27 मई: साहित्य के सूर्य डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की जयंती पर विशेष
हिंदी साहित्य जगत की एक अमिट विभूति, डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, जिनका जन्म 27 मई को हुआ था, को आज उनके अद्वितीय साहित्यिक योगदान के लिए सादर नमन। उन्होंने न केवल छत्तीसगढ़ को, बल्कि संपूर्ण हिंदी साहित्य को अपनी विद्वता, लेखनी और साहित्यिक पत्रकारिता से गौरवान्वित किया। लगभग छह दशकों तक साहित्य सेवा में निरंतर सक्रिय रहे बख्शी जी का साहित्यिक प्रकाश आज भी हिंदी साहित्य को आलोकित करता है।
डॉ. बख्शी का जन्म 1894 में तत्कालीन मध्यप्रदेश (अब छत्तीसगढ़) की खैरागढ़ रियासत में हुआ था, जो आज एशिया के पहले संगीत विश्वविद्यालय के लिए प्रसिद्ध है। उनके पिता पुन्नालाल बख्शी खैरागढ़ के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और माता मनोरमा देवी साहित्यप्रेमी थीं। पारिवारिक वातावरण में साहित्यिक रुचि विकसित हुई और उन्होंने शिक्षा खैरागढ़ तथा जबलपुर में प्राप्त की। 1916 में बी.ए. की उपाधि हासिल की। वे आगे एलएलबी करना चाहते थे, लेकिन साहित्य के प्रति समर्पण के कारण यह सपना अधूरा रह गया।
किशोरावस्था से ही उन्होंने लेखन की शुरुआत की। उनकी पहली कहानी ‘तारिणी’ 1911 में जबलपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘हितकारिणी’ में छपी। प्रारंभ में कविताएँ लिखीं और ‘शतदल’ नामक काव्य संग्रह के माध्यम से अपनी सृजनशीलता का परिचय दिया। हालांकि आगे चलकर वे एक सशक्त निबंधकार, आलोचक, संपादक और शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध हुए।
1916 से 1919 तक वे राजनांदगांव में संस्कृत शिक्षक रहे और फिर 1929 से 1949 तक खैरागढ़ विक्टोरिया हाई स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाते रहे। साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा। वे 1920 में ‘सरस्वती’ पत्रिका के सहायक संपादक और 1921 में प्रधान संपादक बने। साथ ही, ‘छाया’ (इलाहाबाद) पत्रिका के भी संपादक रहे।
डॉ. बख्शी ने निबंध, आलोचना, उपन्यास, कहानी, यात्रा-वृत्तांत और कविता – सभी विधाओं में महत्वपूर्ण लेखन किया। उनके निबंधों में संवाद की सहजता और कहानी जैसी रोचकता पाई जाती है। उनकी प्रमुख आलोचनात्मक कृतियों में ‘हिंदी साहित्य विमर्श’, ‘विश्व साहित्य’, ‘हिंदी कहानी साहित्य’ और ‘हिंदी उपन्यास साहित्य’ प्रमुख हैं।
उनके चर्चित निबंध संग्रहों में ‘पंचपात्र’, ‘कुछ और कुछ’, ‘बिखरे पन्ने’, ‘तुम्हारे लिए’, ‘हम – मेरी अपनी कथा’, ‘मेरे प्रिय निबंध’, ‘समस्या और समाधान’ तथा ‘हिंदी साहित्य: एक ऐतिहासिक समीक्षा’ शामिल हैं। ‘यात्री’ नामक यात्रा-वृत्तांत में उन्होंने जीवन को ‘अनंत पथ की यात्रा’ के रूप में प्रस्तुत किया है।
काव्य संग्रहों में ‘शतदल’ और ‘अश्रुदल’ तथा कहानी संग्रहों में ‘झलमला’ और ‘अंजलि’ उल्लेखनीय हैं।
उनके योगदान को सम्मानित करते हुए 1949 में हिंदी साहित्य सम्मेलन ने उन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि दी। 1950 में वे मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति चुने गए और 1969 में उन्हें मध्यप्रदेश सरकार द्वारा डी.लिट् की उपाधि प्रदान की गई।
28 दिसंबर 1971 को रायपुर के डी.के. अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली, लेकिन उनका रचा हुआ साहित्य आज भी हिंदी जगत में प्रेरणा का स्रोत है।
डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि समूचे हिंदी साहित्य के एक प्रकाशस्तंभ थे। उनकी लेखनी ने पाठकों को चिंतन, रस, सौंदर्य और विवेक से परिचित कराया। इस अवसर पर, उनके निष्काम साहित्यिक समर्पण और गहन दृष्टिकोण को स्मरण करते हुए, उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।
हिंदी साहित्य के इस ऋषितुल्य साधक को शत्-शत् नमन।