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ऊर्जा के संरक्षण

Date : 16-Dec-2022

 

ऊर्जा के संरक्षण

मोनोब्लॉक लेथ

सन 1970 में तेल संकट ऊर्जाक्षय को रोकना ऊर्जा से संबंधित प्रमुख विवादास्पद विषय थे। उस समय तक ऊर्जा के उत्पाद उपभोग से संबंधित पर्यावरणीय विषयों के बृहद स्तर पर लोगों का ध्यान आकर्षित नहीं किया था। आजकल व्यक्तिगत, सार्वजनिक सरकारी, सभी क्षेत्रों में पर्यावरणीय समस्याएँ एक प्रमुख विषय हैं। ऊर्जा के अतिशय उपभोग प्राकृतिक संसाधनों के अतिदोहन ने हमारे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। ऊर्जा के अत्यधिक उपभोग से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम करने हेतु हमें ऊर्जा का उपभोग कुशलतापूर्वक करना होगा पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा संसाधनों का उपयोग करना प्रारम्भ करना होगा। संशोधित ऊर्जा क्षमता ऊर्जा का कुशल प्रबंधन पर्यावरण को होने वाली हानि को कम करने वित्तीय बचत में सहायक सिद्ध होगा।

 

उद्देश्य

ऊर्जा उपभोग के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को समझा सकेंगे

दैनिक-जीवन में ऊर्जा के महत्त्व की व्याख्या कर सकेंगे

ऊर्जा वित्तीय विकास के संबंध को स्पष्ट कर सकेंगे;
ऊर्जा संरक्षण को उदाहरण सहित समझा सकेंगे;
उद्योगों में ऊर्जा क्षमता में कैसे संशोधन किया जा सकता है, यह स्पष्ट कर सकेंगे;
इस बात की व्याख्या कर सकेंगे कि विभिन्न स्तरों पर ऊर्जा का संरक्षण कैसे किया जा सकता है;
ऊर्जा कुशल भवनों शहरों की संकल्पना को समझा सकेंगे;
ऊर्जा के वैकल्पिक संसाधनों की सीमाओं को बता सकेंगे;
ऊर्जा परीक्षण की संकल्पना को समझा सकेंगे।

ऊर्जा के उपयोग का पर्यावरण पर प्रभाव

ऊर्जा का उपयोग आपूर्ति समाज की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं, जिन्होंने मनुष्य की किसी भी गतिविधि के द्वारा पर्यावरण को सर्वाधिक प्रभावित किया है। यद्यपि ऊर्जा और पर्यावरण की समस्याएँ मूलरूप से स्थानीय थीं- जैसे- निष्कर्षण से संबंधित समस्याएँ, उसे लाने-ले जाने की समस्या और उससे निकलने वाली हानिकारक गैसों की समस्याएँ। आज इन समस्याओं ने स्थानीय वैश्विक रूप धारण कर लिया है जैसे- अम्ल वर्षा ग्रीन हाउस प्रभाव। ऐसी समस्याएँ आज प्रमुख राजैनितक मुद्दों अन्तरराष्ट्रीय वाद-विवाद और नियमन का विषय बन गई हैं।

ऊर्जा संसाधनों के अपक्षय के अतिरिक्त ऊर्जा का उपभोग मुख्यतः जीवाश्म ईंधन का जलना पर्यावरण को प्रदूषित करता है। जीवाश्म ईंधन के जलने से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है जो वैश्विक ऊष्मण के कारण मौसम में परिवर्तन आज एक वास्तविकता है। वैश्विक ऊष्मण ने पहले ही एक भयावह स्थिति उत्पन्न कर दी है और जल्द ही सम्पूर्ण पृथ्वी के साथ-साथ सजीव प्राणियों, जिन्होंने इस पृथ्वी को अपना निवास बनाया है, के लिये हानिकारक बन जाएँगे। अपने ग्रह पृथ्वी की सुरक्षा हेतु हमारा सतर्क जागरूक रहना अधिक उचित होगा। सारांश में, ऊर्जा का प्रयोग पर्यावरण को दो प्रकार से प्रभावित करता हैः

i.
ऊर्जा संसाधनों का अपक्षय
ii.
जीवाश्म ईंधन के ज्वलन से उत्सर्जित होने वाली ग्रीन हाउस गैसों द्वारा पर्यावरण प्रदूषण।

31.2
ऊर्जा का दैनिक जीवन में महत्त्व

एक औसत घर में लगभग सभी प्रकार की क्रियाकलापों जैसे रोशनी, शीतलन घर के ऊष्मण के लिये, भोजन पकाने के लिये, टी-वी-, कम्प्यूटर अन्य वैद्युत यंत्रों को चलाने के लिये ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है।

ऊर्जा ने सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक आपके जीवन को प्रभावित किया है। इसके बिना जीवनयापन कहीं आना-जाना लोगों के लिये कठिन होगा। ऊर्जा, चाहे वह सौर ऊर्जा हो, नाभिकीय ऊर्जा हो या वह ऊर्जा जो हमारे शरीर में बनाती है; जिससे हम बात करते हैं और चलते हैं, आवश्यक है। ये साधारण कार्य हैं, जिन्हें हम ऊर्जा की सहायता से संपन्न करते हैं और उसके अभाव में नहीं कर सकते।

आप सम्भवतः अपने विद्यालय जाते समय रास्ते में ट्रैफिक लाइट देखते होंगे, जो विद्युत से चलती है। बिना ट्रैफिक लाइट के कारें अव्यवस्थित रूप से चलती हैं और दुर्घटना हो सकती है। जब आप पैदल विद्यालय जाते हो तो शरीर भोजन से जो ऊर्जा प्राप्त करता है, उसका उपयोग करते हो। आप अंधेरा होने पर अवश्य ही घर में लाइट जलाते होंगे। विद्युत के द्वारा आप अपने कमरे में रोशनी करके उसे चमकदार बनाते हों।

यातायात के क्षेत्र में बस, ट्रक, रेलगाड़ियाँ, पानी के जहाज, मोटरें इत्यादि कोयले, गैसोलीन, डीजल गैस इत्यादि से चलती हैं। ये सभी जीवाश्म ईंधन हैं और इनके अतिदोहन के कारण इनका अभाव हो रहा है।

कृषि के क्षेत्र में सिंचाई वाले पम्प, डीजल (एक जीवाश्म ईंधन) या विद्युत से चलते हैं। ट्रैक्टर, थ्रैसर संयुक्त हारवेस्टर (फसल काटने वाला) सभी ईंधन से चलते हैं।

उद्योगों के क्षेत्र में माल बनाने के लिये विभिन्न स्तरों पर बड़ी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

यह सर्वमान्य है कि ऊर्जा वित्तीय विकास मानव विकास के लिये एक प्रमुख निवेश है। भारत में ऊर्जा क्षेत्र को योजना प्रक्रियाओं में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

31.3
ऊर्जा और आर्थिक विकास

ऊर्जा विकास, आर्थिक विकास का एक अभिन्न अंग है। विकासशील देशों की तुलना में आर्थिक रूप से विकसित देशों के आर्थिक उत्पादन में प्रति इकाई अधिक ऊर्जा का उपयोग होता है और प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत भी अधिक है। ऊर्जा को सार्वभौमिक मानव विकास के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण निवेश माना जाता है। अर्थव्यवस्था की वृद्धि के लिये वैश्विक प्रतिस्पर्धा का खड़े होकर सामना तभी कर सकेंगे। जब यह लागत प्रभावी सस्ती और पारिहितैषी ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर होगी।

ऊर्जा खपत इस बात का संकेत करती है कि अर्थव्यवस्था में ऊर्जा को किस कुशलता से प्रयोग किया गया है। भारत की ऊर्जा खपत अन्य उभरते एशियाई देशों की खपत से अधिक है।

भारत में ऊर्जा क्षेत्र को नियोजन प्रक्रिया में उच्च प्राथमिकता प्राप्त है। भारत सरकार ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि ऊर्जा क्षेत्र, एक उच्च विकास दर प्राप्त करने का सकल घरेलू उत्पाद की उपलब्धि में एक प्रमुख बाधा बन सकता है। अतः सुधार प्रक्रिया में तेजी लाने और एकीकृत ऊर्जा नीति अपनाने की आवश्यकता है।

 

ऊर्जा संरक्षण

जैसे कि आप पहले जान चुके हो कि औद्योगिक विकास यातायात के आधुनिक साधनों और विभिन्न प्रकार के यंत्रों हेतु ऊर्जा की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। जीवाश्म ईंधन सार्वभौमिक ऊर्जा का मुख्य स्रोत है, जो सीमित और अनवीकरणीय भी हैं। इसीलिये यह आवश्यक है कि हम ऊर्जा के दुरुपयोग को रोकें और ऊर्जा संरक्षण के लिये प्रयास करें। प्रतिदीप्ति प्रकाश बल्बों, ऊर्जा कुशल उपकरणों और कम उत्सर्जक काँचों का प्रयोग, ऊर्जा उपभोग को कम करने में महत्त्वपूर्ण है। अगर ऊर्जा के स्रोत समाप्त हो गए तो हम अपने कर्तव्य में विफल हो जाएँगे। यह हमारी अगली पीढ़ी के प्रति हमारा उत्तरदायित्व है। ऊर्जा का संरक्षण प्रत्येक मनुष्य के दैनिक जीवन का कर्त्तव्य होना चाहिए। ऊर्जा संरक्षण हेतु व्यक्तिगत, सामुदायिक सरकारी स्तर पर गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है।

घर के स्तर पर ऊर्जा का संरक्षण

प्रत्येक देश के निवासियों की मांग, उस देश में प्रयोग की जाने वाली ऊर्जा का एक प्रमुख भाग होती है। एक आम घर की ऊर्जा-हितैषी घरों से तुलना करने पर, वार्षिक ऊर्जा बिल को 40 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। हमें अपने घरों के लिये एक ऊर्जा संरक्षण योजना विकसित करनी चाहिए। यह पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ एक आर्थिक रूप से सफल प्रक्रिया है।

प्रमुख घरेलू उपकरणों के प्रयोग हेतु

बड़े घरेलू उपकरणों में प्रमुख रूप से अधिक ऊर्जा व्यय होती और ऐसे घरेलू उपकरणों की कार्यक्षमता को विकसित करके विद्युत के सकल घरेलू उपभोग को उल्लेखनीय रूप से कम किया जा सकता है।

फ्रिज

1. इसे 37°F - 400°F पर रखना चाहिए और फ्रीजर को 50°F और इसमें स्वचालित आर्द्रता नियंत्रित होनी चाहिए।

2.
हमें फ्रिज को पूर्णतः भरा रखना चाहिए और इसकी स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि इसकी बाह्यसतह पर सीधे सूर्य का प्रकाश पड़े।

3.
अगर फ्रिज का दरवाजा ठीक से बंद नहीं होगा तो यह अधिक ऊर्जा का उपभोग करेगा। खुले तरल पदार्थ फ्रिज में नहीं रखने चाहिए क्योंकि यह कंप्रेशर पर अतिरिक्त बोझ डालेगा।

4.
फ्रिज में भोजन रखने से पहले उसे कमरे के तापमान तक ठण्डा करना चाहिए।

5.
फ्रिज का दरवाजा बार-बार नहीं खोलना चाहिए।

ओवन/माइक्रोवेव ओवन

ओवन का प्रयोग करते समय ऊर्जा संरक्षण हेतु हमें निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए-


1.
हमें माइक्रोवेव ओवन का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि यह परम्परागत ओवन से 50% कम ऊर्जा का प्रयोग करते हैं।
2.
ओवन के दरवाजे में कोई दरार या टूटा नहीं होनी चाहिए।
3.
तापमान को अधिक प्रभावी बनाने हेतु हमें भोजनढक्कन खोलकरबनाना चाहिए।
4.
हमें प्रतिक्षेपक पैन (Reflector pan) को स्टॉव टॉप के चमकदार स्पष्ट हीटिंग एलीमेन्ट के नीचे रखना चाहिए।
5.
ऊर्जा के उपभोग को कम करने हेतु हमें पानी का सावधानी से प्रयोग करना चाहिए।
6.
खाना पकाते समय, तरल पदार्थ के उबलने तक अधिक ऊर्जा का प्रयोग करना चाहिए। उसके पश्चात खाने को धीमी आँच पर पकाना चाहिए।
7.
एक समय में अधिक से अधिक सम्भावित भोजन ओवन में पकाना चाहिए।
8.
ओवन की शेल्फ को ओवन चालू करने से पहले पुनर्व्यवस्थित करना चाहिए और ओवन में बार-बार नहीं झांकना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक बार ओवन के खुलने पर उसका तापमान 4-5°C कम हो जाता है।
9.
खाना पकाने से पहले ओवन को कुछ मिनट के लिये गर्म करना पर्याप्त होगा।
10.
मुख्यतः गैस पर बनी वस्तुओं के लिये स्टोवटॉप परन्तु खाना पकाना उचित है।

इस्त्री करना

प्रतिदिन हम अपने कपड़ों को इस्त्री करते हैं। यह लगभग 1000 वॉट ऊर्जा का उपभोग करते हैं, जो कि एक बड़ी मात्रा है। लेकिन हम एक या दो कपड़े एक बार में इस्त्री करने के स्थान पर थोक में कपड़ों को इस्त्री करके ऊर्जा को बचा सकते हैं। यह सुनिश्चित करें कि इस्त्री का तापस्थायी काम कर रहा है और कपड़ा इस्त्री करने हेतु सही तापमान निश्चित करें।

खाना पकाना

खाना पकाने में ऊर्जा के बड़े भाग का उपभोग किया जाता है। खाना बनाते समय इन सावधानियों के द्वारा ऊर्जा बचाई जा सकती है। खाना पकाने हेतु खाना पकाने के बरतन कुकर प्लेट, कॉयल (Coil) या बर्नर से थोड़ा बड़ा होना चाहिए। सॉसपैन का ढक्कन खुला होना चाहिए। एक बार भोजन उबलने के पश्चात आँच धीमी कर देनी चाहिए।

धुलाई की मशीन

धुलाई की मशीन 20% विद्युत का उपभोग करती है। धुलाई की मशीन का प्रयोग करते समय निम्न प्रकार से ऊर्जा बचायी जा सकती हैः

1.
हमें काम करते समय कपड़े धोते समय ठण्डे पानी का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि 90% ऊर्जा धुलाई की मशीन द्वारा पानी को गर्म करने में प्रयोग होती है।

2.
डिटरजेन्ट प्रयोग करने के निर्देशों का सावधानी से पालन करना चाहिए। अच्छे परिणाम हेतु अधिक डिटरजेन्ट का प्रयोग करने से अधिक ऊर्जा का उपभोग होता है।

3.
मशीन को कपड़ों के पूर्णभार के साथ होना चाहिए लेकिन मशीन पर अतिरिक्त भार नहीं डालना चाहिए।

4.
ऊर्जा खपत को कम करने के लिये कपड़ों को पहले भिगोकर धोना चाहिए।

बिजली/रोशनी

विश्व में ऊर्जा की बढ़ती हुई मांग ऊर्जा के प्रतिदिन बढ़ते मूल्य ने गहन ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की ऊर्जा क्षमता को सुधारने हेतु एक तर्कसंगत कारण दिया है। बिजली का प्रयोग करते समय ऊर्जा को बचाने की कुछ विधियाँ निम्नलिखित हैं:

1.
बिजली का प्रयोग होने पर उसे बंद कर देना चाहिए।

2.
दिन के समय अधिक से अधिक सौर ऊर्जा का प्रयोग करना चाहिए। बल्ब ट्यूबलाइट का दिन में प्रयोग नहीं करना चाहिए।

3.
सम्पूर्ण क्षेत्र या कमरे में रोशनी करने के स्थान पर सिर्फ काम करने के स्थान पर रोशनी का प्रयोग करना चाहिए।

4.
तापदीप्त बल्ब (Incandescent bulbs) के स्थान पर कॉम्पैक्ट फ्लोरसेंट लैम्प का प्रयोग करना चाहिए। एक 23 वॉट का सीएफएल, 90 या 100 वाट के बल्ब का स्थान ले सकता है।

5.
कम्प्यूटर, टी.वी., टेप रिकार्डर, संगीत प्रणाली इत्यादि को खुला छोड़ें। क्या तुम जानते हो कि टी.वी. को बंद करके तुम कितनी बिजली बचा सकते हो? तुम 70 किलावॉट/घंटा प्रतिवर्ष बिजली बचा सकते हो।

6.
गीजर से सर्वाधिक ऊर्जा की खपत होती है। तापस्थायी को निम्न तापमान 45° से 50°C पर नियत किया जा सकता है।

7.
बल्ब कमरे में ऐसे स्थानों पर रखने चाहिए जिससे वे एक रोशनी सतह के स्थान पर कई कोनों को आलोकित कर सकें।

8.
जहाँ तक सम्भव हो, धीमे किए जा सकने वाले बल्बों का प्रयोग करें।

विद्युत संरक्षण

वैश्विक ऊर्जा संसाधनों के निष्कर्षण तथा ऊर्जा उपभोग के प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभावों के प्रति बढ़ती हुई जागरूकता के कारण, ऊर्जा कुशल यंत्रों तकनीकों को विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। जिससे ऊर्जा व्यय पर्यावरणीय संकटों को कम किया जा सके।

अन्य

कुछ अन्य विधियाँ, जिनके द्वारा ऊर्जा की बचत की जा सकती है, इस प्रकार हैं:-

1.
खाना पकाने हेतु गैस उपकरणों की जाँच समायोजित होनी चाहिए, जिससे आँच लाल या पीली के स्थान पर नीली रहे।
2.
जब कम्प्यूटर प्रयोग में हो तो उसे बंद कर देना चाहिए।
3.
ऐसे उपकरणों (जैसे-कर्लिंग इस्त्री, कॉफी पात्र, इस्त्री) का प्रयोग करना चाहिए जो समयानुसार स्वयं बंद हो जाएँ।
4.
पुराने टी.वी., वी.सी.आर. इत्यादि उपकरणों को आवश्यकता पड़ने पर ऊर्जा हितैषी नमूनों से बदल देना चाहिए।

शीतलन

शीतलन में ऊर्जा के एक बड़े भाग की खपत होती है। ऊर्जा संरक्षण हेतु निम्नलिखित शीतलन उपाय किए जा सकते हैं:-

1.
ठण्डी हवा के लिये रात में खिड़कियाँ खोल देनी चाहिए।
2.
दिन के समय खिड़कियाँ बन्द रखनी चाहिए।
3.
पश्चिम की ओर पड़ने वाली खिड़कियों पर पर्दे लगे होने चाहिए। रात की ठण्डी हवा के लिये घर में एक बड़े पंखे का प्रयोग किया जा सकता है।
4.
वातानुकूलन का प्रयोग जब आवश्यकता हो तभी करना चाहिए ऊर्जा हितैषी मॉडल स्थापित किए जाने चाहिए।
5.
वातानुकूलित घरों में शीतलन को 25°C पर स्थिर रखना चाहिए।
6.
वातानुकूलन प्रणाली के फिल्टरों संघनित्र (कन्डेन्सर) की नियमित सफाई से ऊर्जा की बचत होती है।

सामुदायिक स्तर पर ऊर्जा का संरक्षण

सम्पूर्ण विश्व में ऊर्जा संरक्षण एक बहुत ही संवेदनशील विषय है। एक समाज, जहाँ धन मुख्यतः आर्थिक रूप से लाभप्रद विकल्प हमारे लिये उपस्थित हों, ऊर्जा संरक्षण हेतु निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिएः

1.
अनावश्यक रोशनी को बंद कर देना चाहिए। मुख्यतः जब सम्मेलन कक्ष इत्यादि प्रयोग में रहे हों।
2.
सर्वाधिक मांग के घण्टों के समय ऊर्जा का उपभोग कम करना चाहिए।
3.
कम्प्यूटर सेट, मॉनिटरों, फोटोकॉपियरों अन्य व्यापारिक उपकरणों को उनकी ऊर्जा संरक्षण प्रणाली पर रखना चाहिए। लम्बे खाली घण्टों के समय जैसे दोपहर के भोजन के समय इन्हें बंद कर देना चाहिए।
4.
गोदामों हेतु आकाशीय रोशनी का प्रयोग करना चाहिए।
5.
यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वातानुकूलनयुक्त कार्यालयों में उचित खिड़कियाँ हों और वातानुकूलन प्रयोग में हो तब सारे दरवाजे बंद हों।

ऊर्जा कुशल नए शहरों की संकल्पना


किसी भी व्यापक भूमि उपयोग योजना प्रक्रिया में ऊर्जा संरक्षण पर विचार किया जाना चाहिए। विभिन्न प्रकार के ताप स्रोतों जैसे ईंधन, तेल, गैस, लकड़ी, विद्युतधारा, सूर्य तथा कोयले इत्यादि का घरों व्यापारिक भवनों का प्रयोग किया जाता है। इस ऊर्जा उपभोग ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण इन दिनों एक ज्वलन्त विषय है। ऊर्जा संरक्षण के द्वारा पर्याप्त आर्थिक बचत की जा सकती है।

भूमि का प्रभावी प्रयोग ऊर्जा संरक्षण का एक अच्छा साधन सिद्ध हो सकता है। शहर की संरचना इस प्रकार की होनी चाहिए कि विकासीय घनत्व शहर के केन्द्र की ओर अधिक हो, जहाँ नगर निगम द्वारा पानी और सीवर की सुविधा हो। दूरस्थ क्षेत्रों में बहुत कम निर्माण करना चाहिए।

एक बस्ती को पर्यावरण अनुकूल बनाने हेतु उसके निवासियों का सहयोग आवश्यक है। एक शहर में पर्यावरण के अनुकूल भवन हो सकते हैं, परन्तु जब तक उसके निवासी किसी ऊर्जा संरक्षण और पारिहितैषी जीवन का संकल्प अभ्यास नहीं करते, ऊर्जा कुशल शहर का उद्देश्य सफल नहीं होगा। शिक्षा, पारिहितैषी व्यवहार पारिस्थितिकी अनुकूल मूलभूत सुविधाएँ एक सच्चे ऊर्जा कुशल शहर का निर्माण कर सकती हैं।

             (i)                  शिक्षा

शिक्षा ऊर्जा संरक्षण हेतु जागरूकता उत्पन्न करने का सबसे अच्छा उपाय है। सभी शहरी सामुदायिक और दस्तावेजों पर संरक्षण संदेश के द्वारा एक ब्रांडेड कार्यक्रम बनाया जा सकता है। ऊर्जा संरक्षण संबंधित सूचनाएँ वेबसाइटों और स्थानीय केवल स्टेशनों पर उपलब्ध होनी चाहिए।

(ii)
व्यवहार में बदलाव

ऊर्जा संरक्षण की ओर उचित दृष्टिकोण रखने के लिये निवासियों को कम वाहन चलाने और पैदल चलने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए और सार्वजनिक भवनों पर अधिक मोटरसाइकिल रैक स्थापित किए जाने चाहिए।

ऊर्जा संरक्षण की सबसे अच्छी विधि यह है कि कमरा छोड़ने पर बिजली की आवश्यकता होने पर कम्प्यूटर को बंद कर देना चाहिए। जब उपकरण प्रयोग में हों तो उन्हें स्विच से निकाल देना चाहिए। तापस्थायी (थर्मोस्टेट) को सर्दियों में बंद कर देना चाहिए और गर्मियों में बढ़ा देना चाहिए।

घर एवं व्यापार के अपशिष्टों का पुनर्चक्रण करना चाहिये। यह ऊर्जा संरक्षण के सकारात्मक परिणाम देगा।

(iii)
अपनी आधारभूत सुविधाओं को पर्यावरण अनुकूल बनाना

बल्ब के स्थान पर ऊर्जा कुशल कॉम्पैक्ट फ्लोरसेन्ट बल्ब का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इससे 75% ऊर्जा की खपत को कम करते हैं और साधारण बल्ब से 10 गुना ज्यादा चलते हैं। यंत्रों और कार्यालयों के उपकरणों को ऊर्जा प्रमाणित इकाइयों से बदल देना चाहिए। यह ऊर्जा के प्रयोग लागत को कम करेगा।

 (ii)   ऊर्जा जाँच की भूमिका

ऊर्जा जाँच की प्रथम प्रमुख भूमिका ऊर्जा उपभोग के क्षेत्र को पहचानना तथा अधिक खपत को पता लगाना है जिससे ऊर्जा संरक्षण के अवसरों को तलाशा जा सके। इस प्रकार से धन की बचत की जा सकती हैं। उदाहरण के लिये एक कारखाने की जाँच के दौरान उसके कर्मचारियों को ऊर्जा की बचत करने वाले उपकरणों के प्रयोग हेतु प्रशिक्षित किया जा सकता है। साथ ही उन्हें ऊर्जा संरक्षण की आवश्यकता हेतु भी सतर्क किया जा सकता है। अतः ऊर्जा खपत ऊर्जा क्षति को कम करने हेतु यह एक व्यावहारिक बदलाव है।

यह एक स्पष्ट कथन है कि ऊर्जा की जाँच ऊर्जा संरक्षण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

ऊर्जा प्रयोग का विश्लेषण

ऊर्जा उपभोग के क्षेत्रों को पहचान कर ऊर्जा के उपयोग का विश्लेषण किया जा सकता है। इस विश्लेषण का उपयोग प्रबंधन संरचना के पुनर्रीक्षण एवं ऊर्जा के नियंत्रण करने की विधियों के लिये किया जा सकता है। प्रति क्षेत्र वास्तविक ऊर्जा उपभोग को संयंत्र के विभिन्न स्थानों में उपमीटर लगाकर ज्ञात कर सकते हैं। यह डाटा ऊर्जा-उपभोग के निर्धारण में मदद कर सकता है। इस संयंत्र मैनेजर की मदद से सभी उपकरणों की सूची बनायी जा सकती है और उनके प्रयोग किये गये घंटों के बारे में पता लग सकता है। यह सूचना स्प्रेडशीट सूचना का एक महत्त्वपूर्ण रूप में भूमिका निभा सकती है और इन चार्टों के परिणाम विश्लेषण के लिये उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।

 
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