भारत-चीन संघर्ष, भारत-पाकिस्तान युद्ध अथवा कोरोना महामारी जैसे कठिन समयों में पत्रकारिता ने अपनी प्रासंगिकता और महत्ता को सिद्ध किया है। इन सभी विकट परिस्थितियों में प्रेस ने न केवल देश को सच्चाई से अवगत कराया, बल्कि जनमानस को जागरूक और एकजुट करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें विशेष उल्लेख हिन्दी पत्रकारिता का किया जाना चाहिए, जिसने देश की बहुसंख्यक आबादी से गहरा जुड़ाव रखते हुए, राष्ट्र की एकता, अखंडता और विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
हिन्दी टीवी चैनलों, समाचारपत्रों और पत्रिकाओं ने जनसाधारण के साथ जिस आत्मीयता और भरोसे का संबंध स्थापित किया है, वह अद्वितीय है। यद्यपि समय के साथ पत्रकारिता के स्वरूप, उद्देश्य और शैलियों में परिवर्तन हुआ है, फिर भी यह तथ्य संतोषजनक है कि हिन्दी पत्रकारिता की लोकप्रियता और उसके पाठकों-दर्शकों की रुचि में कोई गिरावट नहीं आई है।
यह अवश्य है कि अंग्रेजी मीडिया और उससे जुड़े कुछ पत्रकारों ने हिन्दी पत्रकारिता को कमतर आंकने की कोशिश की है और उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाए हैं, किंतु यथार्थ यह है कि हिन्दी पत्रकारिता ने बीते वर्षों में न केवल अपनी प्रभावशीलता सिद्ध की है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी विश्वसनीयता को स्थापित किया है। इसकी ताकत का प्रमाण यह है कि कई हिन्दी समाचारपत्रों ने प्रसार संख्या के मामले में बड़े अंग्रेजी अखबारों को पीछे छोड़ दिया है।
हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत 30 मई 1826 को कानपुर निवासी पं. युगुल किशोर शुक्ल द्वारा प्रकाशित ‘उदन्त मार्तण्ड’ से हुई थी, जिसका अर्थ था ‘समाचार सूर्य’। उस समय अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला भाषाओं में समाचारपत्र प्रचलन में थे, किन्तु हिन्दी के लिए यह एक ऐतिहासिक शुरुआत थी। ‘उदन्त मार्तण्ड’ को कलकत्ता से साप्ताहिक रूप में शुरू किया गया था, जिसकी पहली बार केवल 500 प्रतियाँ ही छापी गईं। हिन्दी भाषी जनसंख्या की कम उपस्थिति और वितरण की कठिनाइयों के चलते यह समाचारपत्र केवल कुछ महीनों तक ही चल सका और 4 दिसंबर 1826 को इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा।
हालाँकि इसका जीवनकाल अल्पकालिक रहा, परन्तु इसने जो नींव रखी, उसी पर आगे हिन्दी पत्रकारिता ने अनेक ऊँचाइयों को प्राप्त किया। अंग्रेजी शासनकाल में भी अनेक हिन्दी पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हुईं, जिन्होंने सामाजिक जागरूकता और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, भले ही उन्हें टिके रहने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा हो। आज के समय में परिस्थिति पूर्णतः बदल चुकी है और हिन्दी पत्रकारिता एक मिशन से आगे बढ़कर एक बड़ा व्यवसाय बन चुकी है, लेकिन इसके बावजूद हिन्दी पाठकों और दर्शकों का अपने माध्यमों से जुड़ाव बना हुआ है।
देश और दुनिया की हर हलचल, ज्वलंत मुद्दों और नवीनतम जानकारियों को सहज और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में हिन्दी पत्रकारिता ने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। व्यवसायीकरण और प्रतिस्पर्धा के इस दौर में, कुछ आलोचनाओं और विरोधाभासों के बावजूद, यह पत्रकारिता आम जनता के विश्वास पर खरी उतरी है। आज अधिकांश हिन्दी समाचारपत्रों के ऑनलाइन संस्करण भी उपलब्ध हैं, जिससे इनकी पहुँच और प्रभाव और अधिक विस्तृत हो गया है।
हाल के वर्षों में हुए बड़े घोटालों और सत्ता के दुरुपयोग के मामलों का पर्दाफाश करने में पत्रकारिता की भूमिका सराहनीय रही है और हिन्दी पत्रकारिता ने भी इसमें पीछे नहीं हटते हुए सत्य को उजागर करने का कार्य किया है। हालांकि, यह भी एक सच्चाई है कि जैसे-जैसे समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है, पत्रकारिता भी उससे अछूती नहीं रही है।
पूरी तरह व्यावसायिक हो चुके इस युग में पत्रकारिता को एक शुद्ध मिशन मानना संभव नहीं रहा, क्योंकि इससे जुड़े लोगों के लिए यह पेशा आजीविका का साधन भी बन गया है। फिर भी, पत्रकारिता को पूरी तरह एक उद्योग या व्यापार बना देने की प्रवृत्ति और इसके मूल आदर्शों की अनदेखी से हर हाल में बचा जाना चाहिए। संतोष की बात यह है कि अनेक चुनौतियों के बावजूद, हिन्दी पत्रकारिता ने अनेक अवसरों पर सराहनीय कार्य करते हुए समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया है।