युधिष्ठिर बोले, सुनो द्रोपदी! मैं भगवान् का भजन सौदे के लिए नहीं किया करता | मैं भजन करता हूँ केवल इसलिए कि भजन करने से आनंद प्राप्त होता है | सामने फैली हुई उस पर्वतमाला को देखो, उसे देखते ही मन प्रफुल्ल्ति हो जाता है | हम उससे कुछ मांगते नहीं | हम इसलिए देखते हैं कि देखने में प्रसन्नता होती है | इसी प्रसन्नता के लिए मैं भगवान् का भजन करता हूँ |