फील्ड मार्शल कोडन्देरा मादप्प कारियप्प, ऑर्डर ऑफ़ ब्रिटिश एम्पायर, मेन्शंड इन डिस्पैचैस, लीजियन ऑफ मेरिट (28 जनवरी 1899 15 मई, 1993) भारत के पहले सेनाध्यक्ष थे। उन्होने सन् 1947 के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर भारतीय सेना का नेतृत्व किया। वे भारत के दो फील्ड मार्शलों में से एक । इसके बाद से ही 15 जनवरी ‘सेना दिवस" के रूप में मनाया जाता है। सन 1953 में फील्ड मार्शल करिअप्पा भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हो |
कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा का जन्म
कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा का जन्म 28 जनवरी, 1899 में कर्नाटक के कोडागु (कुर्ग) में शनिवर्सांथि नामक स्थान पर हुआ था। इनका पूरा नाम कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा था। करिअप्पा को घर में सभी लोग प्यार से ‘चिम्मा" कहकर पुकारते थे। इनके पिता का नाम मदप्पा था जो कोडंडेरा माडिकेरी में एक राजस्व अधिकारी थे। ये अपने माता पिता के दूसरे संतान थे इनके माता पिता के चार बेटे और दो बेटिया थी।
कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा की शिक्षा
करिअप्पा की प्रारम्भिक शिक्षा माडिकेरी के सेंट्रल हाई स्कूल में हुई। वह पढ़ाई में बहुत अच्छे थे, किन्तु गणित, चित्रकला उनके प्रिय विषय थे। फुरसत के क्षणों में वह प्रायः कैरीकेचरी बनाया करते थे। सन् 1917 में स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात् इसी वर्ष उन्होंने मद्रास के प्रेसीडेंसी कालेज में प्रवेश ले लिय़ा। कालेज जीवन में प्राध्यापक डब्लू.एच. विट्वर्थ व अध्यापक एस.आई. स्ट्रीले का करिअप्पा पर गहरा प्रभाव पड़ा। इनके मार्गदर्शन में करिअप्पा का किताबों के प्रति लगाव बढ़ता गया। एक होनहार छात्र के साथ-साथ वह क्रिकेट, हॉकी, टेनिस के अच्छे खिलाड़ी भी रहे।
कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा का करियर
करियप्पा को ‘कीपर’ के नाम से पुकारा जाता था। वह फील्ड मार्शल के पद पर पहुंचने वाले इकलौते भारतीय है। के. एम. करिअप्पा भारतीय सेना के पहले अधिकारी हैं जिन्हें फील्ड मार्शल की पदवी दी गई। फील्ड मार्शल सैम मानेकशा दूसरे ऐसे अधिकारी थे, जिन्हें फील्ड मार्शल का रैंक दिया गया था। के. एम. करिअप्पा को 15 जनवरी 1949 में सेना प्रमुख नियुक्त किया गया। साल 1953 में के. एम. करिअप्पा को ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड में भारत के उच्चायुक्त के रूप में नियुक्त किया गया। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन द्वारा उन्हें ‘Order of the Chief Commander of the Legion of Merit’ उपाधि से सम्मानित किया। भारत सरकार ने साल 1986 में उनकी सेवाओं के लिए उन्हें ‘Field Marshal’ का पद प्रदान किया।के एम करिअप्पा ने सेना में अपने कैरियर की शुरुआत भारतीय-ब्रिटिश फौज के राजपूत रेजीमेंट में सेंकेंड लेफ्टीनेंट के पद पर नियुक्ति के साथ की। वर्ष 1953 में भारतीय सेना से सेवानिवृत्ति के पश्चात आपको ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भारत का राजदूत बनाया गया। आपने अपने अनुभव के चलते कई देशों की सेनाओं के पुनर्गठन में भी मदद की। श्री करिअप्पा की मां भारती के प्रति अगाध श्रद्धा थी एवं आप भारतीय संस्कृति का किस प्रकार पालन करते रहे, इस सम्बंध में उनकी जिंदगी से जुड़ा एक प्रसंग सदैव याद किया जाता है। बात वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध की है। श्री करिअप्पा सेवा निवृत्त होने के पश्चात कर्नाटक के अपने गृहनगर में रह रहे थे। उनका बेटा श्री के सी नंदा करिअप्पा उस वक्त भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट के पद पर कार्यरत था। भारत पाक युद्ध के दौरान उनका विमान पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गया, जिसे पाक सैनिकों ने गिरा दिया। श्री नंदा ने विमान से कूदकर अपनी जान तो बचा ली, परंतु आप पाक सैनिकों की गिरफ्त में आ गए।
उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति श्री अयूब खान थे, जो कभी श्री के एम करिअप्पा के अधीन भारतीय सेना में कार्यरत रह चुके थे। उन्हें जैसे ही श्री नंदा के पकड़े जाने का पता चला उन्होंने तत्काल श्री के एम करिअप्पा को फोन कर बताया कि वह उनके बेटे को रिहा कर रहे हैं। श्री करिअप्पा ने अपने बेटे का मोह त्याग कर श्री आयुब खान को कहा कि वह केवल मेरा बेटा नहीं, भारत मां का महान सपूत है। उसे रिहा करना तो दूर कोई विशेष सुविधा भी मत देना। उसके साथ आम युद्धबंदियों जैसा बर्ताव करें। श्री करिअप्पा ने श्री आयुब खान से आग्रह किया कि वे समस्त भारतीय युद्धबंदियों को रिहा करें न कि केवल मेरे बेटे को।
फील्ड मार्शल करिअप्पा में देश के प्रति समर्पण का भाव कूट कूट कर भरा था इसलिए आप मां भारती के महान सपूत के रूप आज भी याद किए जाते हैं। वर्ष 1959 में श्री करिअप्पा मंगलोर में संघ की शाखा के एक कार्यक्रम में भाग ले रहे थे। आपने स्वयं सेवकों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि संघ द्वारा समर्पित भाव से किए जा रहे कार्य मुझे अपने ह्रदय से प्रिय कार्यों में से ही कुछ कार्य लगते हैं। यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति इस्लाम की प्रशंसा कर सकता है, तो संघ के हिंदुत्व का अभिमान रखने में गलत क्या है। आपने अपने सम्बोधन में स्वयं सेवकों को प्रोत्साहित करते हुए कहा था प्रिय युवा मित्रो, आप किसी भी गलत प्रचार से हतोत्साहित न होते हुए संघ का कार्य करते रहें। डॉ. हेडगेवार ने आपके सामने एक स्वार्थरहित कार्य का पवित्र आदर्श रखा है। उसी पर आगे बढ़ते चलें। भारत को आज आप जैसे ही सेवाभावी कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है। संदर्भ श्री के आर मलकानी द्वारा लिखित “हाउ अदर्स लुक ऐट द आरएसएस”, दीनदयाल रीसर्च इंस्टिट्यूट, नई दिल्ली।
संघ और जनरल करिअप्पा दोनों एक दुसरे के शुभचिंतक और प्रशंसक ही रहे हैं। संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी के जनरल करिअप्पा के साथ स्नेहपूर्ण सम्बन्ध थे। 21 नवम्बर 1956 को वे आपस में एक दूसरे से मैसूर में मिले थे और उस समय भाषा के प्रश्न पर श्री गुरूजी के विचार सुनकर श्री करिअप्पा बहुत प्रभावित हुए थे। 13 वर्ष बाद, 1969 में श्री गुरुजी के निमंत्रण पर श्री करिअप्पा उडुपी के विश्व हिन्दू परिषद के सम्मेलन में भी उपस्थित रहे थे। यह वही सम्मेलन है, जहां सभी संतों और मान्यवरों ने अस्पृश्यता को सिरे से नकारा था।
फील्ड मार्शल करिअप्पा के साथ ही भारत के प्रथम फील्ड मार्शल श्री सैम मानेकशॉ के भी उनके मृत्यु पर्यन्त तक संघ से सघन सम्बंध रहे हैं। संघ स्वयंसेवकों को उन्होंने सदैव ही सम्मान की दृष्टि से देखा और संघ के स्वयंसेवकों द्वारा समाज में किए जा रहे सेवा कार्य की सदैव सराहना की है। संघ के कार्य को तो आप दोनों ने ही देश में अनुशासन का पर्याय बताया है।
कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा का निधन
कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा गठिया और दिल की समस्याओं से पीड़ित थे। 1991 में करियप्पा का स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण इन्हें कमांड अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन कुछ समय बाद 15 मई 1993 (उम्र 95 वर्ष) को बैंगलोर ,कर्नाटक , भारतको बेंगलुरू कमांड अस्पताल में उनकी नींद में मृत्यु हो गई।
कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा के पुरस्कार और सम्मान
अपनी अभूतपूर्व योग्यता और नेतृत्व के गुणों के कारण करिअप्पा बराबर प्रगति करते गए और अनेक उपलब्धियों को प्राप्त किया। सेना में कमीशन पाने वाले प्रथम भारतीयों में वे भी शामिल थे। अनेक मोर्चों पर उन्होंने भारतीय सेना का पूरी तरह से सफल नेतृत्व किया था। स्वतंत्रता से पहले ही ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सेना में "डिप्टी चीफ़ ऑफ़ जनरल स्टाफ़" के पद पर नियुक्त कर दिया था। किसी भी भारतीय व्यक्ति के लिए यह एक बहुत बड़ा सम्मान था। भारत के स्वतंत्र होने पर 1949 में करिअप्पा को "कमाण्डर इन चीफ़" बनाया गया था। इस पद पर वे 1953 तक रहे थे।