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जो व्यक्ति दूसरों के काम न आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है - ईश्वर चंद्र विद्यासागर

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चाणक्य नीति:- ज्ञान का अभ्यास भी करें

Date : 11-Sep-2024

अनभ्यासे विशं शास्त्रमजिर्ने  भोजनं विषम |

दरिद्रस्य विशं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम ||

आचार्य चाणक्य यहां ज्ञान को चिरस्थायी व उपयोगी बनाए रखने के लिए अभ्यास पर जोर देते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार बढ़िया - से- बढ़िया भोजन बदहजमी में लाभ करने के स्थान पर हानि पहुंचाता है और विष का काम करता है, उसी प्रकार निरंतर अभ्यास न रखने से शास्त्रज्ञान भी मनुष्य के लिए घातक विष के समान हो जाता है | यों कहने को तो वह पंडित होता है, परन्तु अभ्यास न होने के करण वह शास्त्र का भली प्रकार विश्लेषण विवेचन नहीं कर पाता तथा उपहास और अपमान का पात्र बनता है | ऐसी स्थिति में सम्मानित व्यक्ति को अपना अपमान मृत्यु से भी अधिक दुःख देता है | जो व्यक्ति निर्धन व दरिद्र है उसके लिए किसी भी प्रकार की सभाएं, उत्सव विष के समान हैं| इन गोष्ठियों, उल्लास के आयोजनों में तो केवल धनवान व्यक्ति ही जा सकते हैं | यदि कोई दरिद्र भूल से अथवा मूर्खतावश इस प्रकार के आयोजनों में जाने की  धृष्टता करता भी है तो उसे वहां से अपमानित होकर निकलना पड़ता है, अत: निर्धन व्यक्ति के लिए सभाओं, गोष्ठियों, खेलों व मेलों- ठेलों में जाना प्रतिष्ठा के भाव से अपमानित करने वाला ही सिद्ध होता है | उसे वहां नहीं जाना चाहिए |

 
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