कुराजराज्येन कुतः प्रजासुखं कुमित्रमित्रेण कुतोऽभिनिवृत्तिः ।
कुदारदारैश्च कुतो गृहे रतिः कृशिष्यमध्यापयतः कुतो यशः ॥
यहां आचार्य चाणक्य दुष्टों के प्रभाव को प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा सुखी कैसे रह सकती है! दुष्ट मित्र से आनन्द कैसे मिल सकता है। दुष्ट पत्नी से घर में सुख कैसे हो सकता है! तथा दुष्ट-मूर्ख शिष्य को पढ़ाने से यश कैसे मिल सकता है !
भाव यह है कि दुष्ट-निकम्मे राजा के राज्य में प्रजा सदा दुःखी रहती है। दुष्ट मित्र सदा दुःखी ही करता है। दुष्ट पत्नी घर की सुख-शांति को समाप्त कर देती है तथा दुष्ट शिष्य को पढ़ाने से कोई यश नहीं मिलता। अतः दुष्ट राजा, दुष्ट मित्र, दुष्ट पत्नी तथा दुष्ट शिष्य के होने से इनका न होना ही बेहतर है। इसलिए सुखी रहने के लिए अच्छे राजा के राज्य में रहना चाहिए, संकट से बचाव के लिए अच्छे व्यक्ति को मित्र बनाना चाहिए, रतिभोग के सुख के लिए कुलीन कन्या से विवाह करना चाहिए तथा यश व कीर्तिलाभ के लिए योग्य पुरुष को शिष्य बनाना चाहिए।