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कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी: भारतीय संस्कृति के प्रबल पोषक

Date : 30-Dec-2022

शिक्षाविद, साहित्य साधक, विधि वेत्ता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी भारत की गौरवशाली आध्यात्मिक, बौद्धिक तथा सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और संवर्धन के प्रबल पक्षधर थे। उन्होंने राष्ट्र उन्नयन के लिए मन, वचन और कर्म से भिन्न-भिन्न भूमिकाओं का निर्वहन किया।
उनका जन्म गुजरात के भरूच (तत्कालीन बाम्बे राज्य) में 30 दिसंबर 1887 को माणिकलाल मुंशी और तापीबेन के यहां हुआ। उन्हें बड़ौदा महाविद्यालय में महर्षि अरविंद जैसे उद्भट विद्वान प्राध्यापक से पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अरविंद घोष के वैचारिक और बौद्धिक शक्तिपात के प्रभाव से ही मुंशीजी के हृदय में औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध हथियारबंद विद्रोह का बीजारोपण हो गया था। 23 वर्ष की आयु में मुंबई विश्वविद्यालय से विधि स्नातक होकर मुंबई उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की। उन्होंने वकालत का काम भूलाभाई देसाई जी से सीखा।असाधारण प्रतिभा के धनी होने से कानून के प्रकांड विद्वान के रूप में शीघ्र ही स्थापित हो गए।
वे गुजराती, हिंदी, कन्नड़, तमिल, मराठी, अंग्रेजी के साथ-साथ फ्रैंच और जर्मन भाषाओं के जानकार थे।उन्होंने विभिन्न भाषाओं में 127 पुस्तकें लिखीं। उनकी पहली कहानी 'मारी कमला' स्त्री बोध नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। उन्होंने 'भार्गव' 'गुजरात' 'सामाजिक कल्याण' समाचार पत्र 'हंस' तथा भारतीय विद्या भवन पत्रिका का संपादन किया। 1915 में यंग इंडिया समाचार पत्र के संपादन कार्य से जुड़े। प्राच्यविद्या के बहुश्रुत विद्वान मुंशी की प्रमुख कृतियों में, गुजरातनी, मारी विनजवाबदार कहानी, कृष्णावतार, राजाधिराज, जय सोमनाथ, भगवान कौटिल्य, भग्न पादुका, लोपामुद्रा, आधेरस्ते, सीधाचढ़ान, स्वप्न सिद्धिनी, शोधमां, पुरंदर पराजय, अविभक्त आत्मा, तर्पण, पुत्र समोबढ, ध्रुवस्वामिनीदेवी, अज्ञांकित, स्नेह संभ्रम, गुजरात एंड इट्स लिटरेचर, अर्ली आर्यन इन गुजरात, अखंड हिंदुस्तान,द आर्यन ऑफ द बेस्टकोस्ट इंडियन डेडलॉक, भगवत गीता एंड मॉडर्न लाइफ, भगवद्गीता-एन अप्रोच, फाउंडेशन ऑफ इंडियन कल्चर, रिकंस्ट्रक्शन ऑफ सोसाइटी थ्रो ट्रस्टीशिप आदि शामिल हैं।
देश सेवा के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित होकर होम रूल लीग, बारदोली सत्याग्रह, सविनयअवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह में सक्रिय भागीदारी की। 1928 में किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए बारदोली सत्याग्रह में भाग लेने के कारण जेल हुई 1930 में मुक्त के गांधी इरविन समझौता के सफल होने के बाद भी जेल गए। वैचारिक मतभेद होने के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस छोड़ी। राजगोपालाचारी जी की स्वतंत्र पार्टी से जुड़े। इसके बाद भारतीय जनसंघ की सदस्यता ग्रहण कर ली। वे राष्ट्रीय शिक्षा के समर्थक थे। उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति कोई जड़ वस्तु नहीं है। वे भारतीय संस्कृति को चिंतन का एक सतत प्रवाह मानते थे। उनका स्वप्न था कि ऐसे केंद्र की स्थापना की जाए "जहां इस देश का प्राचीन ज्ञान और आधुनिक बौद्धिक आकांक्षाएं मिलकर एक नए साहित्य, नए इतिहास और नई संस्कृति को जन्म दे सकें।" इसे पूरा करने के लिए 7 नवंबर 1938 में भारतीय विद्या भवन की स्थापना की। विश्वभर में जिसके 120 केंद्र हैं, जिनसे साढ़े तीन सौ से अधिक शैक्षणिक संस्थान जुड़े हुए हैं, इनमें अभियांत्रिकी, सूचना एवं प्रौद्योगिकी प्रबंधन, संचार व पत्रकारिता, विज्ञान व कला वर्ग की पढ़ाई की व्यवस्था है। देश के लिए उनका यह अप्रतिम योगदान चिर स्मरणीय हैं। उनके संस्कृत अनुराग के चलते मुंबादेवी संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना हुई जिसमें संस्कृत और शास्त्रों की पारंपरिक ढंग से शिक्षा देना शुरू हुआ।
विभिन्न महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों मंत्री, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल पद पर कार्य किया। पं. जवाहरलाल नेहरू से मतभेद होने के बाद भी सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। मन्दिर में पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी ने मूर्ति प्रतिष्ठा की। संविधान निर्माण की सर्वाधिक 11 समितियों में वे सदस्य बनाए गए थे। उनके द्वारा प्रारूप निर्माण के समय हिंदुस्तान की आत्मा को जिंदा रखने के निमित्त अनेक प्रावधान जोड़े गए। "हर व्यक्ति को समान संरक्षण" का मसौदा तैयार कराया। हिंदी तथा देवनागरी लिपि को नए भारतीय संघ की राजभाषा का स्थान दिलाने में मुंशी ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 8 फरवरी 1971 को राष्ट्रभक्त कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी पंचतत्व में विलीन हो गए। उन्हें शत-शत नमन।

 

शिवकुमार शर्मा

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

 
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