"गीता के शाश्वत श्लोक: धर्म, कर्म और ज्ञान का मार्ग" | The Voice TV

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"गीता के शाश्वत श्लोक: धर्म, कर्म और ज्ञान का मार्ग"

Date : 11-Dec-2024

गीता जन्मी नहीं है, योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के मुखारविंद से इनका प्राकट्य हुआ है। श्रीमद्भगवद्गीता का प्रकट होना महाभारत काल में जुड़ा हुआ है। इस संदर्भ में महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत प्रमाण मिलते है। गीता का उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में युद्ध के पूर्व उस समय दिया था, जब अर्जुन अपने कर्तव्य को लेकर दुविधा में थे और युद्ध करने से पीछे हट रहे थे।

यह घटना लगभग 5000 वर्ष पूर्व, द्वापर युग के अंत और कलियुग के आरंभ से पूर्व की मानी जाती है। सामान्यतः सभी ऐसा मानते हैं, कि महर्षि वेदव्यास ने महाभारत नामक विशाल ग्रंथ को  लिपिबद्ध किया श्रीमद्भगवद्गीता उसी का अंश है। किंतु महाभारत का लेखन कार्य बुद्धि विनायक भगवान श्री गणेश ने स्वयं अपने कर कमलों से किया और महर्षि वेदव्यास द्वारा इसे लिखाया गया । श्रीमद्भगवद्गीता उसी का एक भाग है। 
श्रीमद्भगवद्गीता का प्रकट होना एक ऐतिहासिक घटना नहीं है । यह धर्म, आध्यात्म के साथ साथ  मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आने वाली कठिन परिस्थितियों में मार्गदर्शन का महत्वपूर्ण कार्य करती है, क्योंकि इसमें जीवन, धर्म, कर्तव्य और मोक्ष से संबंधित गहन ज्ञान समाहित है। यदि मनुष्य श्रीमद् भागवत गीता का वाचन करता है तो उसे इसमें ऐसे कई श्लोक मिलेंगे जो जीवन को यथार्थ से जोड़ते हैं।आज विश्व के कई विश्वविद्यालयों और संस्थाओं में गीता प्रबंधन के साथ- साथ शोध का विषय भी है। आश्चर्य यह की भारत में इसे पढ़ने और समझने वालों की कमी है।
इन श्लोकों से स्पष्ट होता है कि गीता का ज्ञान व्यक्ति को कर्म, भक्ति और ज्ञान का संतुलन बनाना सिखाता है। आज के युग में गीता के उपदेश प्रासंगिक बने हुए हैं। जीवन की व्यस्तता, मानसिक तनाव और नैतिकता के संकट के समय में गीता हमें आत्मिक शांति और सही दिशा प्रदान करती है। इसके उपदेश व्यक्तिगत विकास, सामाजिक सद्भाव और वैश्विक शांति के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। इस दृष्टि से गीता जी का प्रकटोत्सव  एक धार्मिक पर्व ही नहीं है, यह आत्मा की चेतना को जागृत करने का एक अवसर है। गीता हमें जीवन को सही दृष्टिकोण से समझने और अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने की प्रेरणा देती है। यह पर्व हमें श्रीकृष्ण के दिव्य ज्ञान का स्मरण कराता है और हमें यह सिखाता है कि सच्चा सुख ईश्वर की भक्ति ,कर्म और धर्म के पालन में है।

 

 
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