देश आज भारतीय तटरक्षक के 47वें स्थापना दिवस के अवसर पर तटरक्षक के 46 वर्ष के गौरवमयी सफर का जश्न मना रहा है। रक्षा मंत्रालय के अधीन कार्य करने वाले भारतीय तटरक्षक बल की स्थापना रुस्तमजी समिति की अनुशंसा पर विशेष आर्थिक क्षेत्रों की देखभाल तथा रक्षा के लिए की गई थी। समुद्र में भारत के राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार के अंदर राष्ट्रीय विधियों को लागू करते हुए जीवन तथा सम्पति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 1 फरवरी 1977 को भारत तटरक्षक बल (इंडियन कोस्ट गार्ड) की स्थापना एक नई सेवा के तौर पर हुई थी।
भारतीय तटरक्षक भारत की सबसे छोटी सशस्त्र सेना है, जिसका नेतृत्व भारतीय तटरक्षक महानिदेशक की अध्यक्षता में होता है, जो भारतीय नौसेना के वाइस-एडमिरल रैंक के अधिकारी होते हैं। तटरक्षक बल में दो तटरक्षक कमांडर होते हैं, जो पश्चिमी समुद्र बोर्ड और पूर्वी समुद्र बोर्ड की कमान संभालते हैं। भारतीय तटरक्षक का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है, जिसे पांच क्षेत्रों में बांटा गया है। पश्चिमी क्षेत्र का क्षेत्रीय मुख्यालय मुम्बई, पूर्वी क्षेत्र का चेन्नई, उत्तर पूर्वी क्षेत्र का कोलकाता, अंडमान व निकोबार क्षेत्र का पोर्ट ब्लेयर तथा उत्तर पश्चिमी क्षेत्र का क्षेत्रीय मुख्यालय गांधीनगर में है। सोलह तटरक्षक जिला मुख्यालय हैं, जिनमें तटरक्षक जिला कमांडर स्तर के अधिकारी होते हैं। भारतीय तटरक्षक नौसेना, मत्स्य विभाग, राजस्व विभाग (सीमा शुल्क) तथा केन्द्र और राज्य पुलिस बलों के साथ घनिष्ठ सहयोग के साथ कार्य करता है।
1960 के दशक में तटों के पास मछली पकड़ने की गतिविधियों में अवैध आवाजाही की पहचान नहीं कर पाने, समुद्री रास्तों से तस्करी की बढ़ती घटनाओं और समुद्र में मछुआरों की नौकाओं या क्राफ्टों के पंजीकरण के लिए कोई प्रभावी पद्धति लागू नहीं होने के कारण भारत को बड़ा आर्थिक नुकसान हो रहा था। बॉम्बे में उस समय तेल की खोज के फलस्वरूप अपतटीय क्षेत्र में बहुमूल्य संयंत्र स्थापित किए गए थे और इसीलिए समुद्री क्षेत्र में भारत के महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों एवं आर्थिक हितों की सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन के उपायों की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। इसीलिए इसके लिए एक अलग सेवा के गठन की जरूरत महसूस की गई और 1970 में नाग समिति की स्थापना की गई। समिति ने अपनी सिफारिश में तस्करी की गतिविधियों से निजात पाने के लिए अलग से एक समुद्री बल की आवश्यकता पर जोर दिया।
समुद्र में तस्करी की समस्याओं से निपटने तथा तटरक्षक जैसे संगठन की स्थापना का अध्ययन करने के लिए सीमा सुरक्षा बल के भूतपूर्व महानिदेशक आईपीएस केएफ रूस्तमजी की अध्यक्षता में सितम्बर 1974 में रूस्तमजी समिति का गठन किया गया। समिति द्वारा एक ऐसी तटरक्षक सेवा के गठन की सिफारिश की गई, जो पूर्ण रूप से सुसज्जित तथा अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र के तटरक्षकों की तर्ज पर हो और भारतीय नौसेना की तर्ज पर रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में सामान्य तौर पर संचालित होते हुए शांतिकाल में भारत के समुद्रों की सुरक्षा करे। नौसेना को इसके युद्धकालीन कार्यों के लिए अलग रखते हुए गैर-सैन्य समुद्री सेवाएं प्रदान करने के लिए तटरक्षक बल के गठन की रूस्तमजी आयोग की सिफारिशों को 7 जनवरी 1976 को स्वीकार कर लिया गया और 25 अगस्त 1976 को भारत का समुद्री क्षेत्र अधिनियम पारित हुआ, जिसके अधीन भारत ने 2.01 लाख वर्ग किलोमीटर समुद्री क्षेत्र का दावा किया। इसमें भारत को समुद्र में जैविक व गैर-जैविक दोनों ही संसाधनों के अन्वेषण और दोहन के लिए अधिकार शामिल था। अंततः केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा भारत के जलीय एवं अनन्य आर्थिक क्षेत्र की निगरानी हेतु भारतीय नौसेना से स्थानांतरित दो पोतों और पांच गश्ती नौकाओं के साथ 1 फरवरी 1977 से अंतरिम तटरक्षक संगठन के गठन का निर्णय लिया गया। हालांकि तटरक्षक अधिनियम, 1978 के तहत एक स्वतंत्र सशस्त्र बल के रूप में औपचारिक रूप से भारतीय तटरक्षक का उद्घाटन 19 अगस्त 1978 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा किया गया।
तटरक्षक बल की विशेषता तैयार, तत्पर और जवाबदेही है और इसका ध्येय वाक्य है ‘वयम् रक्षामः’ अर्थात् ‘हम रक्षा करते हैं’। वायु, जल और थल तीनों क्षेत्रों में देश की सुरक्षा के लिए तत्पर भारतीय सेना के तीनों अंगों के साथ-साथ भारतीय तटरक्षक बलों का भी देश की सुरक्षा में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है, जो चौबीसों घंटे भारतीय तटों की रक्षा के लिए सतर्क रहते हैं। आज नौसेना के साथ मिलकर भारतीय तटरक्षक बल देश के तटों की रक्षा में अहम भूमिका निभा रहे हैं। समुद्री हितों की रक्षा करने तथा समुद्री कानूनों को लागू करने वाले भारतीय तटरक्षक बलों का मुख्य कार्य समुद्री तटों, कृत्रिम द्वीपों व अपतटीय स्टेशनों की चौकसी एवं सुरक्षा, समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा और प्रदूषण नियंत्रण व रोकथाम, समुद्र में जीवन तथा सम्पत्ति की सुरक्षा, मछुआरों की सुरक्षा, समुद्र में आपातकाल में मछुआरों की सहायता, वैज्ञानिक आंकड़ों का संग्रह, तस्कर विरोधी संक्रियाओं में सीमा शुल्क विभाग तथा अन्य प्राधिकारियों की सहायता, विशेष आर्थिक क्षेत्रों में कानून व्यवस्था बनाए रखना है। नदियों में बाढ़ जैसी स्थिति से निपटने में भी तटरक्षक बलों की विशेष भूमिका रहती है। समुद्री तटों के आगे समुद्री इलाके की चौकसी भारतीय नौसेना करती है। भारतीय तटरक्षक ने अपने आविर्भाव से अब तक 1150 करोड़ रुपये से भी ज्यादा कीमत की विभिन्न निषिद्ध वस्तुओं को जब्त किया है।
भारतीय तटरक्षक में तट पर स्थित वायुयानों एवं हेलिकॉप्टरों द्वारा एरियल निगरानी की जाती है। तटीय यूनिटें कम से कम अवधि में विस्तृत क्षेत्र की निगरानी करती हैं तथा समुद्र में किसी प्रकार की आपदा स्थिति में सर्वप्रथम प्रतिक्रिया करती हैं। पोतों के डेक से परिचालित हेलीकॉप्टर भी इर्द-गिर्द के क्षेत्र की निगरानी करते हैं। समुद्र में गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने एवं अनुवीक्षण करने के लिए भारतीय तटरक्षक वायुयानों एवं हेलिकॉप्टरों में सेंसर तथा हथियार लगाए गए हैं। समुद्र में तेल बिखराव का पता लगाने के लिए भारतीय तटरक्षक के चुने हुए वायुयानों में प्रदूषण निगरानी गियर भी लगाए गए हैं।
वर्तमान में भारतीय तटरक्षक की ताकत की बात करें तो केवल 5-7 छोटी नावों के साथ शुरू हुआ भारतीय तटरक्षक अब 20 हजार से अधिक सक्रिय कर्मियों, 150 से अधिक जहाजों और 65 से अधिक विमानों के बेड़े तक बढ़ चुका है। अपनी स्थापना के बाद के इन 46 वर्षों में इसने तटीय सुरक्षा के साथ-साथ समुद्री संकटों और आपदाओं में अग्रणी भूमिका निभाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। (लेखक योगेश कुमार गोयल )