सिखों के पाँचवें गुरु, श्री गुरु अर्जन देव जी, ईश्वरीय भक्ति, सार्वभौमिक प्रेम और निस्वार्थ सेवा के प्रतीक थे। वे सिख इतिहास के सबसे महान गुरुओं में से एक माने जाते हैं। उन्होंने न केवल श्री गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया, बल्कि अमृतसर में हरमंदिर साहिब—जिसे आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है—की आधारशिला भी रखी।
उनका जीवन एक जीवित प्रेरणागाथा है, जो आज की पीढ़ी को भक्ति, सेवा और सहिष्णुता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। गुरु अर्जन देव जी का जन्म 1563 में गोइंदवाल में हुआ था। वे चौथे गुरु श्री गुरु रामदास जी के सुपुत्र थे और 1581 में गुरुगद्दी संभालते हुए पाँचवें गुरु बने।
उनका कार्यकाल धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने समाज को समरसता और सभी जातियों के लिए धर्म की सुलभता का संदेश दिया। हरमंदिर साहिब के चार द्वार इसी भावना का प्रतीक हैं। 1604 में, उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन पूर्ण किया, जिसमें सिख गुरुओं के उपदेशों के साथ-साथ अन्य संतों की बाणी को भी सम्मिलित किया गया। गुरु अर्जन देव जी ने मसंद प्रणाली को संगठित रूप दिया, जिससे समाज सेवा के लिए 'दासवंद' के रूप में योगदान एक स्थायी प्रणाली बन गई।
सिख धर्म की बढ़ती लोकप्रियता ने कई लोगों को प्रभावित किया, जिनमें जट्ट, राजपूत, खत्री और मुस्लिम पीर भी शामिल थे। लेकिन यह प्रभाव मुगल सत्ता के लिए चिंता का विषय बन गया। धार्मिक कट्टरता और राजनैतिक ईर्ष्या ने गुरु अर्जन देव जी को निशाना बनाया। जहाँगीर के आदेश पर उन्हें 1606 में लाहौर में गिरफ़्तार कर लिया गया और अमानवीय यातनाएँ दी गईं—उन्हें जलती हुई लोहे की थाली पर बैठाया गया और उनके शरीर पर गर्म रेत डाली गई।
उनकी शहादत सिख इतिहास का एक अहम मोड़ बन गई। वे सिख धर्म के पहले शहीद माने जाते हैं, और उनके बलिदान की स्मृति में प्रतिवर्ष शहीदी दिवस मनाया जाता है।
गुरु अर्जन देव जी का आध्यात्मिक योगदान भी उतना ही महान है। उन्होंने सुखमनी साहिब की रचना की, जो 192 शांति-पाठों का संग्रह है। यह बाणी आत्मिक शांति, प्रभु भक्ति और जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करती है। गुरु ग्रंथ साहिब में उनके 2,218 शब्द 30 रागों में दर्ज हैं।
गुरु अर्जन देव जी की बाणी आज भी आत्मा को शुद्ध करती है और जीवन को दिशा देती है। जैसे कि वे कहते हैं:
"सतगुरि नामु निधनु दृदया चिंता सगल बिनासी।"
— सच्चे गुरु ने मेरे भीतर नाम का खजाना भर दिया है और मेरी सारी चिंताएँ दूर हो गई हैं।
"करि कृपा अपुणो करि लीना मणि वस्या अबिनासि।"
— उन्होंने कृपा कर मुझे अपना बना लिया, और अविनाशी परमात्मा मेरे मन में बस गए।
"ता कौ बिघाणु न कोउ लगै जो सतगुरी आपुनै राखे।"
— सच्चे गुरु द्वारा संरक्षित व्यक्ति को कोई कष्ट नहीं छू सकता।
गुरु अर्जन देव जी की शिक्षाएँ आज भी हरमंदिर साहिब की दीवारों से गूंजती हैं। उनका जीवन, उनकी वाणी, और उनका बलिदान आज भी हमें शांति, समर्पण और भाईचारे के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।