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जो व्यक्ति दूसरों के काम न आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है - ईश्वर चंद्र विद्यासागर

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चाणक्य नीति:- इनका त्याग देना ही अच्छा

Date : 18-Sep-2024

 त्यजेद्धर्मं दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत |

त्यजेतक्रोधमुखी भार्या नि:स्नेहान्बान्धवांस्यजेत ||

आचार्य चाणक्य यहां त्यागने योग्य धर्म का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि धर्म में यदि दया न हो तो उसे त्याग देना चाहिए | विद्याहीन गुरु को, क्रोधी पत्नी को तथा स्नेहहीन बंधुओं  को भी त्याग देना चाहिए | अर्थात् जिस धर्म में दया न हो, उस धर्म को छोड़ देना चाहिए | जो गुरु विद्वान न हो, उसे त्याग देना चाहिए | गुस्सैल पत्नी का भी त्याग कर देना चाहिए | जो भाई-बंधु, सगे-संबंधी प्रेम न रखते हों, उनसे संबंध नहीं रखना चाहिए | अर्थात् दयाहीन धर्म को, विद्याहीन गुरु को, गुस्सैल पत्नी को और स्नेहहीन भाई-बंधुओं को त्याग देना ही अच्छा  है |

 
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