भारत में हर साल 9 मई को महान राजनीतिक विचारक गोपाल कृष्ण गोखले की जयंती मनाई जाती है। गोखले ने हिंदू–मुस्लिम एकता को देश के समग्र कल्याण के लिए अनिवार्य माना। उनका मानना था कि हिंदू, जो संख्या और शिक्षा में आगे हैं, उन्हें मुस्लिम समुदाय के साथ मिलकर सामान्य राष्ट्रीयता की भावना को मजबूत करने में सहायक बनना चाहिए। वे मोहम्मद अली जिन्ना को इस भाईचारे का सबसे बड़ा समर्थक मानते थे और वे न केवल महात्मा गांधी बल्कि जिन्ना के भी राजनीतिक गुरु माने जाते थे। गोखले राजनीति में आध्यात्मिकता की अवधारणा लाने वाले विचारक थे। उन्होंने ‘सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी’ की स्थापना इसी उद्देश्य से की थी कि राजनीति और धर्म के बीच संतुलन स्थापित हो सके। यही कारण था कि गांधी ने उन्हें अपना ‘राजनीतिक गुरु’ कहा था।
आज जब देश में 'मेक इन इंडिया' और 'मेक फॉर इंडिया' की अवधारणाओं पर चर्चा हो रही है, यह जानना महत्वपूर्ण है कि गोखले ने ही सबसे पहले ‘स्वदेशी’ विचार को बढ़ावा दिया था। राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति और इतिहासकार प्रोफेसर के.एल. कमल के अनुसार, गोखले ने स्वदेशी को न केवल देशभक्ति की भावना से जोड़ा, बल्कि उसे एक आर्थिक आंदोलन के रूप में भी देखा। प्रो. कमल उन्हें भारतीय उदारवाद का अग्रणी चेहरा और देश के संवैधानिक विकास का जनक मानते हैं। उन्होंने कोई नया राजनीतिक सिद्धांत नहीं प्रस्तुत किया, बल्कि भारतीय परिस्थितियों में पश्चिमी राजनीतिक परंपराओं का समावेश करने की बात की।
महात्मा गांधी, जो गोखले से लगभग ढाई साल छोटे थे, ने अपनी पुस्तक 'स्वराज' में उनके साथ एक प्रेरणात्मक घटना का उल्लेख किया है। गांधी ने एक बार उन्हें सुझाव दिया कि वे घोड़ा-गाड़ी के बजाय आम जनता के साथ ट्रेन में यात्रा करें। इस पर गोखले ने दुख के साथ उत्तर दिया, “क्या तुम भी मुझे नहीं पहचान पाए? मैं अपनी कमाई अपने ऊपर खर्च नहीं करता। मैं घोड़ा-गाड़ी से इसलिए चलता हूं क्योंकि बहुत से लोग मुझे पहचानते हैं और अगर मैं ट्रेन में सफर करूंगा तो बाकी यात्रियों को असुविधा होगी। जब तुम्हें भी बहुत लोग पहचानने लगेंगे, तब तुम इसका महत्व समझोगे।” गांधी जी ने स्वीकार किया कि समय के साथ वे इस बात को भलीभांति समझने लगे।