भगवान् राम जब शबरी से मिलने के लिए गए, तो उन्होंने देखा कि वहां के सारे फूल खिले हुए हैं, उनमें से एक भी कुम्हलाया नहीं है तथा प्रत्येक से मधुर भीनी-भीनी सुगंध निकल रही है | उन्होंने जिज्ञासावश शबरी से इनका करण पूछा, तो वह बोली, “भगवन, इसके पीछे एक घटना है| यहां बहुत समय पूर्व मातंग ऋषि का आश्रम था, जहाँ बहुत से ऋषि-मुनि और विद्यार्थी रहा करते थे | एक बार चातुर्मास के समय आश्रम में ईंधन समाप्त- प्राय था | वर्षा प्रारंभ होने के पूर्व ईंधन लाना जरुरी था | प्रमादवश विद्यार्थी लकड़ी लाने नहीं जा रहे थे | तब एक दिन स्वयं वृद्ध मातंग ऋषि अपने कंधे पर कुल्हाड़ी रखकर लकड़ियाँ काटी और उन्हें बांध-बांध कर वे लोग आश्रम की ओर लौटने लगे | हे राम ! वृद्ध आचार्य के शरीर से श्रम-बिंदु निकलने लगे थे | विद्यार्थी भी पसीने से तर- बतर हो गए थे | तब जहाँ-जहाँ वे श्रमबिंदु गिरे थे, वहां-वहां सुंदर फूल खिल उठे, जो बढ़ते-बढ़ते आज सारे वन में फ़ैल गए हैं | यह उनका पुण्य प्रभाव ही है कि वे ज्यों के त्यों बने हुए हैं, कुम्हला नहीं रहे हैं |” तात्पर्य यह कि भली प्रकार से किये गए कार्य मधुर सुगंध देते हैं और मिट्टी पर ही खिलते हैं | श्रमजीवी के शरीर से निकलनेवाला पसीना ही संसार का पोषण करता है और जीवन जीने की अनुकूल स्थिति पैदा करता है |