अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस : आदमी को पहाड़ खाते देखा है..।
Date : 11-Dec-2024
भोपाल से इंदौर जाते हुए जब देवास बायपास से गुजरता हूँ तो कलेजा हाथ में आ जाता है। बायपास शुरू होते ही बाँए हाथ में हनुमानजी की विराट प्रतिमा है, उसके पीछे खड़े पहाड़ का जो दृश्य है,बेहद दर्दनाक है। उसे देखकर कई भाव उभरते हैं। कि जैसे चमगादड़ ने अमरूद का आधा हिस्सा खाकर फेंक दिया हो। कि जैसे जंगली कुत्तों ने जिंदा वनभैंसे के लोथड़े निकाल लिए हों। कि जैसे हमने बर्थडे की केक को चाकू से काटा हो। यदि आपमें जरा भी संवेदना होगी तो इस अधखाए पहाड़ को देखकर कुछ ऐसे ही लगेगा। दाईं ओर गुंगुआती हुई कई चिमनियां दिखेंगी। दृश्य कुछ ऐसा बनता है कि मानो धरतीमाता के मुँह में जबरन कई सुलगती हुई बीडियाँ दता दी गईं हो।
अब ये कुछ सवाल खुद से पूछिये.। क्या हम कोई पहाड़ बना सकते हैं। क्या जंगल,नदी,झरने पैदाकर सकते हैं। तो फिर इन्हें सजाए मौत देने,नष्टभ्रष्ट करने का अधिकार किसी को कहां से मिला। पुराणकथाओं में पढ़ा है कि एक बार सहस्त्रबाहु ने नर्मदा को बाँधने की कोशिश की थी परशुराम ने उसके सभी हाथ काट ड़ाले। आज हम नदियों को बाँधने,उनकी धारा को मोड़ने की,पहाड़ों और जंगलों को खाने की राक्षसी कोशिशें कर रहे हैं। इन्हें हमारे वैदिक वाग्यमय में माता,पिता,सहोदर, भगिनी, पुत्र,बंधु वाँधवों का दर्जा कुछ सोचसमझकर ही दिया गया है। ये हमें देते ही देते हैं। ये हैं तभी हम हैं। नीतिग्रंथों में लिखा है कि प्रकृति से हम उतना ही लें जितना कि एक भ्रमर फूल और फल से लेता है। हमें गाय की तरह दुहने की इजाजत है गाय को ही काटकर खाने की नहीं। विकास की निर्दयी होड़ ने प्रकृति को कत्लगाह में बदल दिया है। संभल सकें तो सँभलिए नहीं तो याद रखिए ईश्वर की लाठी बेआवाज़ होती है..और हर किए की सजा मिलती है,इसी लोक और इसी काया में।