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भगवान राम का आदर्श प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सिद्ध हो

Date : 06-Apr-2025

भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, किंतु यदि उनके जीवन और आचरण का गहन अध्ययन किया जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने स्वयं अपने जीवन से अनेक नई मर्यादाओं की स्थापना की। उनके आचरण से प्रेरणा लेकर कोई भी साधारण मनुष्य अपने जीवन में उच्च आदर्श स्थापित कर सकता है।

बाल्यकाल से ही श्रीराम ने जीवन में मर्यादा, अनुशासन और विनम्रता का पालन किया। जब वे अपने भाइयों भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के साथ गुरु वशिष्ठ के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने गए, तो वे अपने ईश्वरत्व को त्यागकर पूर्ण रूप से गुरु और गुरु माता पर आश्रित रहे। यही भाव बाद में गुरु विश्वामित्र के प्रति भी रहा, जब वे उनके साथ राक्षसों का नाश करने हेतु वन में गए।

राम सदैव अपने भाइयों के प्रति स्नेहिल और रक्षक रहे। वे ताड़का का वध कर न केवल राक्षसी प्रवृत्ति को नष्ट करते हैं, बल्कि उसकी आत्मा को भी मुक्ति प्रदान करते हैं। वे जानते हैं कि ताड़का जन्मजात राक्षसी नहीं थी, बल्कि परिस्थिति के कारण उस पर यह रूप चढ़ा। अहिल्या उद्धार प्रसंग में भी वे यही भाव दर्शाते हैं कि अज्ञानवश या परिस्थिति वश हुए पाप के लिए व्यक्ति को क्षमा मिलनी चाहिए।

सीता स्वयंवर के अवसर पर वे संयम और मर्यादा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। लक्ष्मण के क्रोधित होने पर भी वे उन्हें नहीं रोकते, क्योंकि वहां गुरु विश्वामित्र उपस्थित थे। परशुराम के आत्मसम्मान को वे आहत नहीं करते, क्योंकि वे जानते हैं कि सनातन धर्म को उनके तेज की आवश्यकता है।

कैकई के वरदान से उत्पन्न वनवास की स्थिति में भी राम पिता की आज्ञा को सर्वोपरि मानते हैं। गुह, केवट, शबरी जैसे वनवासियों के प्रति उनका स्नेह, सम्मान और आत्मीयता समाज को जातिवाद से ऊपर उठकर कर्म आधारित सम्मान की प्रेरणा देती है।

भरत से चित्रकूट में संवाद के दौरान वे निर्णय को ऋषियों, जनक जी और माता-पिता पर छोड़ते हैं, जिससे सभी का सम्मान बना रहता है और भरत की भावनाओं की भी रक्षा होती है।

राम मारीच को मोक्ष प्रदान करते हैं क्योंकि वह विवश होकर रावण का साथ देता है। शबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान देकर वे यह स्थापित करते हैं कि सच्ची श्रद्धा जाति, वर्ण या सामाजिक स्थिति से ऊपर होती है।

रावण जैसे महाशक्तिशाली राक्षस से युद्ध में भी वे नीति और मर्यादा का पालन करते हैं। वानरों को साथ लेकर युद्ध करना, बाली का वध कर सुग्रीव को राजा बनाना, विभीषण को शरण देना, और अंगद को दूत बनाकर शांति प्रयास करना – ये सभी उदाहरण बताते हैं कि श्रीराम केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि नीति, करुणा और सामाजिक समरसता के प्रतीक हैं।

रावण, बाली, मेघनाद जैसे असुरों का वध करते हुए भी वे उनकी पत्नियों को सम्मान देते हैं। यह संदेश देते हैं कि नारी का सम्मान हर परिस्थिति में आवश्यक है, यदि वह पाप में सहभागी न हो। लेकिन जब स्त्री स्वयं अनुचित आचरण करे, जैसे शूर्पणखा, तो उसे दंड देने में भी वे संकोच नहीं करते।

श्रीराम की कथा अनंत है – "हरि अनंत हरि कथा अनंता।" उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हम अपने जीवन में मर्यादा, कर्तव्य और करुणा जैसे गुणों को आत्मसात कर सकते हैं। वास्तव में, राम केवल एक राजा नहीं, वे संस्कृति, सदाचार और सामाजिक समरसता के आदर्श प्रतीक हैं। उनके आदर्श आज भी प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्रासंगिक हैं और उन्हें आत्मसात कर हम एक सशक्त और समरस समाज की स्थापना कर सकते हैं।

 

लेखक - डॉ. राघवेंद्र शर्मा

 
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