सबसे कम उम्र के बालक क्रांतिकारी अमर शहीद- हेमू कालाणी | The Voice TV

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सबसे कम उम्र के बालक क्रांतिकारी अमर शहीद- हेमू कालाणी

Date : 21-Jan-2023

स्वतंत्रता संग्राम में भारत माता के अनगिनत सपूतो ने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराया | आजादी की लड़ाई में भारत के सभी प्रदेशो का योगदान रहा | अंग्रेजो को भारत से भगा कर देश को जिन वन्दनीय वीरो ने आजाद कराया उनमे सबसे कम उम्र के बालक क्रांतिकारी अमर शहीद हेमू कालाणी को भारत देश कभी नही भुला पायेगा |

हेमू कालाणी सिन्ध के सख्खर में २३ मार्च सन् १९२३ को जन्मे थे। उनके पिताजी का नाम पेसूमल कालाणी एवं उनकी माँ का नाम जेठी बाई था।

हेमू बचपन से साहसी तथा विद्यार्थी जीवन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे | हेमू कालाणी जब मात्र 7 वर्ष के थे तब वह तिरंगा लेकर अंग्रेजो की बस्ती में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते थे |

1942 में 19 वर्षीय किशोर क्रांतिकारी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो नारे के साथ अपनी टोली के साथ सिंध प्रदेश में तहलका मचा दिया था और उसके उत्साह को देखकर प्रत्येक सिंधवासी में जोश आ गया था | हेमू समस्त विदेशी वस्तुओ का बहिष्कार करने के लिए लोगो से अनुरोध किया करते थे | शीघ्र ही सक्रिय क्रान्तिकारी गतिविधियों में शामिल होकर उन्होंने हुकुमत को उखाड़ फेंकने के संकल्प के साथ राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रियाकलापों में भाग लेना शूरू कर दिया |अत्याचारी फिरंगी सरकार के खिलाफ छापामार गतिविधियों एवं उनके वाहनों को जलाने में हेमू सदा अपने साथियों का नेतृत्व करते थे |

हेमू ने अंग्रेजो की एक ट्रेन ,जिसमे क्रांतिकारियों का दमन करने के लिए हथियार एवं अंग्रेजी अफसरों का खूखार दस्ता था | उसे सक्खर पुल में पटरी की फिश प्लेट खोलकर गिराने का कार्य किया था जिसे अंग्रेजो ने देख लिया था | 1942 में क्रांतिकारी हौसले से भयभीत अंग्रजी हुकुमत ने हेमू की उम्र कैद को फाँसी की सजा में तब्दील कर दिया | पुरे भारत में सिंध प्रदेश में सभी लोग एवं क्रांतिकारी संघठन हैरान रह गये और अंग्रेज सरकार के खिलाफ विरोध प्रकट किया | हेमू को जेल में अपने साथियों का नाम बताने के लिए काफी प्रलोभन और यातनाये दी गयी लेकिन उसने मुह नही खोला और फासी पर झुलना ही बेहतर समझा |

भारत छोडो आन्दोलन

8 अगस्त 1942 को गांधी जी ने अंग्रेजों के विरुध्द भारत छोडो आन्दोलन तथा करो या मरो का नारा दिया। इससे पूरे देश का वातावरण एकदम गर्म हो गया। गांधी जी का कहना था कि या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या इसके लिए जान दे देंगे। अंग्रेजों को भारत  छोड कर जाना ही होगा। जनता तथा ब्रिटिश सरकार के बीच लडाई तेज हो गई। अधिकांश कांग्रेसी नेता पकड पकड कर जेल में डाल दिए गए। इससे छात्रों,किसानों,मजदूरों,आदमी,औरतों व अनेक कर्मचारियों ने आन्दोलन की कमान स्वयं सम्हाल ली। पुलिस स्टेशन,पोस्ट आफिस,रेलवे स्टेशन आदि पर आक्रमण प्रारंभ हो गए। जगह जगह आगजनी की घटनाएं होने लगी। गोली और गिरफ्तारी के दम पर आंदोलन को काबू में लाने की कोशिश होने लगी। हेमू कालानी सर्वगुण संपन्न व होनहार बालक था,जो जीवन के प्रारंभ से ही पढाई लिखाई के अलावा अच्छा तैराक,तीव्र साईकिल चालक तथा अच्छा धावक भी था। वह तैराकी में कई बार पुरस्कृत हुआ था। सिंध प्रान्त में भी तीव्र आन्दोलन उठ खडा हुआ तो इस वीर युवा ने आंदोलन में बढ चढकर हिस्सा लिया।

गौरवपूर्ण बहादुरी का कृत्य

 अक्टूबर 1942 में हेमू को पता चला कि अंग्रेज सेना की एक टुकडी तथा हथियारों से भरी ट्रेन उसके नगर से गुजरेगी तो उसने अपने साथियों के साथ इस ट्रेन को गिराने की सोची। उसने रेल की पटरियों की फिशप्लेट निकालकर पटरी उखाडने तथा ट्रेन को डिरेल करने का प्लान तैयार किया। हेमू और उनके दोस्तों के पास पटरियों के नट बोल्ट खोलने के लिए कोई औजार नहीं थे अत: लोहे की छडों से पटरियों को हटाने लगे,जिससे बहुत आवाज होने लगी। जिससे हेमू और उनके दोस्तों को पकडने के लिए एक दस्ता तेजी से दौडा। हेमू ने सब दोस्तो को भगा दिया किन्तु खुद पकडा गया और जेल में डाल दिया गया।

स्वतन्त्रता संग्राम

जब वे किशोर वयस्‍क अवस्‍था के थे तब उन्होंने अपने साथियों के साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का आग्रह किया। सन् १९४२ में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो हेमू इसमें कूद पड़े। १९४२ में उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी. हेमू कालाणी अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई। वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे पर फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गए। हेमू कालाणी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई. उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की। वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि हेमू कालाणी अपने साथियों का नाम और पता बताये पर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी। २१ जनवरी १९४३ को उन्हें फांसी की सजा दी गई। जब फांसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की। इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय की घोषणा के साथ उन्होंने फांसी को स्वीकार किया

 
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