हिंदू पंचांग में वर्ष भर में आने वाली 24 एकादशियों को सभी तिथियों में श्रेष्ठ माना गया है। प्रत्येक एकादशी को भगवान विष्णु के लिए समर्पित माना जाता है और इस दिन व्रत रखा जाता है। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा या अचला एकादशी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में महीध्वज नाम का एक राजा था जो धर्मप्रिय और न्यायशील था। लेकिन उसका छोटा भाई वज्रध्व स्वभाव से पापी, अधर्मी और क्रूर था। वज्रध्व को अपने बड़े भाई से बैर था और उसने छलपूर्वक उसकी हत्या कर दी। राजा के शव को जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे दबा दिया गया। अकाल मृत्यु के कारण राजा की आत्मा मुक्त नहीं हो सकी और वह प्रेत बन गया। वह प्रेत पीपल के नीचे उत्पात मचाने लगा, जिससे आसपास के लोग बहुत परेशान होने लगे।
एक दिन धौम्य ऋषि उस मार्ग से गुजरे और उन्होंने पीपल के वृक्ष पर राजा महीध्वज की आत्मा को देखा। ऋषि ने तपोबल से प्रेत को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। उन्होंने राजा को अपरा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा ने पूरे श्रद्धा और नियम से व्रत किया, जिससे वह प्रेत योनि से मुक्त हुआ और उसे दिव्य शरीर प्राप्त हुआ। इसके फलस्वरूप वह स्वर्ग का अधिकारी बना।
धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि जो व्यक्ति झूठ बोलते हैं, निंदा करते हैं, क्रोध करते हैं या किसी को धोखा देते हैं, उन्हें नर्क प्राप्त होता है। साथ ही, अनजाने में किए गए पाप भी व्यक्ति को नरक का भागी बना सकते हैं। अपरा एकादशी का व्रत इन सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाने में सक्षम माना गया है। इस दिन व्रत करने से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है, मानो किसी ने गाय, स्वर्ण या भूमि का दान किया हो। जो लोग इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके जीवन में सुख-समृद्धि, धन, धान्य और पारिवारिक आनंद बना रहता है।