क्षेत्रों में इसका शिकार कर मांस खाया जाता है। अच्छी बात यह है कि भारत में इसके शिकार पर पूरी तरह प्रतिबंध है।

इनकी लगातार कम हो रही संख्या का बड़ा कारण भारत में बिजली के तारों के अलावा घास के मैदानों में कमी का होना है। सोन चिरैया घास के मैदानों को ही अपना प्राकृतिक निवास समझती है। खराब सिंचाई व्यवस्था और नष्ट हो रहे घास के मैदानों की वजह से भी इनके सामने अस्तित्व का संकट गहरा रहा है। एक समय इस चिड़िया के आशियाने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में होते थे।

राजस्थान सरकार ने अपने इस पक्षी को बचाने के लिए 2013 में पर्यावरण दिवस पर एक प्रोजेक्ट शुरू किया था। इसका नाम रखा था 'ग्रेट इंडियन बस्टर्ड'। इसका मुख्य उद्देश्य इनके आवास स्थल और प्रजनन स्थल को बचाना और सुरक्षित करना था। तब भी इनका परिवार नहीं बढ़ सका। केंद्र सरकार ने इस पर अच्छी पहल की है। कहा जा रहा है कि टाइगर और चीता प्रोजेक्ट की तर्ज पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय जल्द ही प्रोजेक्ट शुरू करने की तैयारी में है। कतर और सऊदी अरब जैसे देशों से भी इनके संरक्षण में मदद लेने की तैयारी है। जिसकी शुरुआत राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र से की जानी है, क्योंकि इन्हीं राज्यों में सोन चिरैया बची है। इनमें से सबसे अधिक करीब सौ सौन चिरैया राजस्थान में हैं। 

राजस्थान में फिलहाल भारतीय वन्यजीव संस्थान ने एक ऐसा प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिसमें सऊदी अरब की मदद ली जा रही है। माना जाता है कि सऊदी अरब को इस तरह के पक्षियों के अंडों से बच्चों को बनाने की तकनीक पर महारथ है। हालांकि वह इस तकनीक से तैयार पक्षियों को अपने खाने में इस्तेमाल में लेते है। पिछले साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने सोन चिरैया के संरक्षण की गुहार पर गुजरात और राजस्थान सरकारों को निर्देश दिया था कि वे जहां भी संभव हो, ऊपर से गुजरते हाई वोल्टेज बिजली के तारों को एक साल के भीतर जमीन के नीचे बिछाएं।

सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ हाई वोल्टेज बिजली के तारों को भूमिगत करने की संभावना का आकलन करने के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की थी। इसमें वैज्ञानिक डॉ. राहुल रावत, डॉ. सुतीर्थ दत्ता और डॉ. देवेश जी को शामिल किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिजली के तारों से टकराकर और इनके करंट की चपेट में आकर इन पक्षियों को मरने से बचाने के साथ ही इनके अंडों की सुरक्षा के लिए भी एक संरक्षण नीति की आवश्यकता है। 


 

मुकुंद

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

 

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement