सेवा और समर्पण के प्रतीक: विष्णु जी का जीवन
सेवा पथ के सच्चे साधक विष्णु जी का जन्म 5 मई, 1933 को कर्नाटक के अक्कीरामपुर नगर, बंगलौर के पास हुआ था। सात भाई-बहनों वाले परिवार में वे सबसे छोटे थे। घर में सेवा और अध्यात्म का वातावरण था, जिसके प्रभाव से दो भाई संघ के प्रचारक बने, तो दो ने रामकृष्ण मिशन में संन्यास ग्रहण किया।
विष्णु जी का मन बचपन से ही निर्धनों के प्रति अत्यंत संवेदनशील था। छात्रावास में पढ़ते हुए वे अपने पास आई धनराशि और वस्त्र जरूरतमंदों में बांट दिया करते थे। बाद में वे शुगर तकनीक के इंजीनियर बने और नौकरी के सिलसिले में कानपुर पहुंचे। यहीं उनका संपर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हुआ और फिर जीवन का रुख पूरी तरह बदल गया। उन्होंने प्रचारक का जीवन अपनाया और अलीगढ़, मेरठ, पीलीभीत, लखीमपुर, काशी व कानपुर जैसे कई स्थानों पर कार्य किया।
हिन्दी न जानने के कारण उन्हें प्रारंभ में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पश्चिम उत्तर प्रदेश में ‘घेवर’ को ‘गोबर’ कहना जैसे कई रोचक प्रसंग उनके जीवन से जुड़े हैं। आपातकाल के समय उन्होंने ‘मास्टर जी’ के नाम से गुप्त रूप से कार्य किया और बाद में स्वयंसेवकों पर चल रहे मुकदमों को समाप्त करवाने में भी सक्रिय भूमिका निभाई।
वर्ष 1978 में उन्हें दिल्ली में प्रौढ़ शाखाओं का कार्य सौंपा गया। इसी वर्ष सरसंघचालक बालासाहब देवरस जी ने स्वयंसेवकों से निर्धन बस्तियों में सेवा कार्य करने का आह्वान किया। विष्णु जी ने इसे चुनौती की तरह स्वीकार किया और ऐसी टीम तैयार की जो बस्तियों में जाकर शिक्षा दे सके। यही कार्य बाद में ‘सेवा भारती’ के रूप में विस्तारित हुआ। 14 अक्तूबर, 1979 को बालासाहब देवरस जी ने इसका औपचारिक उद्घाटन किया।
सेवा कार्यों को देशव्यापी स्वरूप देने का विचार विष्णु जी के मन में था। उन्होंने दिल्ली के मंडोली गांव में दान में मिली पांच एकड़ भूमि पर निर्धन छात्रों के लिए ‘सेवा धाम’ की स्थापना की। इसके लिए उन्होंने बड़े समर्पण के साथ धन जुटाया और यह सुनिश्चित किया कि किसी भी कारण से कार्य अधूरा न रहे। उनके इस प्रयास से आज सैकड़ों छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त कर देश-विदेश में प्रतिष्ठित स्थानों पर कार्यरत हैं।
उनके अथक प्रयासों से दिल्ली की सैकड़ों बस्तियों में संस्कार केंद्र, स्वास्थ्य सेवाएं, सिलाई प्रशिक्षण केंद्र जैसे प्रकल्प शुरू हुए। वे लोगों में ‘बाबा’, ‘काका’ और ‘भैया’ के नाम से आदर प्राप्त करते थे। एक बार कांग्रेस सरकार ने सेवा भारती को 50,000 रुपये का पुरस्कार दिया, जिसे कुछ नेताओं ने विरोध स्वरूप रोकना चाहा, लेकिन बस्तीवासियों ने इसका विरोध कर दिया।
विष्णु जी ने अनाथ बच्चों के लिए ‘मातृछाया’ और वनवासी कन्याओं के लिए छात्रावासों की स्थापना पर विशेष ध्यान दिया। वर्ष 1995 में उन्हें मध्य प्रदेश भेजा गया, जहां उन्होंने सेवा के सैकड़ों नए प्रकल्प प्रारंभ किए। लगातार काम करने के कारण 2005 में उन्हें गंभीर हृदयाघात हुआ, फिर भी उन्होंने काम नहीं छोड़ा। बाद में हैपेटाइटिस-बी जैसी गंभीर बीमारी ने उन्हें कमजोर कर दिया और 25 मई, 2009 को दिल्ली में उनका निधन हो गया।
उनकी स्मृति में मध्य प्रदेश शासन ने सेवा कार्यों के लिए तीन पुरस्कार (प्रत्येक एक लाख रुपये) तथा भोपाल नगर निगम ने एक पुरस्कार (51,000 रुपये) की घोषणा की है।