परमवीर चक्र से सम्मानित, हिमाचल प्रदेश के शिमला में 10 अप्रैल 1928 को जन्में मेजर धन सिंह थापा सेना की 8 गोरखा राइफल्स की बटालियन के साथ तैनात थे. 28 अगस्त 1949 को उन्हें कमीशन हासिल हुआ था. नवंबर 1961 में चीन की बढ़ती आक्रामकता के जवाब में भारत ने एक अहम फैसला लिया था. चीन की तरफ से हो रहे निर्माण कार्य और घुसपैठ को भारत की सीमा में अंजाम दिया जा रहा था |
इसे देखते हुए प्रधानमंत्री ऑफिस पर एक मीटिंग हुई. मीटिंग के बाद भारत ने फॉरवर्ड पॉलिसी को लागू कर दिया. दिसंबर 1961 में सेना मुख्यालय की तरफ से इस पॉलिसी को लेकर निर्देश जारी हुए. कहते हैं कि लद्दाख के लिए इस पॉलिसी की अहमियत कहीं ज्यादा हो गई थी. पॉलिसी के बाद यहां पर सेना की तरफ से बड़े स्तर पर तैनाती को अंजाम दिया गया.
अहम पोस्ट को कर रहे थे कमांड
सेना को जो निर्देश मिले थे उसके तहत उसे तिब्बत से लद्दाख की तरफ आते हर रास्ते को सुरक्षित करना था. इसी तरह से पैंगोंग के उत्तरी किनारे पर खुरनाक फोर्ट से लेकर दक्षिण में चुशुल तक सेना की यही नीति लागू रही.
सेना की तरफ से विवादित हिस्सों में चीन की बढ़ती दखलंदाजी के जवाब में कई छोटी-छोटी पोस्ट्स बनाई गईं. भारत ने 1962 में जंग से पहले सिरिजैप, सिरिजैप 1 और सिरिजैप 2 के तौर पर तीन अहम पोस्ट्स तैयार कर ली थीं.
अक्टूबर के दूसरे हफ्ते में जंग शुरू होने के कुछ ही दिन पहले 8 गोरखा राइफल्स को सिरिजैप कॉम्प्लेक्स की तीन पोस्ट्स पर तैनात कर दिया गया. तीनों पोस्ट्स का पैंगोंग पर मौजूद भारतीय सेना के बेस के साथ कोई जमीनी संपर्क नहीं था.
इन पोस्ट्स पर सप्लाई झील के रास्ते ही होती थी. सितंबर 1962 में चीन की सेना ने इस सिरिजैप कॉम्प्लेक्स को घेर लिया था. चीन की एक पोजिशन को इस कॉम्प्लैक्स पर कोंग-9 और 10 नाम दिया गया था.
20 अक्टूबर को चीन ने बोला हमला
चीन की आक्रामकता लगातार बढ़ रही थी और भारत सरकार उस समय यह स्वीकार नहीं कर रही थी चीनी सेना कुछ गलत कर सकती है. 19 अक्टूबर 1962 को चीनी सेना की गतिविधियां काफी बढ़ गई थीं. मेजर थापा इसे देखने के बाद अलर्ट हो गए थे. उन्होंने जवानों ने गहरा गड्ढा खोदने के लिए कह दिया था. 20 अक्टूबर को चीनी सेना ने हमला बोल दिया.
करीब ढाई घंटे तक सिरिजैप पर मोर्टार और आर्टिलरी फायरिंग होती रही. कुछ शेल्स कमांड पोस्ट पर भी गिरीं और इसकी वजह से रेडियो सेट को काफी नुकसान पहुंचा. यह कम्युनिकेशन का अकेला जरिया था. अब पोस्ट का संपर्क पूरी बटालियन से कट चुका था.
मेजर थापा के शब्द, ‘मार कर ही मरेंगे’
मेजर थापा के पास सिर्फ 30 जवान थे और हथियारों के नाम पर उनके पास .303 राइफल्स और लाइट मशीन गन्स थीं. ये हथियार चीन के भारी हथियारों के सामने कुछ नहीं थे. मेजर थापा लड़ते रहे और बाकी जवानों को प्रेरित करते रहे. उनके शब्द थे, ‘हमें मरना है और हम सब साथ में मरेंगे लेकिन मरने से पहले कुछ को मार कर ही मरना है.’
गोरखा राइफल्स के बहादुर सैनिक लड़ते रहे और सिरिजैप 1 चीन के हाथों में जाने से बच गया था. मेजर थापा के कुछ साथी जवानों वीरगति को प्राप्त हो गए थे. वह अंत तक अपनी खुखरी से चीनी सेना का मुकाबला करते रहे.
चीन की सेना ने उनके चेहरे पर राइफल की बट से हमला किया था और इसकी वजह से उनके दो दांत टूट गए थे. मेजर थापा ने चीनी सैनिक को ढेर कर दिया था. लेकिन चीन की सेना ने उन्हें घेर लिया और युद्धबंदी बनाकर अपने साथ ले गई.
चीन के अन्याय के आगे नहीं पड़े कमजोर
चीन ने युद्ध बंदी के तौर पर उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया. उन्हें चीनी सैनिकों की हत्या के लिए दोषी माना और उन्हें सजा दी. उन्होंने चीन की कैद में होने के बाद भी सेना और भारत सरकार के खिलाफ बयान नहीं दिया और इस बात से भी चीन खासा नाराज था. इसकी वजह से भी उन्हें सजा दी गई. मगर जब युद्ध खत्म हुआ तो चीन ने उन्हें रिहा करने का फैसला किया.
सरकार और सेना ये भी मान चुकी थी कि मेजर थापा शहीद हो गए हैं. उनके घर पर उनकी शहादत की खबर भी भिजवा दी गई और उनका अंतिम संस्कार तक कर दिया गया. सरकार ने उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र देने का ऐलान तक कर डाला था|
मगर जब चीन ने भारत के युद्धबंदियों की लिस्ट जारी की तो उसमें मेजर थापा का भी नाम था. इस खबर से उनके परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई | 10 मई 1963 को जब देश लौटे तो आर्मी हेडक्वार्टर पर उनका स्वागत किया गया | 12 मई को वह देहरादून अपने घर पहुंचे |
उनका अंतिम संस्कार किया जा चुका था और उनकी पत्नी विधवा की तरह रही थी | ऐसे में जब वह वापस आए तो फिर से धार्मिक परंपराओं के तहत पंडित ने उनका मुंडन कराया और फिर से उनका नामकरण किया गया | पत्नी के साथ उन्होंने फिर से शादी की थी| वह लेफ्टिनेंट कर्नल होकर रिटायर हुए थे |