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कानून का सम्मान करना आवश्यक है, ताकि हमारा लोकतंत्र मजबूत बना रहे - लाल बहादुर शास्त्री

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1 अगस्त विशेष:- भारतरत्न राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन

Date : 01-Aug-2024

भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पत्रकारभारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी नेता, वक्ता, समाज सुधारकराजर्षि के नाम से विख्यात एवं हिंदी को राष्ट्रभाषा के रुप में प्रतिष्ठित कराने वाले भारत रत्न राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जी का जन्म 1 अगस्त 1882 को उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर इलाहाबाद में हुआ था पुरुषोत्तम दास टंडन बहुमुखी प्रतिभा के धनि थे उन्होंने कई क्षेत्रो में कार्य किया हैं स्वतंत्रता संग्राम, साहित्य और समाज  और अन्य  क्षेत्रो में  कार्य किये हैं |

राजनैतिक जीवन :-

उनका राजनैतिक जीवन सन 1905  से प्रारम्भ हुआ जब बंगाल विभाजन के विरोध में पूरे देश में आंदोलन हो रहा था। बंगभंग आंदोलन के दौरान उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार प्रारम्भ किया और  स्वदेशी अपनाने का प्रण किया। अपने विद्यार्थी जीवन में वे कांग्रेस पार्टी के सदस्य बन गए थे। 1906 मेंपुरुषोत्तम दास टंडन ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का इलाहाबाद में प्रतिनिधित्व किया था।  वे लोक सेवक संघ का हिस्सा  भी रहे। जालियां वाला बाग कांड के जांच के लिए जो समिति बनाई थी उसमें पुरुषोत्तम दास टंडन भी शमिल थे। 1920 और 1930 के दशक में उन्होंने असहयोग आन्दोलन और नमक सत्याग्रह में भाग लिया  था और जेल भी  गए। सन 1931 में गांधी जी के लंदन गोलमेज आंदोलन से  वापस आने से पहले गिरफ्तार किए गए नेताओं में वे भी थे। पुरुषोत्तम दास टंडन लाला राजपत राय द्वारा स्थापित लोक सेवा बोर्ड के अध्यक्ष भी थे। वे  कृषक आंदोलन से भी जुड़े रहे और वे बिहार क्षेत्रीय किसान सभा के अध्यक्ष भी रहे। वह उत्तर प्रदेश के विधान सभा का 13 साल (1937-1950) तक अध्यक्ष रहे। उन्हें 1946 में भारत की संविधान सभा में भी सम्मिलित किया गया।

आजादी के बाद, 1948 में, उन्होंने पट्टाभि  सितारमैय्या के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा लेकिन वो ये चुनाव हार गए। सन 1950 में उन्होंने आचार्य जे.बी. कृपलानी को हराकर कांग्रेस अध्यक्ष पद प्राप्त किया पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ वैचारिक मतभेद के कारण उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्याग पत्र दे दिया। सन 1952 में लोकसभा और सन 1956 में राजयसभा के लिए चुने गए। इसके बाद खराब स्वास्थ्य के चलते उन्होंने सक्रिय सार्वजनिक जीवन से सन्यास ले लिया। 1961 में, भारत सरकार ने पुरुषोत्तम दास टंडन को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार "भारत रत्न" से भी सम्मानित किया गया था।

साहित्यिक जीवन :-

पुरुषोत्तम दास टंडन  ने साहित्य में भी अपना योगदान दिया हैं | विचारो की मदद से स्वतंत्रता प्राप्त करना उनका पहला लक्ष्य था | “यदि हिंदी भारतीय स्वतंत्रता के आड़े आएगी तो मै स्वयं उसका गला घोंट दूँगा”। उनका प्रवेश स्वन्त्रत्र्ता की लड़ाई में साहित्य के कारण ही हुआ था | उन्होंने ग्वालियर कालेज में हिंदी के लेक्चरर के रूप में कार्य किया। 10 अक्टूबर 1990 को काशी में हिंदी साहित्य सम्मलेन का प्रथम अधिवेशन महामना मालवीय जी की अध्यक्षता में हुआ और टंडन जी सम्मलेन के मंत्री नियुक्त हुए।

तदनन्तर हिंदी साहित्य सम्मेलन के माध्यम से हिंदी की अत्यधिक सेना की। टंडन जी ने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए हिंदी विद्यापीठ प्रयाग की स्थापना की। इस पीठ की स्थापना का उद्देश्य हिंदी शिक्षा का प्रसार और अंग्रेजी वर्चस्व को समाप्त करना था। सन 1949 में जब सविंधान सभा में राजभाषा संबंधी प्रश्न उठाया गया तो उस समय एक विचित्र स्थिति थी। महात्मा गांधी तो हिंदुस्तानी के समर्थक थे ही, पंडित नेहरू और डॉ.राजेंद्र प्रसाद तथा अन्य नेता भी हिंदुस्तानी के पक्षधर थे, पर टंडन जी हारे नहीझुके नहीं। परिणामतः बिजय भी उनकी हुई। 11 से 14 दिसंबर 1949 को गरमागरम बहस के बाद हिंदी और हिंदुस्तानी को लेकर कांग्रेस में मतदान हुआ, हिंदी को 62 और हिंदुस्तानी को 32 मत मिले। अंततः हिंदी राष्ट्रभाषा और देवनागरी राजलिपि घोषित हुई। हिंदी को राष्ट्रभाषा और वंदेमातरम को राष्ट्रगीत स्वीकृत करने के लिए टंडन जी ने अपने सहयोगियों के साथ एक और अभियान चलाया था |

पत्रकारिता :-

 पत्रकारिता के क्षेत्र में टण्डन जी अंग्रेजी के भी उद्भट विद्वान थे। श्री त्रिभुवन नारायण सिंह जी ने उल्लेख किया है कि सन 1950 में जब वे कांग्रेस के सभापति चुने गए तो उन्होंने अपना अभिभाषण हिंदी में लिखा और अंग्रेजी अनुवाद मैं किया। श्री सम्पूर्णानंद जी ने भी उस अंग्रेजी अनुवाद को देखा, लेकिन तब टंडन जी ने उस अंग्रेजी अनुवाद को पढ़ातो उसमे कई पन्नों को फिर से लिखा। तब तब मुझे इस बात की अनुभूति हुई कि जहां वे हिंदी के विद्वान थे, वहीं अंग्रेजी साहित्य पर भी उनका बड़ा अधिकार था। 

मृत्यु :-

पुरुषोत्तम दास टंडन का 1 जुलाई 1962 को उनका स्वर्गवास हो गया और प्रत्येक वर्ष 1 जुलाई के दिन पुरुषोत्तम दास टंडन की पुण्यतिथि मनाया जाता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
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