Quote :

किसी भी व्यक्ति की वास्तविक स्थिति का ज्ञान उसके आचरण से होता हैं।

Editor's Choice

आत्मकथा से मिलेंगे जीवन के अनजाने सबक

Date : 30-Jan-2023

पिछले दिनों हिन्द पॉकेट बुक्स, पेंगुइन रेंडम हाउस ने कई उत्कृष्ट पुस्तकों का प्रकाशन किया है। पेंगुइन भारत में 1985 में स्थापित हुआ था और 1987 में केवल छह पुस्तकों के साथ छपाई शुरू हुई थी। देश के बड़े हिंदी प्रकाशक हिन्द पॉकेट बुक्स और भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे सफल अंग्रेजी व्यापार प्रकाशकों में से एक पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया का 2013 में एक साथ आए और पब्लिशिंग हाउस के उद्योग में सबसे अधिक मान्यता प्राप्त नामों में से एक बन गए।

जीवन के अनजाने सबक : एक आत्मकथा

लेखक: अनुपम खेर

अनुपम खेर आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। बॉलीवुड में उन्होंने जो मुकाम हासिल किया, वह यूं नहीं मिला। उन्होंने न जाने जीवन में कितने पापड़ बेले हैं, तब जाकर इतनी उच्च उपलब्धि हासिल की है। जीवन के अनजाने सबक में उन्होंने इन्हीं सब बातों का खुलासा किया है। एक लाजवाब, रोचक और बेबाक जीवनी में उनकी कई अनसुनी कहानियां, उदाहरण और सबक छुपे हुए हैं। अनुपम खेर अपनी ऐसी आत्मकथा के हीरो हैं, जिसमें नाटक, कॉमेडी और रोमांस सब कुछ है। आखिर किसे पता था कि शिमला जैसे छोटे शहर का एक लड़का एक दिन अभिनय की दुनिया में देश और दुनिया में इतना बड़ा नाम हासिल करेगा, जिसे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिलेंगे। पांच सौ से अधिक फिल्मों की वो यात्रा अब भी जारी है।

अनुपम सिर्फ अपने खास लुक के लिए ही नहीं, बल्कि वे अपने बेबाक विचारों के लिए भी मशहूर हैं। इस पुस्तक में जीवन के अविश्वसनीय सबक छुपे हैं, जिसमें कोई भी भावी कलाकार अपने जीवन के अक्स देख सकता है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली के एक गोल्ड मेडलिस्ट और अभिनेता-निर्माता-लेखक और प्रेरक वक्ता अनुपम खेर एक ऐसे बहुमुखी प्रतिभाशाली कलाकार हैं, जिन्होंने 530 से ज्यादा फिल्मों, 100 नाटकों और कई टीवी कार्यक्रमों में काम किया है। वे दो राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड्स के विजेता हैं। उन्हें आठ फिल्मफेयर अवॉर्ड्स मिले हैं और वे बीएएफटीए के लिए नामांकित हुए। इसके अलावा सिनेमा में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान से भी पुरस्कृत किया।

हार नहीं मानूंगी

लेखक: मैथिलीशरण गुप्त

मैथिलीशरण गुप्त का यह अंतिम एक उत्कृष्ट काव्य संग्रह है। अनामिका इस काव्य के बारे में लिखती हैं कि ‘गुप्तजी का सबसे बड़ा योगदान यह है कि. . .उन्होंने स्त्री के महामंगल, तेजस्विनी रूप का अंतरंगता से स्वतंत्र चित्रण किया - मनोवैज्ञानिक सूक्ष्मता के साथ।’इस काव्य संकलन में एक तरफ उर्मिला की व्यथा का गहराई से चित्रण है तो दूसरी ओर यशोधरा ये कहती हैं- सखि, वे मुझसे कहकर जाते! कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते? यशोधरा पूछती है कि क्या वे मुझे अपने जीवन पथ पर अवरोध मान रहे हैं?

इस संकलन में द्रौपदी का विद्रोह भी है जिसके सवाल युगों-युगों से मानव सभ्यता के सामने एक पहाड़ की तरह खड़े हैं। मैथिलीशरण गुप्त का यह काव्य संग्रह ऐसे ही कई प्रश्नों के साथ आगे बढ़ता है जिसमें यशोदा और देवकी का त्याग है, राधा और कुब्जा का प्रेम व समर्पण भाव है तो चैतन्य महाप्रभु की पत्नी विष्णुप्रिया और तुलसीदास की पत्नी रत्नावली का त्याग और संघर्ष भी है। इस संग्रह में स्वतंत्रता आन्दोलन, राष्ट्रीय स्वाभिमान, सांस्कृतिक जागरण और स्त्री अभिव्यक्तिकरण के प्रश्न अपने संपूर्ण ओज के साथ उपस्थित होते हैं। हार नहीं मानूंगी हमारे प्रथम राष्ट्रकवि के एक स्त्री केंद्रित काव्य संग्रह का संपादित रूप है जिसमें अपने युग की चेतना स्वाभाविक रूप से प्रवाहित है।

उनके काव्य की स्त्रियां सिर्फ अबला नहीं हैं-वे साहस, त्याग, प्रेम, विरह और समर्पण के साथ ही स्वाभिमान और विद्रोह की भी प्रतीक हैं।नारी जाति की पुनर्प्रतिष्ठा करने वाला यह काव्य संग्रह नारी जीवन और पीड़ा की अनुभूतियों का विशद वर्णन करता है। इस काव्य संग्रह में राष्ट्रीयता, समाज सुधार, युग बोध के साथ-साथ भारतीय संस्कृति एवं नारी का चित्रण हुआ है। गुप्तजी ने नारी को गौरवपूर्ण स्थान दिया है। उन्होंने अपने इस काव्य संग्रह में सीता, यशोधरा, उर्मिला, कौशल्या, द्रौपदी आदि के माध्यम से नारी के उज्ज्वल और संघर्षशील वैवाहिक रूप को निरूपित किया है। उनकी दृष्टि में नारी पुरुषों के समान ही समस्त कार्य कर सकती है, कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती है।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी में खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी।

टूटे दिल वाला

लेखक: दुर्जोय दत्ता

इन शब्दों पर जरा गौर फरमाइए-'अब मेरी ओर देखकर मुस्कुराओ। हां, मेरी वाली स्माइल! वह सनशाइन, वह रोशनी, मेरा प्यार। मेरे जाने का वक्त हो गया। बाय रघु! लव यू! मैं तुम्हें हमेशा प्यार करती रहूंगी।' छू गए होंगे दिल को ये शब्द...टूटे दिल वाला उपन्यास में ऐसे ही दिल को छूने वाले संवाद देखने को मिलते हैं। इस उपन्यास की कहानी उस कहर ढाने वाली घटना के दो साल बाद कहीं शुरू होती है, जब रघु एक रात ब्राह्मी को नहीं बचा सका था। उस रात सब कुछ खोकर रघु दुनिया से दूर कहीं छिप जाना चाहता था। लेकिन रघु के जीवन में अद्वैता के आने के साथ ही जैसे कोई धुंधली राह रौशन हो जाती है। परंतु अद्वैता रघु की ओर जितना खिंचती जाती है, रघु उससे उतना ही दूर भाग जाना चाहता है!

अद्वैता यह पता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ती कि रघु उससे दूरी क्यों बना रहा है? वह क्या छुपा रहा है और उसे इस कदर तोड़कर किसने छोड़ दिया? क्या अद्वैता को इस उलझन का कोई सिरा मिला? क्या उसका प्यार रघु के दिल के दर्द की दवा बन सका? क्या टूटे दिलवाले को कोई जोड़ सका? जवाब है आपके हाथ में थमी इस किताब में! दुर्जोय दत्ता प्रसिद्ध भारतीय उपन्यासकार है। वे टीवी और फिल्मों के लिए भी लिखते हैं। परंतु उन्हें उपन्यास लेखन में ज्यादा प्रसिद्धि मिली है, क्योंकि वे ऐसा लिखते हैं कि आज की पीढ़ी को उनकी कहानी अपने आसपास घटी घटना ही महसूस होती है।

आलू और बैगन सुंदरी

लेखक: सुमित्रानंदन और सुमित्रा पंत

सुमित्रानंदन को भला कौन नहीं जानता, लेकिन फिर भी बहुत कम लोग यह जानते हैं कि वे कविताओं के अलावा बच्चों के मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुए बाल कहानियां भी लिखते थे। आलू और बैगन सुंदरी उनकी बाल कहानियों का ही संग्रह है, इसी के साथ इसमें उनकी बेटी सुमिता पंत की भी कुछ कहानियां दी गई हैं। एक खरगोश था और नाम था उसका-“आलू”! सब उसे चिढ़ाते रहते थे कि कितना अजीब-सा नाम है तुम्हारा! बेचारा आलू, जब भी ऐसा सुनता तो रोने लग जाता।

एक मादा खरगोश भी थी, जो उसे बिल्कुल नहीं चिढ़ाती थी, और उसका नाम था-बैगन सुंदरी। क्या आपको पता है आगे क्या हुआ? दादी या नानी से ऐसी कहानियां तो सुनते ही होंगे ना! लेकिन उन्होंने अब तक यह कहानी नहीं सुनाई, है ना? सुनातीं भी कैसे, क्योंकि यह कहानी तो बस इसी किताब में है! सच में, दादी और नानी की मीठी कहानियों का संसार इतना सुंदर और लुभावना है कि हर बच्चा यही चाहता है कि कहानी बस चलती ही जाए, चलती जाए...तो पेश है आलू और बैगन सुंदरी- ऐसी कहानियों का संसार, जिसका कोई अंत नहीं है। पढ़ें जाने-माने लेखक सुमित्रानंदन पंत व उनकी पुत्री सुमिता पंत द्वारा लिखी गईं ये दिलचस्प कहानियां, जो आपको एक अनोखी दुनिया में ले जाएंगी।

आचार्य चतुरसेन शास्त्री : चुनिंदा संस्मरण

संपादक: ज्योत्सना गुप्ता

यह ऐसी पुस्तक है, जिसमें दिल को छूने वाले प्रेरक प्रसंगों के साथ-साथ इतिहास के अनछुए पन्ने देखने को मिलते हैं। इस पुस्तक में एक ओर जहां आचार्य चतुरसेन शास्त्री के रोचक संस्मरण और प्रेरक प्रसंग हैं, वहीं उनके ऐतिहासिक साक्षात्कार भी इस पुस्तक में दिए गए हैं। इतिहास एवं साहित्य के दृष्टि से यह एक बहुमूल्य पुस्तक है।आचार्य चतुरसेन शास्त्री : चुनिंदा संस्मरण में देश के महान इतिहास निर्माताओं जैसे मदन मोहन मालवीय, पंडित नेहरू, सरदार भगत सिंह जैसे अनेक विभूतियों के संस्मरण हैं, जो आपको इतिहास के एक अनछुए कालखंड की सैर करवाते हैं।

आचार्य चतुरसेन शास्त्री हिन्दी भाषा के एक महान उपन्यासकार थे। इनका अधिकतर लेखन ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है। इनकी प्रमुख कृतियां गोली, सोमनाथ, वयं रक्षामः और वैशाली की नगरवधू इत्यादि हैं। आभा इनकी पहली रचना थी। इस पुस्तक की संपादक ज्योत्सना गुप्ता आचार्य चतुरसेन की सुपुत्री हैं।

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement