जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि – एक शिक्षाप्रद कहानी | The Voice TV

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तुम खुद अपने भाग्य के निर्माता हो - स्वामी विवेकानंद

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जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि – एक शिक्षाप्रद कहानी

Date : 05-Apr-2025

प्राचीनकाल में सिंहलद्वीप के अनुराधपुर नगर के बाहर एक टीला था। उसे चैत्य पर्वत कहा जाता था। उस पर महातिष्य नाम के एक बौद्ध भिक्षु रहा करते थे। एक दिन वे भिक्षा मांगने नगर की ओर जा रहे थे। मार्ग में एक युवती स्त्री मिली। वह अपने पति से झगड़ा करके अपने पिता के घर भागी जा रही थी। उस स्त्री का आचरण संदिग्ध था। भिक्षु को देखकर उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने के लिए वह हँसने लगी।

भिक्षु महातिष्य बराबर चिंतन करते हुए सोवित रहते थे कि मनुष्य शरीर अस्थि मज्जा का पिंजरा है। उस स्त्री के हँसने पर उनकी दृष्टि उसके दाँतों पर गयी। स्त्री के सौंदर्य की ओर तो उनकी चित्तवृति गयी नहीं, केवल यह भाव उनके मन में आया कि यह एक हड्डियों का पिंजरा जा रहा है।

स्त्री आगे चली गयी। थोड़ी दूर जाने पर नगर की ओर से एक पुरुष आता दिखाई दिया। वह उस स्त्री का पति था। वह अपनी पत्नी को ढूंढ़ने के लिए निकला था। उसने भिक्षु से पूछा- "महाराज! आपने इस मार्ग से किसी सुंदर तथा गहनों लदी हुई स्त्री को जाते हुए देखा है क्या?"

भिक्षु बोले "इधर से कोई पुरुष गया या स्त्री, इस बात तो मेरा ध्यान गया नहीं, किन्तु इतना मुझे पता है कि इस म से एक अस्थिपंजर अभी-अभी गया है।"

पुरुष हतप्रभ हो अपनी स्त्री की खोज में आगे बढ़ गया।

 
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