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राजा राममोहन राय और उनके समाज सुधार के प्रयास

Date : 22-May-2025

राजा राममोहन राय समाज सुधारक और ब्रह्म समाज के संस्थापक थे, जिन्होंने भारतीय समाज की प्रचलित कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। उन्होंने नारी समाज के उद्धार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए और सती प्रथा जैसे अमानवीय रिवाज के खिलाफ संघर्ष किया। उनके इन योगदानों के कारण 1828 में सती प्रथा को समाप्त करने के लिए कानून बनाया गया, जो भारतीय समाज के लिए एक बड़ा कदम था।

राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के एक धार्मिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पूर्वज नवाबों के दरबार में उच्च पदों पर थे, लेकिन उनके अनुचित व्यवहार के कारण उन्होंने यह पद छोड़ दिया था। राममोहन राय का बचपन बहुत प्रेरणादायक था। उन्होंने बांग्ला, फारसी, अरबी, संस्कृत और अंग्रेजी जैसी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया और विविध विषयों में गहरी समझ विकसित की।

जब वह 20 वर्ष के थे, तो उन्होंने पूरे भारत का दौरा किया और अपने ज्ञान में वृद्धि की। 1803 में उनके पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और समाजसेवा के कार्यों में व्यस्त हो गए। 1816 में एक दुखद घटना घटी जब उनके बड़े भाई की मृत्यु हुई और उनकी पत्नी को सती होने के लिए मजबूर किया गया। इस घटना ने उनके मन पर गहरा प्रभाव डाला, और उन्होंने सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई। 1828 में उन्होंने इस प्रथा के खिलाफ पहला धार्मिक लेख लिखा, जो समाज सुधार की दिशा में उनका पहला कदम था।

राजा राममोहन राय का मानना था कि समाज सुधार और धर्म सुधार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि ईश्वर एक है और यह विचार सभी धर्मों के लिए समान है। इस विचारधारा को फैलाने के लिए 1828 में उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य एकेश्वरवाद को बढ़ावा देना, मूर्तिपूजा, जातिवाद और अन्य कुरीतियों का विरोध करना था।

राजा राममोहन राय ने भारतीय समाज में अंग्रेजी शिक्षा के महत्व को भी पहचाना और 1827 में हिंदू कॉलेज की स्थापना में मदद की, जो बाद में प्रेसीडेंसी कॉलेज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके अलावा, उन्होंने उर्दू, बांग्ला और अंग्रेजी में समाचार पत्रों की स्थापना की और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।

राजा राममोहन राय ने नारी समाज के उद्धार के लिए सती प्रथा का विरोध किया और विधवा विवाह का समर्थन किया। उनके इन प्रयासों के कारण 1828 में सती प्रथा के खिलाफ कानून बनवाया गया। उनका जीवन और विचार पाश्चात्य सभ्यता से प्रेरित थे, और उन्होंने भारतीय समाज में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह इंग्लैंड गए, जहां उन्होंने भारत सरकार में सुधारों की अनुशंसा की। उनका निधन 1833 में इंग्लैंड के ब्रिस्टल शहर में हुआ। राजा राममोहन राय के योगदान से भारतीय समाज में एक नई दिशा का आगाज़ हुआ और उन्होंने समाज सुधारक के रूप में अपार योगदान दिया। 

 
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